1.मैं खुद को, तराश रहीं हुं।
समय , तेज़ी से भाग रहा है।
लेकिन मेरी, तराश अभी अधुरी है।
जीवन जीने के लिए, मक़सद जरूरी है।
2.जब खुद की, तराश की तो।
पता चला, कोई मकसद ही नहीं है।
बिना मक़सद के, मानों जैसे जीवन ही नहीं है।
मेरी ख़ुद की , तराश अभी वहीं है।
3.सभी मेरी, क़तार से आगे निकल रहे हैं।
लेकिन मैं अभी , वहीं हुं।
जीवन जी तो रही हुं
ऐसा लगता है, बिना सांसों के जी रही हूं।
4.क़तार से,आगे बढ़ना चाहती हुं।
बात पैसों पर आ जाती है।
ग़रीबी, गरीबों के सपने खा जाती है।
हम जैसों की क़तार वहीं खत्म हो जाती है।