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खुशियों की राहें

7 नवम्बर 2024

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अगला साल आया, और मनाली की घाटी फिर से वही ठंडी हवाओं और गुलाबी आभा से भर गई थी। प्रभात और अरुणिमा दोनों ही अपने-अपने जीवन में कुछ बदलावों से गुजर चुके थे, लेकिन एक वादा, जो उन्होंने एक साल पहले किया था, वह अब भी उनके दिलों में ताजा था।

प्रभात पिछले एक साल में कुछ नहीं बदल पाया था। वही पुरानी व्यस्तता, वही अकेलापन, वही गहरे अहसास की चुप्प। लेकिन जब उसने अपनी डायरी खोली और पिछली साल की तारीख को देखा, तो उसकी आँखों में एक हल्की सी उम्मीद का रौशन हुआ। उसने उसी दिन और उसी वक्त फिर से यहां आने का वादा किया था, और वह जानता था कि उसे उस वादे को निभाना होगा।
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अरुणिमा भी अपनी ज़िंदगी में कुछ बदलावों से गुजर रही थी। उसने अपनी छोटी बहन सिया को खोने के बाद कई बार खुद से सवाल किया था कि क्या वह खुद को कभी पूरी तरह से ठीक कर पाएगी। लेकिन वह जानती थी कि जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए उसे अपने दर्द से बाहर निकलने की कोशिश करनी होगी। और यह वादा, जो उसने प्रभात से किया था, वह उसके लिए एक कारण था। उसने सोचा, "शायद इस साल कुछ हल्का हो जाए।"

वह वही चाय की दुकान पर आई। उस ठंडी हवाओं में भी उसका दिल कुछ गर्म था। उसने भीतर कदम रखा, और देखा कि वही पुरानी लकड़ी की मेज पर एक व्यक्ति बैठा है। सिर झुका कर उसने चाय का प्याला पकड़ा हुआ था। अरुणिमा को देखकर उसने धीरे से सिर उठाया, और उनकी आँखें एक-दूसरे से मिल गईं।

"तुम आ गईं," प्रभात ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा। उसकी आवाज में एक अजनबीयत कम और एक अपनेपन का एहसास था।

अरुणिमा मुस्कुराई, और जैसे ही वह उसके पास बैठी, उसने कहा, "वादा निभाना जरूरी था, ना?"

प्रभात ने सिर हिलाया, "हाँ, और शायद इस बार हम कुछ अलग महसूस करेंगे।"

चाय के प्याले में से उठती हुई भाप ने वातावरण को और भी अधिक हल्का बना दिया था। दोनों ने चाय का पहला घूंट लिया, और फिर कुछ देर तक चुप रहे। लेकिन अब की चुप्पी पहले से कहीं ज्यादा सहज थी। जैसे दोनों एक-दूसरे की उपस्थिति को महसूस कर रहे थे, बिना कुछ कहे।

अरुणिमा ने सबसे पहले बोला, "तुम्हारी आँखों में अब वही दर्द नहीं है।"

प्रभात मुस्कराया, "शायद, मुझे लगता है कि अब मैं उस दर्द से थोड़ा दूर हो गया हूँ। पिछले साल की बातें अब सिर्फ यादें बन गई हैं। और तुम...?"

अरुणिमा की आँखें कुछ झपकीं, फिर उसने कहा, "मैंने महसूस किया कि जब हम अपने दुखों से भागते हैं, तो वो हमें और गहरा कर लेते हैं। लेकिन जब उन्हें स्वीकार कर लेते हैं, तो धीरे-धीरे हल्के हो जाते हैं। पिछले साल तुमसे बात करने के बाद मैंने बहुत कुछ सीखा। अब मैं पहले से ज्यादा आत्मविश्वासी महसूस करती हूँ, और थोड़ा सा खुशी भी पाई है।"

प्रभात चुप रहा, फिर धीरे से बोला, "हमने जो वादा किया था, शायद वही हमारी ज़िंदगी का सबसे सच्चा वादा था। अब हम नहीं भागेंगे अपने दर्द से, बल्कि उसे अपने साथ जीने की कोशिश करेंगे।"

अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा, "हाँ, अब हमारी यादें हमें कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत बनाती हैं।"

दोनों ने फिर से चाय के प्याले उठाए, और इस बार दोनों जानते थे कि यह मुलाकात सिर्फ एक वादा निभाने के लिए नहीं, बल्कि एक नए दृष्टिकोण के साथ आई थी। एक ऐसा दृष्टिकोण जिसमें दर्द, हंसी, और यादें सब एक साथ रहते हैं, लेकिन उन्हें अब किसी और के बोझ की तरह नहीं, बल्कि एक सहारा माना जाता है।

कुछ देर बाद, प्रभात ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "तुम्हारा नाम क्या है?"

अरुणिमा थोड़ी चौंकी, फिर हंसी दबाते हुए कहा, "तुमने अब तक नहीं पूछा था?"

प्रभात हंसा, "हां, शायद यह वादा निभाने की आदत में कुछ अहम बातें भूल गया।"

"मेरा नाम अरुणिमा है," उसने सादगी से कहा। "और तुम?"

"प्रभात," उसने जवाब दिया, फिर धीरे से मुस्कुराया, "मुझे लगा था कि एक अजनबी के तौर पर हम दोनों हमेशा ऐसे ही बने रहेंगे।"

अरुणिमा ने हंसते हुए कहा, "शायद अगली बार हमें नामों के बिना ही मिलना चाहिए, जैसे पिछले साल मिले थे। लेकिन आज तो हमें नाम पता चल ही गए हैं।"

"हाँ, सही कह रही हो तुम," प्रभात ने कहा। "लेकिन फिर भी, अगली बार मिलते वक्त हम फिर से यहां ही मिलेंगे।"

अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, "शायद अगली बार हमारी मुलाकात जल्दी हो। वैसे, तुम भी दिल्ली से हो, है ना?"

प्रभात ने चौंकते हुए कहा, "तुम भी दिल्ली से हो?"

"हां," अरुणिमा ने मुस्कुरा कर कहा, "तुमसे पहले क्यों नहीं पूछा?"

"पता नहीं," प्रभात ने कहा, "लेकिन लगता है हमें जल्द ही फिर मिलना पड़ेगा। अब हम एक-दूसरे को अपनी कहानियों में जोड़ सकते हैं।"

दोनों के चेहरे पर एक नई मुस्कान थी। उनके दिल अब और हलके थे, क्योंकि अब वे जानते थे कि वे दोनों अपनी ज़िंदगी के रास्ते एक साथ नहीं, लेकिन कभी-कभी एक-दूसरे से जुड़कर चल सकते थे। एक वादा, एक नाम, और एक नई मुलाकात की संभावना उनके दिलों में गूंज रही थी।

प्रभात ने कहा, "अगली मुलाकात चाहे वह दिल्ली में हो या अगले साल यहीं हो, लेकिन मुलाकात का वादा जरूर निभाएंगे।"

अरुणिमा ने हंसते हुए जवाब दिया, "ज़रूर, लेकिन एक और वादा करो कि अगली बार तुम मुझे पहले नाम से बुलाना, ठीक है?"

"बिलकुल!" प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा।

दोनों ने फिर से एक-दूसरे को मुस्कान के साथ अलविदा कहा, और इस बार वे जानते थे कि उनकी अगली मुलाकात जल्दी ही होगी क्योंकि अब उनकी राहें फिर से एक ही शहर की ओर मुड़ चुकी थीं।


आगे की कहानी अगले भाग में......
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वादों की मुलाकात
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यह कहानी एक अजनबी मुलाकात, दर्द और वादों की खूबसूरत यात्रा है। इसमें वक्त, यादें, और साझा किए गए अनुभवों का महत्व है।

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