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ख्वाब

10 दिसम्बर 2021

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निगाहों में मेरी जो ख्वाब पल रहा है 
नब्ज में भी वही बन के खून बह रहा है 
बता क्या करूं नींद सुकून की पाने को 
पीने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है 
दिल वो भी करके वर्षों से देख रहा है 
जम गया है हद पे अपनी 
अड़ गया है जिद पे अपनी 
ना चढ़ रहा है ना उतर रहा है 
निगाहों में मेरी जो ख्वाब पल रहा है ।

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