"आंखें रोती भी है और आंखें हंसती भी है,आंखें सोती भी है और आंखें जागती भी है,आंखें आंखों से इशारों में बोलती भी है,आंखें आंखों से भला - बुरा देखती भी है..."-दिनेश कुमार कीर
हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है, खेतों में पीले सरसों के फूलों को सौंधी खुशबु के साथ खिलते देखा, सर्दी मे कोहरे की सफेद चादर की धुंध से लोगों की छिपत हुए देखा,हाँ, मैंने गांव को इतने