जीवन में रंग भी भरे कुछ
अजनबी से कुछ अनदेखे से
होती कहा पहचान छू जाने से
जब रूह ही रूह को जानती हो
सफर आसान न था हर कदम
नया तूफान से भरा था
ना कोई कस्ती न कोई
साहिल ही खड़ा था
फिर किसने कहा सफर आसान रहा
वो दौर भी अजीब था ये दौर भी करीब था
मुश्किल बड़ी थी बस मंजिल करीब था
कोई सुन भी ना सका था
कोई कह भी ना सका था
कैसा ये दौर था जो इतना करीब था