shabd-logo

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

21 मार्च 2022

18 बार देखा गया 18
समलैंगिकता




समलैंगिकता एक अहम मुद्दा है,  जो कुछ लोगों की नज़र में अपराधिक प्रवृत्ति मानी जाती है, इस विषय पर सभी के अपने-अपने विचार है, कुछ की नज़र में यह रिश्ता जिसे स्त्री समलिंगी को लेस्बियन और पुरुष समलिंगी को गे भी कहा जाता है, मान्यता मिलनी चाहिए,जो किसी हद तक सही भी है और ग़लत भी। 

 काम-वासना हर मन में होती है जो प्राकृतिक है, लेकिन कभी किसी का झुकाव विपरीत लिंग की तरफ हो जाता है, तो कभी किसी का समलिंग अर्थात अपने ही लिंग की तरफ जो किसी तरह से अपराध नहीं, मन में जब काम की तीव्र उत्पत्ति होती है तो उसे ये सुझाई नहीं देता कि सामने वाला विपरित लिंग है या सम लिंग, उसे केवल प्यार जताना या प्यार पाना या कहें  कि खुद को यौन संबंध द्वारा तृप्त करना है ।

 इसे हम ईश्वर की चूक भी कह सकते हैं, या हार्मोन की वजह से भी ऐसा हो जाता है, जैसे कोई लड़का पैदा हुआ उसका शरीर लड़के का है लेकिन अन्दर से वो लड़की की तरह है, ये हार्मोन प्रोब्लम ही होती है। जिसे वो ना तो सही उजागर कर पाते हैं और ना ही छुपा  पाते हैं। 

कुछ समय पहले तक लेस्बियन या बाईसेक्सुअल को अपराधिक माना जाता था, समलैंगिक विवाह को भले ही स्विकृति नहीं मिली,लेकिन 2009 में धारा 377के अन्तर्गत  हाईकोर्ट द्वारा इस रिश्ते को मान्यता देने के बाद लोगों का नजरिया बदला और समलैंगिक के लिए पोर्नोग्राफी और अश्लीलता जैसे शब्द भी बदले और लोग खुलकर सामने आने लगे ।


मगर कुछ धार्मिक संगठन भारतीय संस्कृति के अनुसार इसे ग़लत करार देते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह दो हताश, असफल और नाउम्मीद लोगों द्वारा सहमति से किया व्यभिचार है और यह अप्राकृतिक है, जिसे मान्यता नहीं मिलनी चाहिए।  


 2011में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाब नबी आज़ाद ने इसे अप्राकृतिक और गंभीर दिमागी बिमारी बताया था, उनका अर्थ ये था कि ये शारिरिक नहीं मानसिक बिमारी है जो जल्द ही भंयकर सामाजिक बिमारी बन जाएगी, उनके इस कथन पर लेस्बियन और बाईसेक्सुअल लोगों ने विरोध किया था, जिसमें बालीवुड की कई मानवाधिकार संस्थाओं ने भी  साथ दिया था।


कहीं ना कहीं ये पाश्चात्य सभ्यता का ही असर है, पाश्चात्य संस्कृति में फूहड़ और भद्दे प्रयोग वहां के लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है। पाश्चात्य देशों में ऐसे हालात हो गए हैं कि व्यक्ति के पारस्परिक संबंध भी केवल भोग-विलास तक ही सीमित रह गए हैं ।

 समलैंगिकता के संबंधों को भी वो एक अनोखे प्रयोग और फ़न के तौर पर लेते हैं।  उन्हें ये सामान्य संबंधो से अधिक उत्साही लगता है, जिसका अनुसरण भारतीय एक भेड़- चाल की तरह आंखें मूंद कर करते हैं, माडर्न और अपडेट रहने के चक्कर में अपनी मौलिकता और संस्कृति का भी अपमान करते हैं ।

 ये तथ्य भी कुछ सही या ग़लत नहीं कहा जा सकता हो सकता दो पुरुष या महिलाएं अन्य रिश्तों से हताश होकर आपस में आकर्षित होते हों,एक धारणा यह है कि बचपन में विषमलिंगी का प्रयाप्त सहयोग ना मिलना भी समलैंगिक का कारण बन सकता है, एक धारणा यह भी हो सकती है कि यदि पुरुष को नारी से और नारी को पुरूष से अगर बहुत दूर रखा जाए तो वो अपने ही लिंग में उसे ढुंढने की कोशिश करता है, पति-पत्नी की सेक्स लाइफ, समागम की अनुकूलता ना होना भी इसका कारण माना जाता है।

 कहीं-कहीं बेलगाम मौज -मस्ती, स्वच्छंद भोग-विलास की लालसा के रूप में जन्म लेती है,  यकीनी तौर पर कुछ भी कहना कठिन है। एक समलैंगिक की मानसिकता वहीं बता सकता है ।

 एक तरह से देखा जाए तो  जैसे हम सैक्स को छुपाते हैं, कोई भी मानव जाति में सैक्स खुलेआम नहीं करता देखा जाता, केवल पशु जाति को ही जैसे श्वान खुलेआम सैक्स करते हैं, अगर इस रिश्ते को खुलेआम मान्यता दे दी तो आने वाले समय में मानव जाति भी श्वान की तरह ही खुलेआम सैक्स करती नजर आएंगी, अनुसंधानों से यह स्पष्ट हुआ है कि समलैंगिकता अनुवांशिक नहीं है, यह एक सीखी हुई आदत है जिसे चाहने पर छोड़ा भी जा सकता है, पुरुष-पुरूष यौनाचार में एड्स और स्त्री समलैंगिक में ह्यूमन पेपिलोमा वायरस, हर्पिस आदि बिमारियां तेज़ी से फैलती हैं, इसके अलावा समलिगिंयो में सिफलिश, हेपेटाइटिस बी, गोमोनिया, यौन- जनित अनेकों बिमारियां महामारी की तरह फैलती हैं।

इसलिए इस  रिश्ते को भी पर्दे में ना रखा तो आज की युवा पीढ़ी पर इसका दुष्प्रभाव ही पडेगा, यह एक प्रदूषण की तरह है जो धीरे-धीरे समाज को अपनी चपेट में ले लेगा। 

 लेस्बियन, बाईसेक्सुअल को खुलेआम मान्यता देने से समाज में एक और भंयकर मानसिक बिमारी की बढ़ोतरी हो सकती है, युवा वर्ग पर इसका ग़लत असर पड़ सकता है । 

समलैंगिक को प्रताड़ित करने या मज़ाक बनाए जाने की बजाए उन्हें समझाया जाना चाहिए, कि यह कोई मानसिक बिमारी नहीं है, इससे आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है, ऐसे लोगों को सहानुभूति और इलाज की आवश्यकता होती है। दैहिक सुख की भोगवादी लालसा में समलिंगी अपने जीवन को खोखला बना रहे हैं, इस समस्या का निदान समलिंगी विवाह अनुमति में नहीं अपितु इलाज और समाधान में है।




प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)

12
रचनाएँ
क्या कभी ये हालात बदलेंगे ??
0.0
इस पुस्तक में समसामयिक मुद्दों पर मेरे विचार, जो आज के हालात हैं और जो कल थे। आप इसे पढ़े और अपने विचार व्यक्त करें।
1

कब बदलेंगे ये हालात

17 मार्च 2022
2
0
0

कैसा जीवन या कितना जीवनजीवन कैसा होना चाहिए या कितना जीवन अर्थात ज़िंदगी होनी चाहिए।बहुत ही अहम सवाल है। कुछ लोग समझते हैं कि ज़िन्दगी अगर लम्बी जीए है तो बहुत अच्छा है, कुछ सोचते हैं कि बेशक जीव

2

कब बदलेंगे ये हालात

18 मार्च 2022
0
0
0

कौन कितने में बिकता हैजी हां सच सुना आप सबने , आप जितने चाहें सम्मान पत्र खरीद सकते हैं। आज के समय में सम्मान पत्र बेचे और खरीदें जाते हैं।लेखन की कोई कीमत नहीं रही, लेखक क्या लिखता है इसकी

3

कब बदलेंगे ये हालात

18 मार्च 2022
1
0
0

युवा दोराहे पर क्यों हैं?सबसे पहले हमें युवा की परिभाषा को समझना होगा। ऑंखों में सतरंगी सपने, पंछी के जैसे उड़ान और उमंग से भरा मन, कुछ कर दिखाने का और दुनिया को मुठ्ठी में करने का साहस, यही है युवा क

4

क्या कभी ये हालात बदलेंगे?

20 मार्च 2022
0
0
0

झूठी रस्मेंशादी दो लोगों का ही नहीं दो परिवारों का मिलन होता है। इसलिए कभी-कभी दोनों परिवारों की रस्में, रीति-रिवाज अलग भी होते हैं। माना कि हल्दी, मेंहदी इत्यादि रस्में सभी करते हैं मगर कुछ एक

5

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

21 मार्च 2022
1
0
0

समलैंगिकतासमलैंगिकता एक अहम मुद्दा है, जो कुछ लोगों की नज़र में अपराधिक प्रवृत्ति मानी जाती है, इस विषय पर सभी के अपने-अपने विचार है, कुछ की नज़र में यह रिश्ता जिसे स्त्री समलिंगी को लेस्बियन और

6

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

21 मार्च 2022
1
0
0

स्त्री पर ही लांछन क्यों ?विचार: आज जब समाज स्त्री और पुरुष को समानता का अधिकार देता हैँ किन्तु फिर भी आज एक स्त्री को देर रात अपने घर लौटता देख हमारा समाज बिना कारण जाने उसे 'बदचलन'

7

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

21 मार्च 2022
1
0
0

आज की नारी की स्थिति क्या है ??आज की नारी दोराहे पर खड़ी है । मानते हैं कि नारी चाहती है कि वो पढ़ी-लिखी है तो वो अपने हुनर को व्यर्थ ना गँवाए, यूँ चार दीवारी में कैद रह कर अपनी ज़िन्दग

8

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

22 मार्च 2022
1
1
0

प्रभुत्व का दीमक चाट रहा समाज कोआज कहने को स्त्री और पुरुष दोनों बराबर है, मगर क्या यह हकीकत में ऐसा है?क्या स्त्री को हर क्षेत्र में बराबरी का अधिकार है? भ्रुण जांच कराया जाता है, और अगर बे

9

क्या कभी ये हालात बदलेंगे?

23 मार्च 2022
2
2
5

विधवा पुनर्विवाहविधवा पुनर्विवाह एक ऐसा संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय है जिस पर अधिकतर लोग 21 वीं सदी के होते हुए भी नाक मुंह सिकोड़ने लग जाते हैं।विधवा पुनर्विवाह क्यों विवादास्पद है?? पुनर्विवा

10

क्या कभी ये हालात बदलेंगे?

24 मार्च 2022
1
1
0

हम महमां एक "दम" के#कि दम था भरोसा यार दम आवे ना आवे,छड झगड़ा थे कर ले प्यार दम आवे ना आवे।जी हां दोस्तों हम एक दम अर्थात एक स्वांस के ही हैं केवल, ना मालूम कब हमारा आखिरी स्वास हो इसलिए जो स्वास सम अ

11

क्या कभी ये हालात बदलेंगे?

24 मार्च 2022
2
1
0

पिरियडस टाॅकमासिक धर्म प्रजनन क्रिया का एक प्राकृतिक हिस्सा है, जिसमें गर्भाशय से रक्त योनि से बाहर निकलता है। ये प्रक्रिया लड़कियों में लगभग 11 साल से 14 साल की उम्र में शूरू होती है। यही कुदरती प्रक

12

पाखंड या परम्परा

1 मई 2022
2
1
3

पाखंड या परम्परामाना भारत देश संस्कृति संस्कार और परंपराओं का देश है, मगर जब परंपराएं पाखंड बन जाती है तो बोझ लगने लगती है।कभी परंपरा पाखंड बन जाती है और कभी पाखंड परंपरा बन जाते है, परंपरा कोई

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए