स्त्री पर ही लांछन क्यों ?
विचार:
आज जब समाज स्त्री और पुरुष को समानता का अधिकार देता हैँ किन्तु फिर भी आज एक स्त्री को देर रात अपने घर लौटता देख हमारा समाज बिना कारण जाने उसे 'बदचलन' जैसे उपनाम से सम्बोधित करते हैँ l
आपको क्या लगता हैँ इसका मुख्य कारण क्या हैँ और आपको क्या लगता हैँ इसमें सुधार के लिए क्या किया जाना चाहिए l
बहुत ही विचारणीय विषय
हमारी यही त्रासदी है कि हम औरतें ही अक्सर औरतों की दुश्मन बन जाती हैं।
आज के समय में स्त्री पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है, और पुरुष भी घर के काम में स्त्री की मदद करते हैं।
लेकिन बहुत कम ऐसा होता है कि कोई पुरुष किसी पुरुष को जोरू का गुलाम कहते, अक्सर स्त्रियां ही इस तरह के व्यंग्य करती है।
इसी तरह अगर कोई पुरुष नाइट ड्यूटी करता है तो बेचारा पूरी रात ड्यूटी करता है।
और अगर कोई स्त्री नाइट ड्यूटी करें तो स्त्री ही कहेगी कि नाइट ड्यूटी नहीं करनी चाहिए।
पता नहीं वहां कैसे- कैसे लोग होंगे, और कुछ कहेंगी कि ना जाने वहां क्या-क्या करती होगी।
अर्थात अगर कोई लड़की देर रात तक काम से आती है तो उसकी वर्जिनिटी पर भी शक किया जाता है।
जो कि बहुत ही गलत है, आज 21वीं सदी में भी हम 18वीं सदी की बातों में उलझे हैं, जब पर्दा प्रथा हुआ करती थी।
केवल पर्दा प्रथा खत्म करने से या लिबास बदल लेने से हम आधुनिक नहीं बन सकते।
हमें अपनी इस घटिया सोच को भी बदलना होगा।
विश्वास दिखाना होगा नारी पर, तभी हम पुरुष के बराबर खुद को खड़ा कर सकते हैं।
केवल कहने भर से हम आधुनिक या बराबरी का हक या स्वतन्त्र या आज़ाद नही।
समाज हमसे अलग नहीं, हम ही समाज है, हम बदलेंगे तो समाज भी बदलेगा।
समाज भी हम लोगों से मिलकर बना है। सबसे पहले एक औरत को औरत पर विश्वास करना होगा।
जब हम खुद की बेटी को देर रात बाहर भेजने के लिए ये सोचेंगे कि ना जाने जहां ये जा रही है कैसा माहौल होगा।
क्या हमारी बेटी सुरक्षित रह पाएगी या नहीं, तो हम औरों को कैसे कह सकते हैं कि स्त्री या बेटी का देर रात तक काम करना ग़लत न नहीं।
हमें अपनी बेटियों को भी स्ट्रांग बनाना होगा, और खुद को भी ।