shabd-logo

पाखंड या परम्परा

1 मई 2022

27 बार देखा गया 27
पाखंड या परम्परा






माना भारत देश संस्कृति संस्कार और परंपराओं का देश है, मगर जब परंपराएं पाखंड बन जाती है तो बोझ लगने लगती है।
कभी परंपरा पाखंड बन जाती है और कभी पाखंड परंपरा बन जाते है,  परंपरा कोई भी हो, उसे निभाने से पहले से जान लेना चाहिए ।  

जिस तरह से आज कल भाद्रपद में गणेश विसर्जन, सावन में शिवलिंग का जल अभिषेक इत्यादि बहुत ही परंपराएं चर्चित है।
जैसे दिवाली, होली इत्यादि अनेक त्योहारों पर नए कपड़ों का चलन निकल पड़ा है।
नए-नए और महंगे तोहफों का चलन है, किसी को दिल से बधाई दो ।
तोहफों की अदला बदली से बधाई और शुभकामनाएं बढ़  नहीं जाती,  बल्कि बोझ बन जाती है।
 नई और महंगे से महंगे कपड़ों का दिखावा करने से जो नहीं खरीद सकता उसने हीन भावना आ जाती है त्योहारों के नाम पर यह दिखावा क्यों ?

इन बातों के बारे में ना तो अधिक लोग जानते हैं और ना ही जानना चाहते हैं।  केवल एक भेड़ चाल की तरह चलन बढ़ता जा रहा है।

सावन में जल अभिषेक के लिए कोई विरला ही गंगा से जल लेने के लिए जा पाता था, जिसे कांवड़ लाना कहते हैं, और जल लाने वाले को कांवड़िया कहते हैं।
 नंगे पांव चल कर गंगा जी से गंगा जल लाया जाता है और उसी गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता था।

 इतनी दूर पैदल चलने के कारण कुछ लोगों के पांव में छाले भी पड़ जाते थे एवं अत्याधिक थकान के कारण कुछ लोगों में कमजोरी बहुत आ जाती थी।

लेकिन आज के समय में लोगों ने इस परंपरा को पाखंड बना दिया है,  क्योंकि सुविधाएं भी अधिक हो गई है।
कांवड़िए जिस शहर या गांव से गुजरते हैं वहां के लोग कांवड़ियों की सुविधा के लिए इंतज़ाम करते हैं जैसे कि रहना और खाना इत्यादि, और आजकल तो कांवड़ियों की पैरों की मालिश का भी इंतजाम होने लगा है।

इन सुख-सुविधाओं के चलते किसी कांवड़िए को  कोई परेशानी नहीं होती, इन्हीं सुख-सुविधाओं की वजह से आज कल स्त्रियां तो क्या बच्चे भी कांवड़ लेने जाने लगे हैं। लेकिन अब यहां परंपराएं और श्रद्धा कम और पाखंड अधिक होने लगा है।

इसी तरह गणेश विसर्जन इत्यादि भी त्योहारों को पाखंड बना दिया गया है। घर घर में गणेश जी की मूर्ति लाई जाती है अपने रुतबे  के अनुसार जो जितना बड़ा सेठ वह उतनी बड़ी मूर्ति लाएगा, उतना ही बड़ा लंगर-भंडारा, पाठ-पूजा इत्यादि करके दिखाएगा कि मैंने इतना किया है।  उसके बाद वह भगवान की मूर्तियां कूड़े की तरह पड़ी होती हैं।

यह परंपराएं हैं या प्रखंड है?  इंसान किसे धोखा दे रहा है?  खुद को या ईश्वर को?  ऐसे पाखंडों से ईश्वर खुश होगा क्या? क्या ऐसे पाखंड करने से ईश्वर का अपमान नहीं? परंपराओं को परम्पराओं की तरह निभाना चाहिए ना कि पाखंड बनाना चाहिए।




प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
Monika Garg

Monika Garg

बहुत सुंदर रचना आप भी मेरी रचना पढ़कर समीक्षा दें https://shabd.in/books/10080388

3 मई 2022

भारती

भारती

बहुत ही बढ़िया लिखा आपने लोग परंपराओं के चक्कर में पाखंड फैलाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं और भोले भाले लोग उसे परंपरा समझ कर निभा रहे हैं।

2 मई 2022

prem

prem

2 मई 2022

भारती जी बिल्कुल सही कहा आपने 🙏 धन्यवाद 🌹

12
रचनाएँ
क्या कभी ये हालात बदलेंगे ??
0.0
इस पुस्तक में समसामयिक मुद्दों पर मेरे विचार, जो आज के हालात हैं और जो कल थे। आप इसे पढ़े और अपने विचार व्यक्त करें।
1

कब बदलेंगे ये हालात

17 मार्च 2022
2
0
0

कैसा जीवन या कितना जीवनजीवन कैसा होना चाहिए या कितना जीवन अर्थात ज़िंदगी होनी चाहिए।बहुत ही अहम सवाल है। कुछ लोग समझते हैं कि ज़िन्दगी अगर लम्बी जीए है तो बहुत अच्छा है, कुछ सोचते हैं कि बेशक जीव

2

कब बदलेंगे ये हालात

18 मार्च 2022
0
0
0

कौन कितने में बिकता हैजी हां सच सुना आप सबने , आप जितने चाहें सम्मान पत्र खरीद सकते हैं। आज के समय में सम्मान पत्र बेचे और खरीदें जाते हैं।लेखन की कोई कीमत नहीं रही, लेखक क्या लिखता है इसकी

3

कब बदलेंगे ये हालात

18 मार्च 2022
1
0
0

युवा दोराहे पर क्यों हैं?सबसे पहले हमें युवा की परिभाषा को समझना होगा। ऑंखों में सतरंगी सपने, पंछी के जैसे उड़ान और उमंग से भरा मन, कुछ कर दिखाने का और दुनिया को मुठ्ठी में करने का साहस, यही है युवा क

4

क्या कभी ये हालात बदलेंगे?

20 मार्च 2022
0
0
0

झूठी रस्मेंशादी दो लोगों का ही नहीं दो परिवारों का मिलन होता है। इसलिए कभी-कभी दोनों परिवारों की रस्में, रीति-रिवाज अलग भी होते हैं। माना कि हल्दी, मेंहदी इत्यादि रस्में सभी करते हैं मगर कुछ एक

5

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

21 मार्च 2022
1
0
0

समलैंगिकतासमलैंगिकता एक अहम मुद्दा है, जो कुछ लोगों की नज़र में अपराधिक प्रवृत्ति मानी जाती है, इस विषय पर सभी के अपने-अपने विचार है, कुछ की नज़र में यह रिश्ता जिसे स्त्री समलिंगी को लेस्बियन और

6

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

21 मार्च 2022
1
0
0

स्त्री पर ही लांछन क्यों ?विचार: आज जब समाज स्त्री और पुरुष को समानता का अधिकार देता हैँ किन्तु फिर भी आज एक स्त्री को देर रात अपने घर लौटता देख हमारा समाज बिना कारण जाने उसे 'बदचलन'

7

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

21 मार्च 2022
1
0
0

आज की नारी की स्थिति क्या है ??आज की नारी दोराहे पर खड़ी है । मानते हैं कि नारी चाहती है कि वो पढ़ी-लिखी है तो वो अपने हुनर को व्यर्थ ना गँवाए, यूँ चार दीवारी में कैद रह कर अपनी ज़िन्दग

8

क्या कभी ये हालात बदलेंगे

22 मार्च 2022
1
1
0

प्रभुत्व का दीमक चाट रहा समाज कोआज कहने को स्त्री और पुरुष दोनों बराबर है, मगर क्या यह हकीकत में ऐसा है?क्या स्त्री को हर क्षेत्र में बराबरी का अधिकार है? भ्रुण जांच कराया जाता है, और अगर बे

9

क्या कभी ये हालात बदलेंगे?

23 मार्च 2022
2
2
5

विधवा पुनर्विवाहविधवा पुनर्विवाह एक ऐसा संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय है जिस पर अधिकतर लोग 21 वीं सदी के होते हुए भी नाक मुंह सिकोड़ने लग जाते हैं।विधवा पुनर्विवाह क्यों विवादास्पद है?? पुनर्विवा

10

क्या कभी ये हालात बदलेंगे?

24 मार्च 2022
1
1
0

हम महमां एक "दम" के#कि दम था भरोसा यार दम आवे ना आवे,छड झगड़ा थे कर ले प्यार दम आवे ना आवे।जी हां दोस्तों हम एक दम अर्थात एक स्वांस के ही हैं केवल, ना मालूम कब हमारा आखिरी स्वास हो इसलिए जो स्वास सम अ

11

क्या कभी ये हालात बदलेंगे?

24 मार्च 2022
2
1
0

पिरियडस टाॅकमासिक धर्म प्रजनन क्रिया का एक प्राकृतिक हिस्सा है, जिसमें गर्भाशय से रक्त योनि से बाहर निकलता है। ये प्रक्रिया लड़कियों में लगभग 11 साल से 14 साल की उम्र में शूरू होती है। यही कुदरती प्रक

12

पाखंड या परम्परा

1 मई 2022
2
1
3

पाखंड या परम्परामाना भारत देश संस्कृति संस्कार और परंपराओं का देश है, मगर जब परंपराएं पाखंड बन जाती है तो बोझ लगने लगती है।कभी परंपरा पाखंड बन जाती है और कभी पाखंड परंपरा बन जाते है, परंपरा कोई

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए