युवा दोराहे पर क्यों हैं?
सबसे पहले हमें युवा की परिभाषा को समझना होगा। ऑंखों में सतरंगी सपने, पंछी के जैसे उड़ान और उमंग से भरा मन, कुछ कर दिखाने का और दुनिया को मुठ्ठी में करने का साहस, यही है युवा की परिभाषा। जिससे परिवार ही नहीं राष्ट्र को भी अनेक उम्मीदें हैं।
आज का युवा असम्भव को भी सम्भव करने की ताकत रखता है, मगर अक्सर दिशाहीनता की वजह से अपने लक्ष्य से भटक जाता है।
लक्ष्यहीनता ने आज के युवा को भ्रमित कर दिया, जिस कारण उसे सही राह नहीं सूझता, जिस कारण आज के युवा में धैर्य और आत्मकेंद्र की कमी आ गई है, इस कारण वो लालच,नशा, हिंसा एवं कामुकता की तरफ झूका जा रहा है।
जिसका मूल कारण अभिभावक और सोशल मिडिया ही हैं, आज के अभिभावक व्यवसायिक व्यवस्तता एवं अधिकतर समय फेसबुक या व्टसअप को देते हैं, एकल परिवार भी इस समस्या की जड़ हैं। बच्चों को छोटी उम्र में ही मोबाइल थमाकर अभिभावक अपनी ज़िन्दगी में मस्त हो जाते हैं, बच्चे को बचपन से ही सबकुछ मोबाइल में उपलब्ध है, हर ज़ायज और नाजायज मांग भी पूरी होने जाती है।
बच्चों या युवाओं को अधिक लाड़-प्यार की वजह से भी अभिभावक का उनकी ज़िंदगी में दखल ना करना भी एक कारण है। कहीं परिवार में बड़ा - बुज़ुर्ग ना होने से रीति -रिवाज़ो का भान नहीं होता, संस्कारों का अभाव है। जिससे युवा मिडिया का रूख करता है, उसे आभासी दुनियां बहुत अच्छी लगती है और वो उस तरफ खिंचा जाता है।
अगर किसी घर में बुजुर्ग हैं और बच्चों को किसी बात पर कुछ समझाते या डांट-फटकार लगाते हैं तो माता-पिता बच्चों को समझाने के बजाए बड़ों को ही उनके मामले में दखल ना करने को कहते हैं, ऐसे में बच्चे को संस्कार कहां से मिलेंगे, उस पर बच्चा जो देखता है वही सीखता है, उसके बाद वो भी अपने माता-पिता को अपने मामले में दखल ना देने को कह कर मनमानी करता है।
जहां युवा का कर्तव्य है कि वो बड़े-बुजुर्गों का मान-सम्मान करे, उनके संस्कारों को अपनाएं तो वहीं बड़े-बुज़ुर्गों का भी दायित्व है कि वो भी आज की पीढ़ी को समझें, उनके साथ कदम से कदम मिला कर चले। अत्याधिक प्रतिबंधता भी अत्याधिक स्वच्छंदता का कारण बनती है। यदि हमारे बुज़ुर्ग नव-पीढ़ी के साथ सामंजस्य बैठाए तो वृद्धाश्रम और तलाक की संख्या में स्वत: कमी देखी जा सकेगी, कहीं कोई युवा हताश होकर कर नशे की गर्त में नहीं जाएगा, कहीं कोई हताश होकर आत्महत्या नहीं करेगा।
दूसरा मूल कारण यह भी है कि समाज भी इसका उत्तरदाई है, समाज को भी समय-समय पर ऐसे आयोजन करवाने चाहिए जिससे युवा वर्ग मोटिवेट हो, युवा वर्ग को हमारी सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान मिले, जिससे युवा पीढ़ी भ्रमित ना हो।
यद्धपि सोशल मीडिया जोख़िम भरा होने पर भी बच्चों का कौशल विकसित करने में मुल्यवान अवसर प्रदान करता है। सोशल मीडिया आज के युग का एक अभिन्न अंग बन गया है, एक -दूसरे के साथ जुड़ने का बेहतर जरिया बन गया है। सोशल मीडिया किसी भी जागरूकता को बढ़ाने में और वास्तविक दुनिया को प्रभावित करने में मदद करता है।
जिस तरह परिवार के प्रति हमारा दायित्व है उसी तरह देश के प्रति भी हमारा दायित्व है, असहायों की मदद करना, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना, किसी लाभ या स्वार्थ की इच्छा के बिना दूसरों की मंगल कामना एवं लोककल्याण भी हमारा दायित्व है। हमें युवा पीढ़ी को आयोजन एवं सोशल मीडिया के माध्यम से समझाना होगा, सह मार्गदर्शन करना होगा, ताकि युवा आने वाला कल स्वर्णिम हो, अन्धकारमय ना हो, ताकि आज का युवा दोराहे पर ना होकर अपना लक्ष्य निर्धारित कर सके।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)