नई दिल्ली : प्रसार भारती के सीईओ जवाहर सरकार द्वारा अपने पद से इस्तीफे के संकेत देने के बाद अब सूचना और प्रसारण मंत्रालय नए सीईओ की तलाश में है। ख़बरों की माने तो प्रसार भारती के नए सीईओ के रूप वैंकेया नायडू 1980 के बैच के राजस्थान कैडर के आईएएस अधिकारी सुनील अरोड़ा को नियुक्त करना चाहते हैं। सुनील अरोड़ा का नाम प्रसार भारती के नए सीईओ के रूप में उछलने के बाद यह सवाल भी उछालने लगा है कि आखिकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार पदों पर ऐसे लोगों की नियुक्ति की अनुमति दे रहे हैं जिनका नाम दागदार रहा है। इससे पहले आरबीआई के नए गवर्नर उर्जित पटेल को लेकर भी यह सवाल उठे थे। सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा जिस नाम को प्रसार भारती के नए सीईओ के रूप में चुने जाने की तैयारी है उनका नाम पहले विवादों में रहा है।
कौन हैं सुनील अरोरा ?
सुनील अरोरा का नाम पहले भी विवादों में रहा है लेकिन राडिया टेप में सुनील अरोड़ा का नाम आने के बाद पहली बार उन्हें अरुण जेटली ने जिम्मेदारी तब दी थी जब उन्हें 31 अगस्त 2015 को सूचना व प्रसारण मंत्रालय सेक्रेटरी बना गया। इसी साल अप्रैल में सुनील अरोड़ा रिटायर हुए लेकिन सुनील अरोरा को अगस्त मोदी सरकार ने प्रसार भारती का सलाहकार नियुक्त कर दिया। सुनील अरोड़ा को ब्राडकास्टिंग के क्षेत्र में पहले कोई अनुभव नहीं रहा है। इससे पहले सुनील अरोड़ा एयर इंडिया के सीएमडी थे। एनडीए सरकार ने अरोरा को ऐसे वक़्त पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय का सचिव नियुक्त किया था जब सरकार एफएम चैनलों की ई नीलामी कर रही थी।
राडिया टेप में डील कर रहे थे सुनील अरोड़ा
प्रसार भारती पर नियंत्रण के लिए में अक्सर सत्ताधारी पार्टियां अपने लोगों को दाखिल करती आयी है लेकिन एनडीए सरकार द्वारा अब एक ऐसे व्यक्ति को प्रसार भारती की कमान सौंपने की तैयारी चल रही है जो हमेशा कॉरपोरेट के अनुकूल रहा है। अरोड़ा पर सबसे बड़ा दाग यह है कि राडिया टेप में उनकी नीरा राडिया से 28 पेज की ट्रांसक्रिप्ट सामने आयी थी। जिसमे वह अम्बानी सहित कई उद्योगपतियों का फेवर कर रहे हैं। नीरा राडिया सुनील अरोड़ा को वो तमाम रास्ते बता रही है जिससे कि वह एयर इंडिया के हेड बन सकते हैं। अरोड़ा के कारपोरेट अनुकूल होने का सबसे बड़ा प्रमाण रतन टाटा हैं जो खुद का उनका फेवर कर रहे है। राडिया टेप में सुनील अरोड़ा के साथ हुई बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एविएशन के क्षेत्र में लॉबिंग एक्टिविटी की जाँच करने को कहा था। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आखिर ऐसे विवादित व्यक्ति को प्रसार की कमान सौंपने की अनुमति क्यों दे रहे हैं।
क्या है प्रसार भारती के अंदर की लड़ाई ?
प्रसार भारती के अंदर चल रहे घमासान का प्रमुख कारण प्रसार भारती के चेयरमैन सूर्यप्रकाश और सीईओ जवाहर सरकार की विचारधारा भी रही है। सूर्यप्रकाश को जहाँ संघ का करीबी माना जाता है वहीँ जवाहर सरकार को यूपीए ने सीईओ के पद पर बैठाया था। जवाहर सरकार पूर्व सरकार में कल्चरल सेक्रेटरी रहे हैं और कहा जाता है कि उन्हें सोनिया गाँधी ने चुना था। ख़बरों की माने तो साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी का इंटरव्यू रुकवाने के लिए जवाहर सरकार और दूरदर्शन के न्यूज़ हेड एएम खान ने कई प्रयास किये। जैसे ही मोदी सरकार सत्ता में आयी तो उन्होंने सबसे पहले एसएम खान को बाहर का रास्ता दिखाया। आरएसएस जब प्रसार भारती में अपने लोगों को दाखिल कर रहा था तब भी जवाहर सरकार ने सूर्य प्रकाश को रोकने की कोशिश की। हालाँकि सूर्यप्रकाश दूरदर्शन और आकशवाणी में राईट विंग के कई पत्रकारों को दाखिल कराने में सफल हुए।
(राडिया और सुनील अरोरा के बेच बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट नीचे देखें )