हर भाषा की जननी संस्कृत को देव वाणी कहा जाता है | एक समय सिरमौर रही संस्कृत भाषा आज के परिदृश्य में गायब सी होती जा रही है | भाषा में सहजता हो प्रवाह हो तो उसकी गतिशीलता बनी रहती है | लेकिन सदा क्लिष्ट समझी जाने वाली भाषा संस्कृत जो सनातन है की हालत ठीक नहीं | यह संस्कृत के साथ ही नहीं है हिंदी समेत अन्य भाषाएँ भी स्वयं को साबित करने के लिए निरन्तर संघर्ष कर रही हैं | विश्वप्रसिद्ध कृति रामायण संस्कृत भाषा में ही है लेकिन वास्तव में संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की जरुरत थी | जिसके लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किये गए |
उल्लेखनीय है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने संस्कृत को पूरे विश्व में नामचीन शैक्षणिक संस्थान भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान यानि आईआईटी में पढ़ाने की घोषणा की है | मानव संसाधन विकास मंत्रालय केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इस बाबत कहा कि इससे संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी | हालाँकि इस घोषणा पर भी सियासत गरम हो सकती है | क्योंकि कुछ कतिथ राजनितिक विरोधी इसको भी आर एस एस से प्रेरित कदम ठहराने की कोशिश कर सकते हैं | जो भी हो लेकिन इस घोषणा का तो स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि हम चाहे कितने भी आधुनिक क्यों ना हो जाएँ लेकिन अपनी देववाणी जो हमारे पुराणों उपनिषदों की भाषा है के पराभव से अपना आत्मसम्मान खो देँगे |
बहरहाल बड़ा सवाल है कि आज के बाजारीकरण के दौर में क्या वाकई संस्कृत भाषा के दिन बहुरेंगे? इसका उत्तर तो भविष्य में मिलेगा लेकिन इसके पुनरोद्धार के लिए वर्तमान में सरकार जनता अथवा किसी भी स्तर पर किसी द्वारा भी किये प्रयास का समर्थन करना हमारी नैतिक जिम्मेवारी है |