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क्या यह समझदारी है

20 नवम्बर 2018

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* क्या यह समझदारी है *
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हर समय समझदारी का बोझ लिये रहना (गंभीर बने रहना), क्या समझदारी है;
हर बार समझदारी दिखलाते रहना, क्या समझदारी है। ???


कुछ कुछ गलती करते रहना (सीखते रहना), भी समझदारी है;
कभी कभी समझदारी न दिखलाना, भी समझदारी है।


कुछ कुछ प्रयोग करते रहना (नया या नये तरीके से करना), भी समझदारी है;
जीवन के भिन्न भिन्न अनुभव लेना, भी समझदारी है।


परस्थिति के अनुरूप, लचीलापन लिये, सिद्धांतों (जो समाविष्ट न हो सके) को छोड़, जो उचित लगे करना, ही समझदारी है;
यह है अपनी जिंदगी, खुल कर जीना, स्वयं अनुसार जीना, ही समझदारी है।

जीवन का सम्मान करना, बोझ मुक्त रहना, आनंद में रहना, आपस में जुड़े रहना, ही समझदारी है;
निज को जो अनुभव होते हैं, उनका निज केलिये महत्त्व समझना, सम्मान करना, ही समझदारी है।

कौन है मूर्ख, सभी समझदार हैं, फिर समझदारी पर चर्चा, क्या समझदारी है; ???
हम स्वयं को समझदार मानते हैं, फिर समझदारी को समझना, क्या समझदारी है।।
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उदय, पूना

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प्रकृति और हम ( बच्चों केलिए )

16 नवम्बर 2018
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कविता : जीवन और परम्परा

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18 नवम्बर 2018
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शीर्षक - उल्टा सीधा प्रस्तुत है उल्टा पर सीधा करके। जीवन में पूरी पूरी स्वतंत्रता है;जीवन में पूरी पूरी छूट है।हम स्वयं की ऐसी तैसी करते रहें; स्वयं की ऐसी की तैसी करते रहें;स्वयं की पूरी दुर्दशा करते रहें;इसकी भी पूरी पूरी छूट है;हम इसका उल्टा भी कर सकते हैं, यहां इ

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यह मेरा जीवन कितना मेरा है ?

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क्या यह समझदारी है

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* क्या यह समझदारी है * ? ? ?हर समय समझदारी का बोझ लिये रहना (गंभीर बने रहना), क्या समझदारी है;हर बार समझदारी दिखलाते रहना, क्या समझदारी है। ???कुछ कुछ गलती करते रहना (सीखते रहना), भी समझदारी है;कभी कभी समझदारी न दिखलान

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22 नवम्बर 2018
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22 नवम्बर 2018
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*गहराई की छिपी वर्जनाओं के स्वर*( "स्वयं पर स्वयं" से ) मैं भटकता रहामैं भटकता रहा; समय, यूं ही निकलता रहा; मैं भटकता रहा। उथला जीवन जीता रहा;तंग हाथ किये, जीवन जीता रहा। न किसी को, दिल खोल कर अपना सका;न किसी का, खुला दिल स्वीकार कर सका;न आपस की, दूरी मिटा सका;न सब कु

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जीवन जीना आता ही नहीं हम को जीना आता ही नहीं; हम को जीना आता ही नहीं ; हम को जीना आता ही नहीं। कहीं पहुंच जाने के चक्कर में रहते हैं;जीवन यात्रा का आनंद जाना ही नहीं। और, और, और अधिक चाहते रहते हैं;नया पकड़ने केलिए, मुट्ठी ढ़ीली करना आता ही नहीं। दूसरों को जिम्मेदार ठहरता रहता है;बदलना तो स्वयं को है,

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