लखनऊ ब्यूरो-: बसपा सुप्रीमो मायावती इस चुनाव में अपनी जबरदस्त शिकस्त से बदहवाश सी लग रही हैं। तभी तो इस बार की जबरदस्त पराजय के लिये वह अपनी सियासी खामियों को न देखकर हार का ठीकरा ई.वी.एम. पर फोड कर वह कोर्ट जाने की तैयारी कर रही हैं। लेकिन, आम बसपाइयों और खुद उनके बहुत करीबी रहे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के गले की नीचे उनकी यह दलील नहीं उतर रही है। नतीजतन, कभी उनके अनन्य विश्वासपात्र रहे कमलाकांत गौतम और गंगाराम अंबेदकर जैसे दिग्गज बसपाइयों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इसे लेकर आम बसपाइयों में भी जबरदस्त खलबली मची हुई है।
दो बार एम.एल.सी. रहे कमलाकांत गौतम इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, मिर्जापुर, आजमगढ, बस्ती, झांसी, चित्रकूट तथा आगरा में पार्टी के कोऑर्डिनेटर भी रह चुके हैं। इसके अलावा, विधान परिषद में बसपा विधान मंडल दल के नेता और मायावती सरकार में वित्तमंत्री भी रहे है। इनकी ही तरह गंगाराम अंबेदकर भी समय समय पर मंडज जोन इलाहाबाद, देवीपाटन और फैजाबाद में बसपा के कोऑर्डिनेटर होने के अलावा मायावती के विशेष कार्याधिकारी भी रहे हैं।इन दोनों नेताओं का कहना है कि कांशीराम के न रहने पर मायावती लगातार चुनाव हारती ही चली आ रही हैं। 2009 के लोकसभाई चुनाव के समय से ही इनके हारने का जो दौर शुरू हुआ है, वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसके लिये कभी तो उन्होंने कार्यकर्ताओं के सिर पर हार की जिम्मेदारी मढी है और कभी किसी और बात को दोषी ठहराया है।
इस बार और कुछ नहीं मिला, तो ई.वी.एम. के ही मत्थे अपनी कमजोरी थोप दी है। इसके विपरीत, उन्होंने आत्मचिंतन कर अपने को कभी भी जिम्मेदार नहीं माना है। कमलाकांत गौतम का कहना है कि 2012 के चुनाव में हुई पराजय के बाद उन्होंने मायावती को कुछ सुधार करने का सुझाव दिया था। इस पर उन्हें 12 घंटे के अंदर ही चेन्नई जाने का हुक्म सुना दिया गया। इस पर भी उनका कोप नहीं शांत हुआ, तो हिमाचल और बिहार जाने का फरमान जारी कर दिया गया। कुछ ऐसी ही व्यथा कथा गंगाराम अंबेदकर की भी है। इसका आम बसपाइयों पर बडा नकारात्मक असर पड रहा है। ऐसा ही रहा तो वह दिन अब ज्यादा दूर नहीं, जान पड रहा है, जब बसपा में मायावती और बडी कम संख्या में ही बसपाई रह जायेंगे। इनके तानाशाही रवैये को लेकर आम बसपाइयों में भी इनके खिलाफ बगावत करने की सुगबुगाहट होने लगी है।
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