देहरादून: देवभूमि उत्तराखण्ड में लोकायुक्त का गठन होगा कि नहीं, सस्पेंस अभी भी बरक़रार है। लोकायुक्त विधेयक प्रवर समिति के हवाले है और सियासी हलकों में इसके पास होने या न होने को लेकर बहस छिड़ी है। मगर जिस रूप में लोकायुक्त पेश हुआ है, सरकार ने उसे वैसा ही लागू कर दिया तो उस सूरत में हुक्मरानों और राजनेताओं के लिए सरकारी अफसरों और कार्मिकों पर रौब दिखाना आसान नहीं रहेगा।
दरअसल, हर हुक्म पर अफसरों के पास अब बहाना होगा कि फाइल पर लिखकर दे दीजिए सर। जानकारों की मानें तो लोकायुक्त लागू होने के बाद लोक सेवकों के लिए नियमों को तोड़ना आसान नहीं रहेगा। बहरहाल, सरकार भी लोकायुक्त के कुछ प्रावधानों को लेकर असहज है। उसके रक्षात्मक रुख पर कांग्रेस भी निशाने साध रही है। सियासत में सरकार के मंत्रियों पर ये सवाल उठते हैं कि उनका नौकरशाही पर कोई नियंत्रण नहीं है। वो बेलगाम हो गई है। मगर दूसरी ओर नौकरशाही के अपने तर्क हैं। कई बार हुक्मरानों और अफसरों की जुगलबंदी भी सवालों में रही है।
मगर काम से काम रखने वाले लोक सेवकों का मानना है कि मजबूत लोकायुक्त आने से हुक्मरानों और अफसरों के मध्य मर्यादा की लक्ष्मण रेखा खिंच जाएगी, जिसे लांघना दोनों के लिए आसान नहीं रहेगा। एक वरिष्ठ नौकरशाह का कहना है कि मंत्री या विधायक जी, यदि फोन पर उन्हें कोई निर्देश देंगे और वह नियमों के अनुरूप नहीं होगा, तो निसंकोच कह सकेंगे, ‘ऊपर लोकायुक्त है सर! लिखकर दे दीजिए।’
क्यों असहज हो रही सरकार ?
लोकायुक्त विधेयक में कुछ प्रावधानों को लेकर सरकार असहज है। मसलन विधेयक में लोकायुक्त स्वप्रेरणा से कार्रवाई कर सकते हैं। इस प्रावधान से लोकायुक्त के बेहद ताकतवर हो जाने की संभावना है। विधेयक में दूसरा प्रावधान मुख्यमंत्री, मंत्री व विधायकों को लोकायुक्त के दायरे में लाया जाना है। सूत्रों की मानें तो सत्तारूढ़ दल के कई विधायक इस प्रावधान को लेकर असहज हैं। संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ जनादेश मिला है। सरकार मजबूत लोकायुक्त बनाने को संकल्पबद्ध है। विधेयक पारित करने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन सरकार जल्दवाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहती। लोकायुक्त अधिनियम बनाने से पहले वह उन सभी लोगों का पक्ष जान लेना चाहती है, जो उसके दायरे में आ रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा कि विधानसभा में विपक्ष ने लोकायुक्त बिल का विरोध नहीं किया। इसके बावजूद सरकार ने उसे प्रवर समिति को भेज दिया। सरकार की मंशा पर बड़ा सवाल है। वह पीएम नरेंद्र मोदी की राह पर है। गुजरात में लोकायुक्त नहीं बना। केंद्र में लोकपाल को कुछ अता-पता नहीं है। लोकायुक्त पर भाजपा बेनकाब हो गई है।