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जब व्यक्ति का अपनी सोच और उसे पूर्ण करने का पूर्ण विश्वास होता है तो वह अवश्य सफल होता है। प्रत्येक प्रयास सफल होने की सीख देता है और आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करता है। विश्वास से ही परिश्रम करने का साहस मिलता है और सफलता प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। विश्वास जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है

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जैसा की मैंने आपको बताया, मेरा जन्म भदोही जिले के एक छोटे से गांव मोहनपुर में हुआ, जो बहुत ही सुंदर और प्रकृति से भरा है। मेरे गाँव की भौगोलिक संरचना कुछ ऐसी है की यह भदोही और इलाहबाद जिले के बिच में है | इलाहाबाद कुछ ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। यह जगह प्रयाग कुंभ मेला और कई  अन्य सांस्कृतिक विरास

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मेरा पूरा गाँव मेरे परीवार के प्रत्येक सदस्य को सम्मान की दृष्टी से देखता था, अभी भी वह सम्मान बरकरार है या नहीं यह कहना थोड़ा मुश्किल है | लेकिन जो सम्मान मुझे भी मिलता आया है उसे मै अपनी बड़ी उपलब्धी मानता आया हूँ, (संभवतः अब यह भ्रम टूट गया है)| गाँव में सभी अपनो से बड़ो या छोटो को भी जिन्हें सम्मान

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1. प्रेय/प्रेयस              क-अत्यधिक प्रिय              ख-प्रेम              ग-शत्रु                2. प्रोत्साहक         क-प्रेरणा           ख-उत्साह देने वाला            ग-उमंग              3. बड़का          क-सबसे बड़ा           ख-बहिन              ग-लड़का               4. बड़प्पन             

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तन की पवित्रता से अधिक मन की पवित्रता महत्त्वपूर्ण है। जो तन से पवित्र होते हैं और मन मैला होता है वे कुटिल होते हैं नाकि पवित्र। तन की पवित्रता स्वास्थ्यवर्धक है जबकि मन की पवित्रता परमार्थवर्धक है। दुःख में काम आने वाला मन से पवित्र होता है। जो दूजों के दुःख में काम नहीं आता है वह कभी मन से पवित

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1. चौबारा            क-खिड़की             ख-दरवाजा             ग-चहुं ओर खिड़की दरवाजे वाला कमरा               2. चौरा        क-चार दिशाएं          ख-चबूतरा           ग-चोर             3. चौर्योन्‍माद         क-चोरी करने का चस्‍का          ख-चोर             ग-दस्‍यु              4. च्‍युति          

              दुनियां में हमारे पर्दापर्ण होते ही हम कई रिश्तों से घिर जाते हैं .रिश्तों का बंधन हमारे होने का एहसास करता हैं .साथ ही अपने दायीत्यों व् कर्तब्यों का.जिन्हें हम चाह कर भी अनदेखा नहीं कर सकते और न ही उनसे बन्धनहीन .लेकिन सच्ची दोस्ती दुनियां का वह नायाब तोहफा हैं जिसे हम ही तय करते हैं

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    पूर्व लेख में गण्डमूल इतने अशुभ क्यों के अन्तर्गत सन्धि की चर्चा के साथ-साथ यह बता चुके हैं कि सन्धि कैसी भी हो अशुभ होती है। बड़े व छोटे मूल क्या हैं। गण्डान्त मूल और उसका फल क्या है। अब इसी ज्ञान में और वृद्धि करते हैं।    अभुक्त मूल-ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्त की 1घटी(24मिनट) तथा मूल नक्षत्र की

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1. छिनाला            क-चरित्रभ्रष्ट            ख-दोषी            ग-व्यभिचार              2. छोकड़ी        क-टोकरी          ख-लड़की          ग-लड़का            3. जघन्य         क-अति निन्दनीय          ख-जंघा             ग-कठिन             4. जनाचार                क-घनी बस्ती           ख-जनता         

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                                              यह जान लें कि सन्धिकाल सदैव से ही अशुभ, हानिकारक, कष्टदायी व असमंजस युक्त होता है। सन्धि से तात्पर्य एक की समाप्ति और दूसरे का प्रारम्भ, अब चाहे वह समय हो या स्थान हो या परिस्थिति हो। ऋतुओं की सन्धि रोगकारक होती है। ज्योतिष में अनेक प्रकार की सन्धि है, ज

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मै ........., छोड़िये भी | यहाँ, मेरे नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यह अधिकप्रभावशाली  नहीं है |मैंने अपने जीवन के २० वर्ष पूरे कर लिए है | मैं  भदोही से हूँ, जो पूरी दुनिया में अपने वस्त्र निर्यात के लिए जाना जाता है। मेरे पास अपने बारे में बताने के लिए कोई और अधिक सामग्री नहीं है, क्योकी मै अ

कल से ही देख रहा हु ! कुछ दिनों पहले ही हमारे गोदाम में एक खम्बे पर एक कबूतरी ने अंडे दिए थेजो अब बच्चो में परिवर्तित हो चुके है ! चूँकि वे एक बंद गोदाम में जन्मे है इसलिए बाहरी वातावरण की तुलना में उन्हें उड़ने का अभ्यस्त होने में जरुरत से ज्यादा समय लगना है ,बच्चे माँ की आधी बराबरी इतने बड़े तो हो ह

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1. चुहल           क-मजबूत           ख-हल्का           ग-हंसी, ठिठौली             2. चूषक       क-चूहा         ख-चूसने वाला         ग-लकड़ी           3. चैत्यक        क-पीपल         ख-चैत्र            ग-चिंता            4. चैर्गिद               क-शार्गिद          ख-चौकस           ग-चहुंओर          उत

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हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। आगे पढ़ें- चाक्षुषोपनिषत् स्वस्थ नेत्रों के लिए रामबाण है हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। नेत्रों में पीड़ा हो या उसमें रोशनी न हो तो वे व्यर्थ हैं। नेत्र नीरोग रहें उसमे

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