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भाकियु ने 20 को लोहारू में बुलाई प्रदेश स्तरीय रैली, किसानों से जुड़े अनेक मुद्दों पर होगी चर्चा : बड़े नेताओं को दिया न्यौता

13 नवम्बर 2015

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 भारतीय किसान यूनियन ने किसानों के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा व रणनीति तय करने के लिए आगामी 20 नवंबर को लोहारू में प्रदेश स्तरीय किसान रैली आहूत की है। उक्त जानकारी देते हुए भाकियु के जिला प्रधान मेवा सिंह आर्य ने बताया कि इस रैली में भाकियु के राष्ट्रीय महासचिव राकेश टिकैत व दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष युद्धवीर सिंह सहित प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के अनेक नेताओं को आमंत्रित किया गया है। भाकियु जिला प्रधान ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार भी पूर्व सरकार की भांति किसानों के प्रति उपेक्षा का रवैया अपना रही है। उन्होंने बताया कि किसान लंबे समय से डा. एमएस स्वामीनाथन राष्ट्रीय कृषि आयोग की सिफारिशें लागु करने की मांग करते आ रहे हैं और यह भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल रहा है। इसी प्रकार हम लोग किसान को कर्जमुक्त करने, तेज चलने वाले घरेलु व व्यावसायिक सभी प्रकार के मीटर बदलने, किसानों को पर्याप्त बिजली देने, खेत-ढाणियों में भी सिटी फीडर की घरेलु बिजली देने, नए कनेक्सन पर 1 लाख रूपए लेने का कथित काला कानून वापिस लेने, बिजली निगमों द्वारा मनमाने सर्कुलरों पर रोक लगाने, गांव-गांव में आवारा पशुओं के जमघट से किसानों को छुटकारा दिलाने, राजस्व विभाग की कथित मामानी से छुटकारा दिलाने के लिए हर 5-5 गावों पर शिविर लगाकर सभी प्रकार की गिरदावरी व इंतकाल दर्ज करवाने, हर प्रकार का मुआवजा काश्तकार को देने, व्यापारियों द्वारा कथित तौर पर खल-बिनौला की 45 से 48 किलोग्राम तक की भर्ती का बैग 50 किलोग्राम का करके बेचने व माल लेते समय धर्मकांटा की कटौती करने तथा लेते समय कम देने पर रोक लगाने की मांग करते आ रहे हैं मगर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने बताया कि 20 की किसान रैली में हम उपरोक्त मुद्दों पर विचार कर आगामी आंदोलन की रणनीति तैयार करेंगे जिसमें तेज चलने वाले मीटरों को उखाड़ फेंकने जैसा फैसला भी हो सकता है।

यहां गौरतलब होगा कि लोहारू, बाढड़ा सहित भिवानी जिले में 80 के दशक से बार-बार उठ खड़े होने वाले किसान आंदोलनों की पृष्ठभूमि में बिजली व उससे जुड़े वे मुद्दे रहे हैं जिनका इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए तो तकरीबन हर दल ने किया मगर समाधान के नाम पर उन्हें हर बार दफन करने के प्रयास किए जाते रहे। अगर प्रदेश की भाजपा सरकार ने भी समय रहते किसानों के आक्रोश को शांत करने का प्रयास नहीं किया तो संभव है कि कोई नया किसान आंदोलन इस धरती से फूट पड़े।

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