मां बनकर मैंने जाना
मां की ममता को
ना जाने कितनी रातें वह
यूं ही गुजार देती है।
अपने नींदों को खराब करके
बच्चों का ख्याल रखती है।
मां बनकर मैंने जाना
कितना त्याग समर्पण है मां में
बच्चों के सामने अपना दुख दर्द भूल कर
उनके जीवन में खुशियां लाने के लिए
अपनी खुशियों को उन पर वार देती है।
अपने अस्तित्व को मिटा कर भी
वह हंसती है खिलखिलाती है
वह गीत खुशियों के गुनगुनाती है
अपने कर्तव्य के पथ पर वह
पन्नाधाय बन जाती है।
रण में पुत्र को पीठ पर बांधकर
लक्ष्मीबाई बनकर वह
देश की शान बढ़ाती है।
शिवाजी को गढ़ कर वह
जीजाबाई बन मराठों का गौरव
याद दिलाती है।
इतिहास भरा है मां के गान से
ईश्वर का उपहार है वह
जन्नत है उसके पैरों के नीचे
प्रेम ,श्रद्धा, विश्वास है वह
हे! नादान पुरुष तू
मां का कभी तिरस्कार मत कर
मां सिर्फ मां है और
मां का होना ही
सबसे खूबसूरत पल है
तेरी जिंदगी का।
(©ज्योति)