मत रोको मेरी उड़ान को
मत रोको मेरी पहचान को
जब भी कुछ नया करती हूं
तुम्हारे विचार रौद देते हैं
नहीं बर्दाश्त कर पाते वे
एक स्त्री का आगे बढ़ना।
तुम बार-बार देते हो ताने मुझे
कभी मेरी शक्ल पर
कभी मेरी अक्ल पर
कभी मेरी पढ़ाई पर
तो कभी मेरी परवरिश पर
पर क्यों नहीं सोच पाते तुम
तुम्हारी मां भी एक स्त्री थी
फिर कैसे करते हो तुम विरोध
एक स्त्री के आगे बढ़ने का।
काश तुम समझ पाते
एक पुरुष का सुलझा होना
एक स्त्री की बहुत से उलझनो को
विराम लगा देता है।
(© ज्योति)