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मधुशाला / भाग ४

28 जुलाई 2022

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कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला,

हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,

आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,

कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।६१।


आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला

आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,

छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,

एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।६२।


आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,

भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,

और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,

अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।६३।


सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला

छलक रही है जिसमंे माणिक रूप मधुर मादक हाला,

मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ

जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।


दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,

भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,

नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,

अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ -अदाई मधुशाला।।६५।


छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,

आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',

स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,

बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।


क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,

क्या जीना, निरंिचत न जब तक साथ रहे साकीबाला,

खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,

मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।६७।


मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!

मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!

इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,

सिंधँु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।।६८।


क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,

क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,

थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,

प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।६९।


लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,

लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,

लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,

लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।७०।


कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,

दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,

मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,

जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।७१।


ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,

गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,

साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,

दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।७२।


क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,

भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,

मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,

काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।।७३।


प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,

नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,

जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,

जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।७४।


अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला,

क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,

तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,

हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।७५।


यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,

पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,

क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के

डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।७६।


यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,

यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,

हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,

मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।।७७।


याद न आए दूखमय जीवन इससे पी लेता हाला,

जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,

शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,

पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।।७८।


गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला

भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,

रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी

सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।७९।


यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,

पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,

यह अंितम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,

पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।८०।

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रचनाएँ
मधुशाला
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मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है। मधुशाला पहलीबार सन 1935 में प्रकाशित हुई थी। कवि सम्मेलनों में मधुशाला की रूबाइयों के पाठ से हरिवंश राय बच्चन को काफी प्रसिद्धि मिली और मधुशाला खूब बिका। हर साल उसके दो-तीन संस्करण छपते गए। मधुशाला की हर रूबाई मधुशाला शब्द से समाप्त होती है। हरिवंश राय 'बच्चन' ने मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदद से जीवन की जटिलताओं के विश्लेषण का प्रयास किया है। मधुशाला जब पहली बार प्रकाशित हुई तो शराब की प्रशंसा के लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की। बच्चन की आत्मकथा के अनुसार, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है। मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय 'मधुबाला' और 'मधुकलश' का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित है। उमर खैय्याम की रूबाइयां को हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के प्रकाशन से पहले ही हिंदी में अनुवाद कर चुके थे। बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया।
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