shabd-logo

मधुशाला / भाग ६

28 जुलाई 2022

55 बार देखा गया 55

साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,

क्यों पीने की अभिलाषा से, करते सबको मतवाला,

हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,

हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।


साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,

पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,

जीवन भर का, हाय, परिश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,

भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।


जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,

जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,

मतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,

दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।


नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,

नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,

साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,

इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।


मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,

क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,

साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,

प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।


क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,

क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,

पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!

मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।


देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,

देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,

समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,

किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।


एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,

भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,

छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,

विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।


बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,

भाँत भाँत का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,

एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,

जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।


एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,

एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,

एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,

आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।११०।


जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,

छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,

आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,

कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।


कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,

कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,

कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,

प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२।


बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,

कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,

पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,

मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।


छोड़ा मैंने पंथ मतों को तब कहलाया मतवाला,

चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,

अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,

क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।


यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,

तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,

जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को

अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।


कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,

टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,

कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,

कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।११६।


कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,

कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,

कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,

कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।११७।


दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!

मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,

मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,

मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।।११८।


मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,

प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,

इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -

मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।


किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,

इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,

अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,

एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०।

7
रचनाएँ
मधुशाला
0.0
मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है। मधुशाला पहलीबार सन 1935 में प्रकाशित हुई थी। कवि सम्मेलनों में मधुशाला की रूबाइयों के पाठ से हरिवंश राय बच्चन को काफी प्रसिद्धि मिली और मधुशाला खूब बिका। हर साल उसके दो-तीन संस्करण छपते गए। मधुशाला की हर रूबाई मधुशाला शब्द से समाप्त होती है। हरिवंश राय 'बच्चन' ने मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदद से जीवन की जटिलताओं के विश्लेषण का प्रयास किया है। मधुशाला जब पहली बार प्रकाशित हुई तो शराब की प्रशंसा के लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की। बच्चन की आत्मकथा के अनुसार, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है। मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय 'मधुबाला' और 'मधुकलश' का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित है। उमर खैय्याम की रूबाइयां को हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के प्रकाशन से पहले ही हिंदी में अनुवाद कर चुके थे। बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया।
1

मधुशाला / भाग १

28 जुलाई 2022
7
0
0

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१। प्यास तुझे तो, विश

2

मधुशाला / भाग २

28 जुलाई 2022
3
0
0

बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला, हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला, राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए, जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।।२१। सब मिट जाए

3

मधुशाला / भाग ३

28 जुलाई 2022
2
0
0

वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला, रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला, विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में, पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१। चित्रकार बन

4

मधुशाला / भाग ४

28 जुलाई 2022
0
0
0

कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला, हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला, आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है, कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।६१। आज मिला अ

5

मधुशाला / भाग ५

28 जुलाई 2022
0
0
0

ढलक रही हो तन के घट से,संगिनि,जब जीवन-हाला, पात्र गरल का ले जब अंतिम साकी हो आनेवाला, हाथ परस भूले प्याले का,स्वाद-सुरा जीव्हा भूले, कानों में तुम कहती रहना,मधुकण,प्याला,मधुशाला।।८१। मेरे अधरों

6

मधुशाला / भाग ६

28 जुलाई 2022
1
0
0

साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला, क्यों पीने की अभिलाषा से, करते सबको मतवाला, हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो, हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१। साकी,

7

मधुशाला / भाग ७

28 जुलाई 2022
2
0
0

वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला, जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबत प्रतिपल, वह मेरा प्याला, मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है, भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१। म

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए