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मधुशाला / भाग ७

28 जुलाई 2022

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वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,

जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबत प्रतिपल, वह मेरा प्याला,

मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,

भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१।


मतवालापन हाला से लेकर मैंने तज दी है हाला,

पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,

साकी से मिल, साकी में मिल, अपनापन मैं भूल गया,

मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२।


मदिरालय के द्वार ठोकता किस्मत का छूंछा प्याला,

गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,

कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!

बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।१२३।


कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,

कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!

पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?

फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।१२४।


अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,

अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,

फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -

अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५।


'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'

'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',

क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी

'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।१२६।


कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,

कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,

कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,

फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।१२७।


जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,

जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,

जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,

जितना हो जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८।


जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,

जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,

आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,

पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९।


हर जिहवा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला

हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला

हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की

हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।१३०।


मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,

मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,

मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,

जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।१३१।


यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,

यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,

किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,

नहीं-नहीं किव का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।१३२।


कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,

कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!

पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,

कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।१३३।


विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला

यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,

शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,

जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।१३४।


बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,

कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,

मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,

विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५। 

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रचनाएँ
मधुशाला
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मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है। मधुशाला पहलीबार सन 1935 में प्रकाशित हुई थी। कवि सम्मेलनों में मधुशाला की रूबाइयों के पाठ से हरिवंश राय बच्चन को काफी प्रसिद्धि मिली और मधुशाला खूब बिका। हर साल उसके दो-तीन संस्करण छपते गए। मधुशाला की हर रूबाई मधुशाला शब्द से समाप्त होती है। हरिवंश राय 'बच्चन' ने मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदद से जीवन की जटिलताओं के विश्लेषण का प्रयास किया है। मधुशाला जब पहली बार प्रकाशित हुई तो शराब की प्रशंसा के लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की। बच्चन की आत्मकथा के अनुसार, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है। मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय 'मधुबाला' और 'मधुकलश' का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित है। उमर खैय्याम की रूबाइयां को हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के प्रकाशन से पहले ही हिंदी में अनुवाद कर चुके थे। बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया।
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वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला, रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला, विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में, पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१। चित्रकार बन

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