19 वीं सदी में तिरुवनंतपुरम एक त्रावणकोर रोयल परिवार द्वारा शासित प्रदेश था. उन्होंने अपने प्रदेश में एक बर्बर और दमनकारी कानून लागु कर रखा था. इस कानून की वज़ह से महिलाओं को अपमानित होना पड़ता था. मुलककराम या ब्रेस्ट कर के नाम से यह कानून चलाया जाता था जिसका भुगतान दलित महिलाओं के लिए अनिवार्य था. महिलाओं से उनके स्तन के आकार के अनुसार कर लगाया जाता था.
जाने कितना भयावह था ब्रेस्ट कर कानुन
* इस कानून में दलित महिलाओं को अपने स्तनों को कवर करने की अनुमति नहीं थी, ताकि दलितो को अपमानित किया जा सके और उन्हें आसानी से पहचाना जा सके.
* दलित महिलाओं को आभूषण पहनने का भी अधिकार नही था.
* दलित पुरुषों को मूंछें रखने का अधिकार नही था ताकि उन्हे तुच्छ रुप से देखें.
नंगली ने कैसे बदल दिया यह कानून
इस बुरे वक्त में नंगली नाम की महिला के साहसिक कदम के चलते इस कानून को खत्म करना पड़ा. उसकी अवज्ञा के कारण समाज में क्रांतिकारी बदलाव आय़ा था उस घटना के बाद स्तन कर खत्म करने में मदद मिली.
नंगली तिरुवनंतपुरम के चेरथला की एक दलित महिला थी वह उस परिवार से वास्ता रखती थी जो स्तन कर का भुगतान करने में असर्मथ थे.
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प्रांत के कर संग्राहकों उनकी बकाया राशि इकट्ठा करने के लिए उसके घर आए हुए थे, नंगली ने इसका विरोध किया और उनकी मांग को मानने से इनकार कर दिया. उसने बहादुरी के साथ उन्हें ललकारा. और वह अपने स्तनों को एक झटके में काट दिया और एक केले के पत्ते में कलेक्टरों को प्रस्तुत कर दिया.नंगली के इस रुप को देख कर संग्राहकों डर के मारे भाग गए . नंगली लहुलुहान हो गई और उसके बाद उसकी मौत दरवाजे पर ही हो गई .यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे राज्य में फैल गया.
जिसके बाद उसके पति ने भी उसके चिता कि आग में कूद कर अपनी जान दे दी. जो पहले से आरही प्रथा की बजाय एक पुरुष ने सती होने का उदाहरण दिया था.
उसकी मौत के बाद, मुकुट, त्रावणकोर में स्तन कर को रद्द कर दिया गया .और उस राज्य में जहां वह रहते थे उसके सम्मान में Mulachiparambu (अर्थ, छाती औरत की भूमि ) के रूप में जाना जाने लगा ।