मैं ज़मीं ज़ाद हूँ अम्बर ने दुआ दी है मुझे
चाँद ने अपने सितारों की क़बा दी है मुझे
कोहसारों से न झरनों से सदा दी है मुझे
सिर्फ़ उसने मेरी आवाज़ सुना दी है मुझे
वक़्त ने छीन लिया मेरा असासा और फिर
मेरे अपनों ने कड़ी धूप दिखा दी है मुझे
इश्क़ सीने मेन दहकता था अलाव की तरह
और फिर शहर के लोगों ने हवा दी है मुझे
उसके इंकार को इकरार समझ बैठा हूँ
उसकी नफ़रत ने मुहब्बत की अदा दी है मुझे
पहले तो ग़ौर से देखी है ये फ़ाइल दिल की
जब समझ में नहीं आयी तो बढ़ा दी है मुझे
हाँ मेरे पाँव की गर्दिश नहीं रुकती पल भर
मेरी वहशत ने कहाँ कोई शिफ़ा दी है मुझे
क्यूँ किसी ग़ैर आवाज़ सुनूँ ऐ हर्षित
मेरे ख़ालिक़ ने मेरी अपनी नवा दी है मुझे