सैकड़ों सालों से उर्दू शायरी लगातार करवट बदलती रही है
ये करवटें बेकरारी के सबब के साथ साथ दूसरी जानिब होने वाली तखलीक पर नज़र रखने के लिऐ भी थी इसी तेज़ नज़र के साए में कितने खूबसूरत अशआर उर्दू के वसीअ दामन में गुल बूटे टांकने का काम लगातार जारी है इसी सिलसिले की मज़बूत कड़ी हैं जनाब हर्षित मिश्रा जो ग़ज़ल के फूल को तरो ताज़ा बनाए रखने में अपनी फिक्र का खून इसमें शामिल कर रहे हैं ताकि ग़ज़ल की हथेली पर रंगे हिना मुसलसल गहरा बना रहे
बहुत बहुत मुबारकबाद
शाहबाज तालिब