उम्मीद की कली कोई खिलती चली गयी
वो याद आ गया तो उदासी चली गयी
हम आरज़ू के दश्त से बाहर न आ सके
तरतीबे कायनात बिगड़ती चली गयी
इमकान बेहतरी के न देखे तो यूँ हुआ
किरदार छोड़ कर के कहानी चली गयी
तुमने जला दिए वो किताबों में रखे फूल
अच्छे भले ग़रीब की पूँजी चली गयी
कुछ इस तरह से तोहफ़ा ए ग़ुरबत मिला के हम
पंखा ख़रीद लाए तो बिजली चली गयी
ख़ुशियों के इंतज़ार में आँखें नहीं रहीं
ग़म सूखने में उम्र हमारी चली गयी