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थी ख़ता कुछ मेरी इल्ज़ाम थे कुछ और सज़ा कुछ

15 अक्टूबर 2021

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थी ख़ता कुछ मेरी इल्ज़ाम थे कुछ और सज़ा कुछ

वो मेरे सामने आता तो भला पूछता कुछ

تھی ختاکچھ مری الزام تھے کچھ اور سزا کچھ

وو مرے سامنے آتا تو بھلا پوچھتا کچھ

यही होते हैं मुहब्बत में रवादार के दुःख

सोच के और कुछ आए थे यहाँ,पर कहा कुछ

یہی ہوتے ہیں محبّت مے روادار کے دکھ

سوچ کے اور کچھ ایے تھے یہاں پر کہا کچھ

प्यार लम्हों में सिमटने का मगर नाम तो ले

वस्ल के दिन को तो मैं सोचता कुछ था हुआ कुछ

پیار لمہوں میں سمٹنے کا مگر نام تو لے

وصل لے دن کو تو میں سوچتا کچھ تھا ہوا کچھ

इश्क़ डरने की नहीं खेल के जैसी है ये चीज़

छू रहा हूँ मैं तेरे जिस्म को बोलो हुआ कुछ?

عشق ڈرنے کی نہیں کھیل کے جیسی ہے یہ چیز

چھو رہا ہوں میں تیرے جسم کو بولو ہوا کچھ ؟

झील आँखों में भँवर भी हैं किनारे भी हैं

हो न जाए मेरी नज़रों से कहीं हादसा कुछ

جھیل آنکھوں میں بھور بھی ہیں کنارے بھی ہیں

ہو نہ جائے میری نظروں سے کہیں حادثہ کچھ

हिज्र सुनते थे किसी और के मुँह से अब तक

आख़िरी बार बिछड़ने  पे मुझे भी लगा कुछ

ہجر سنتے تھے کسی اور کے منہ سے ابتک

آخری بار بچھڑنے پہ مجھے بھی لگا کچھ

ख़ैर छोड़ो चलो हर बात पे मिट्टी डालो

न तो कुछ मैंने कहा और न तुमने सुना कुछ

خیر چھوڑو چلو ہر بات پہ متی ڈالو

نہ تو کچھ مینے کہا اور نہ تھمنے سنا کچھ

उसने लहरा दिए जब बाल फ़ज़ा में हर्षित

तब कहीं जाके हवाओं को मिला रास्ता कुछ

اسنے لہرا دیے جب بال فضا میں ہرشت

تب کہیں جاکے ہواؤں کو ملا راستہ کچھ

ہرشت مصرا

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