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लखनऊ शहर में

15 अक्टूबर 2021

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Aik ghazal 


लखनऊ शहर में सब कुछ है दिलावेज़  यहाँ 

फ़िक्र हर्षित की हुई और भी जरख़ेज़ यहाँ 


उनकी तकमील न हो पायी अलग बात मगर

किसकी आँखें न हुई ख़्वाब से लबरेज़ यहाँ 


उसने तख़लीक़ ए सुख़न के लिए बख़्शा है क़लम 

हम भी करते नहीं तनक़ीद से परहेज़ यहाँ 


शेर कहना भी तो मुश्किल है तिरे हिज्र के बाद

पेन कहीं बुक्स कहीं लैम्प कहीं मेज़ यहाँ


वहशतें नाच रही हैं यहाँ चारों जानिब

शहर का शहर ही  लगता है जुनूँख़ेज़ यहाँ 


हमसे संभलेंगे नहीं आपकी तारीफ़ के पुल 

और चलती हैं हवाएँ भी बहुत तेज़ यहाँ


لکھنؤ شہر میں سب کجھ ہے دلاویز  یہاں


فکر ہرشت کی ہوئ اور بھی زرخیز یہاں


انکی تکمیل نہ ہو پائ الگ بات مگر 


کسکی آنکھیں نہ ہوئ خواب سے لبریز یہاں 


اسنے تخلیقِ سخن کے لیے بخشا ہے قلم 


ہم بھی کرتے نہیں تنقید سے پرہیز یہاں


شعر کہنا بھی تو مشکل ہے تِرے  ہجر کے بعد 


پِن کہیں  بُکس کہیں لیمپ کہیں میز یہاں 


وحشتیں ناچ رہی ہیں یہاں چاروں جانب 


شہر کا شہر ہی لگتا ہے جنوں خیز  یہاں 


ہمسے سمبھلینگے نہیں آپکی تعریف کے پُل 


اور چلتی ہیں ہوائیں بھی بہت تیز یہاں 


ہرشت مصرا

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