मैं मजदूर हूं साहब,
मजबूरी में अपना घर और आंगन छोड़ा,
सब अपनों को छोड़ कर इस अंजाने शहर में आया,
इस उम्मीद में था कि अपना आसियाना यहीं बनाऊंगा,
इसी आश में की एक दिन मेहनत से अपनी किस्मत बदलूंगा,
इस शहर को अपना बना लिया,
इस शहर से प्यार करने लगा,
यहां तक कि अपने घर की यादें धूमिल होती गई,
कुछ इस कद्र इस शहर को खुद में शामिल कर लिया,
अब तो बस अपने गांव मेहमान बन कर जाते थे,
कुछ दिन गुजारते थे
और फिर अपने प्यार,
अपने शहर आ जाते थे,
पर मैं मजदूर हूं साहब,
इस शहर को मैंने तो अपना बना लिया,
पर इस शहर ने कभी हमें अपनाया ही नहीं,
जिस शहर से मोहब्बत करने लगा था,
उसके लिए तो सिर्फ मैं एक जरूरत था,
साहब, जिस शहर में आया था रोटी की तलाश में,
उस शहर में दाने दाने को मोहताज हो गया,
जिस शहर को अपना लिया था,
उसने ठोकर मार कर हमें निकाल दिया,
ऐसा लगा सब छीन गया,
सब खत्म हो गया,
अब मैं जा रहा हूं साहब,
इस शहर ने बहुत कुछ सीखा दिया,
हमने भी अपनी ज़िन्दगी को यहीं पर काट दिया,
पर अब नहीं साहब,
अब मैं अपने गांव जाऊंगा साहब,
वहां भूखे पेट रह लूंगा,
पर वो गांव तो अपना लेगा मुझे,
मैं मजदूर हूं साहब,
जा रहा हूं,
फिर कभी ना लौट कर आने के लिए,
जा रहा हूं,
अपनी मोहब्बत, इस शहर से दूर,
मैं मजदूर हूं साहब,
अब इस शहर को मेरी कोई जरूरत नहीं साहब,
मैं मजदूर हूं।।।।