अगर 2009 में मनमोहन सरकार ने नोट छापने की बेहतर मशीने खरीदीं होती तो आज देश में 500 रूपए के नए नोट की इतनी किल्लत ना होती. वित्त मंत्रालय की गोपनीय विजिलेंस रिपोर्ट के मुताबिक नियमो को ताक पर रखकर सरकार ने नोट छापने की ऐसी मशीने खरीदीं जिनकी स्पीड मानक से कम थी. इन 'लो स्पीड' मशीनों के कारण मध्य प्रदेश की देवास बैंक नोट प्रेस इन दिनों 500 रूपए के नोट पर्याप्त संख्या में छप नही पा रहे हैं जिसके चलते देश में करेंसी नोट का संकट बना हुआ है.
ब्रिटिश कम्पनी से हुई थी प्रिंटिंग मशीन खरीदने की विवादास्पद डील
विजिलेंस रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने 2009 में ब्रिटिश कम्पनी De La Rue और स्विस कम्पनी KBA Giori के संयुक्त वेंचर में 400 करोड़ रूपए कीमत की 'फोर सेट' फिनिशिंग मशीन खरीदी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये मशीन टेंडर में दिए गए मानक के अनुसार नही खरीदीं गयी. ऐसा संदेह है कि उच्च अधिकारियों को रिश्वत दी गयी इसलिए नियमो का उलंघन किया गया. Security Printing and Minting Corporation of India Ltd (SPMCIL) ने ये डील ब्रिटिश और स्विस कम्पनी से की थी. SPMCIL भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के तहत काम करता है.
500 रूपए के नए नोट इन्ही लो स्पीड मशीनों पर छापे जा रहे हैं
रिपोर्ट में कहा गया है कि 500 रूपए के नए नोट देवास सिक्योरिटी प्रेस की जिस मशीन पर आज कल छप रहे हैं वो मशीन 2009 में ब्रिटिश कम्पनी De La Rue और स्विस कम्पनी KBA Giori से खरीदी गयी थी. इस मशीन की स्पीड बेहद धीमी है. रिपोर्ट के मुताबिक टेंडर के मानक के अनुसार मशीन की न्यूनतम उत्पादन गति 470 बण्डल प्रति घंटा होनी चाहिए थी. लेकिन जो मशीन खरीदी गयी उसकी उत्पादन गति 378 बण्डल प्रति घंटा है. लिहाजा ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि 500 के नोट छापने का काम कितना धीमा हो रहा है. 24 घण्टे मशीने चलाने के बाद भी सप्लाई पूरी नही हो पा रही है.
घटिया मशीन खरीदने के मामले में संदेह के घेरे में SPMCIL के अध्यक्ष आर एस राणा
जांच के अनुसार घटिया मशीन खरीदने के मामले बैंक नोट प्रेस के अध्यक्ष आर एस राणा संदेह के घेरे में हैं. इन्हें भ्रष्टाचार के मामले में चार्जशीट किया गया है और 2016 में मोदी सरकार ने इन्हें कुर्सी से भी हटा दिया है. जांच में ये भी कहा गया की ब्रिटिश कम्पनी De La Rue और स्विस कम्पनी KBA Giori के संयुक्त वेंचर में सप्लाई की गयी मशीन के टेक्निकल स्पेसिफिकेशन का सही मूल्यांकन नही किया गया जिसके लिए टेंडर करने वाले अफसर दोषी हैं. बहरहाल 2009 की गलतियों का खामियाजा आज देश की जनता को एटीएम मशीनों के आगे लम्बी लम्बी लाइन लगा कर भुगतना पड़ रहा है.