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माता-विमाता

9 अगस्त 2022

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पंद्रह डाउनलोड गाड़ी के छूटने में दो-एक मिनट की देर थी। हरी बत्ती दी जा चुकी थी और सिगनल डाउनलोड हो चुका था। मुसाफिर अपने-अपने डिब्‍बों में जाकर बैठ चुके थे, जब सहसा दो फटेहाल औरतों में हाथापाई होने लगी। एक औरत, दूसरी की गोद में से बच्‍चा छीनने की कोशिश करने लगी और बच्‍चेवाली औरत एक हाथ से बच्‍चे को छाती से चिपकाए, दूसरे से उस औरत के साथ जूझती हुई, गाड़ी में चढ़ जाने की कोशिश करने लगी।

"छोड़, तुझे मौत खाए, छोड़, गाड़ी छूट रही है...।"

"नहीं दूँगी, मर जाऊँगी तो भी नहीं दूँगी..." दूसरी ने बच्‍चे के लिए फिर से झपटते हुए कहा।

कुछ देर पहले दोनों औरतें आपस में खड़ी बातें कर रही थीं, अभी दोनों छीना-झपटी करने लगी थीं। आस-पास के लोग देखकर हैरान हुए। तमाशबीन इकट्ठे होने लगे। प्‍लेटफार्म का बावर्दी हवलदार, जो नल पर पानी पीने के लिए जा रहा था, झगड़ा देखकर, छड़ी हिलाता हुआ आगे बढ़ आया।

"क्‍या बात है? क्‍या हल्‍ला मचा रही हो?" उसने दबदबे के साथ कहा।

हवलदार को देखकर दोनों औरतें ठिठक गईं। दोनों हाँफ रही थीं और जानवरों की तरह एक-दूसरी को घूरे जा रही थीं।

दो-एक मुसाफि़रों को गाड़ी पर चढ़ते देखकर बच्‍चेवाली औरत फिर गाड़ी की ओर लपकी, लेकिन दूसरी ने झपटकर उसे पकड़ लिया और उसे खींचती हुई फिर प्‍लेटफार्म के बीचोंबीच ले आई। लटकते-से अंगोंवाला, काला, दुबला-सा बच्‍चा, औरत के कंधे से लगकर सो रहा था। औरतों की हाथापाई में उसकी पतली लंबूतरी-सी गर्दन, कभी झटका खाकर एक ओर को लुढ़क जाती, कभी दूसरी ओर को। लेकिन फिर भी उसकी नींद नहीं टूट रही थी।

"मत हल्‍ला करो, क्‍या बात है?" हवलदार ने छड़ी हिलाते हुए चिल्‍लाकर कहा और अपनी पतली बेंत की छड़ी दोनों औरतों के बीच खोंसकर उन्‍हें छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

जो औरत बच्‍चा छीनने की कोशिश कर रही थी, उसने अपनी बड़ी-बड़ी कातर आँखों से हवलदार की ओर देखा और तड़पकर बोली, "मेरा बच्‍चा लिए जा रही है, नहीं दूँगी मैं बच्‍चा...।" और फिर एक बार वह बच्‍चा छीनने के लिए लपकी।

"गाड़ी छूट रही है नासपिट्टी, छोड़ मुझे!" बच्‍चेवाली औरत ने चिल्‍लाकर कहा और फिर गाड़ी के डिब्‍बे की ओर जाने लगी। हवलदार ने आगे बढ़कर उसका रास्‍ता रोक लिया।

"इसका बच्‍चा क्‍यों लिए जा रही है?" हवलदार ने कड़ककर कहा।

"इसका कहाँ है! बच्‍चा मेरा है।"

"वह कहती है मेरा है, बोलो किसका बच्‍चा है?"

"मेरा है," दूसरी छोटी उम्र की औरत बोली और कहते ही रो पड़ी। रूखे, अस्‍त-व्‍यस्‍त बोलों के बीच उसका चेहरा तमतमा रहा था, लेकिन आँखों में अब भी डर समाया हुआ था। बदहवास और व्‍याकुल वह फिर बच्‍चे की ओर बढ़ी।

हवलदार जल्‍दी-से-जल्‍दी झगड़ा निबटाना चाहता था। बच्‍चेवाली औरत से बोला, "बच्‍चा इसके हवाले कर दो।"

"क्‍यों दे दूँ, बचचा मेरा है...।"

"तेरे पेट से पैदा हुआ था?"

बच्‍चेवाली औरत चुप हो गई और घूर-घूरकर दूसरी औरत को देखने लगी।

"बोल, तेरे पेट से पैदा हुआ था?" हवलदार ने फिर गुस्‍से से पूछा।

"पेट से पैदा नहीं हुआ तो क्‍या, दूध तो मैंने पिलाया है। पिछले सात महीने से पिला रही हूँ।"

"दूध पिलाया है तो इससे बच्‍चा तेरा हो गया? बच्‍चे को जबरदस्‍ती लिए जा रही है?"

"जबरदस्‍ती क्‍यों ले जाऊँगी, मेरे अपने बच्‍चे सलामत रहें। इसी से पूछ लो, डायन सामने खड़ी है।" फिर दूसरी औरत को मुखातिब करके बोली, "कलमुँही बोलती क्‍यों नहीं? मैं तेरे से छीन के ले जा रही हूँ? हवलदारजी, इसने खुद बच्‍चे को मेरी गोद में डाला है। यह तो इसे जनकर घूरे पर फेंकने जा रही थी, मैंने कहा कि ला मुझे दे दे, मैं इसे पाल लूँगी। तब से मैं इसे पाल रही हूँ। यह मुझे यहाँ छोड़ने आई थी। यहाँ आकर मुकर गई।"

हवलदार दूसरी औरत की ओर मुड़ा, "तूने इसे खुद दिया था बच्‍चा?"

युवा औरत की बड़ी-बड़ी उद्भ्रांत आँखें कुछ देर तक दूसरी औरत की ओर देखती रहीं, फिर झुक गईं।

"दिया था, पर बच्‍चा मेरा है, मैं क्‍यों दूँ, मैं नहीं दूँगी।"

और निस्‍सहाय-सी फिर दूसरी औरत की ओर देखने लगी। पहले जो आँसू आँखों में फूट पड़े थे, घबराहट के कारण फौरन ही सूख गए।

"तूने दिया था तो अब क्‍यों वापस लेना चाहती है?"

कातर नेत्र फिर एक बार ऊपर को उठे और उसका सारा बदन काँप गया।

"यह इसे परदेस लिए जा रही है...।" और कहते-कहते वह फिर रो पड़ी।

"मैं सदा तेरे पास पड़ी रहूँ?" बच्‍चेवाली औरत बाँहें पसार-पसारकर आसपास के लोगों को सुनाती हुई बोलने लगी, "मेरे डेरेवाले सभी लोग चले गए हैं। यह मुझे छोड़ती नहीं थी। कहती थी दस दिन और रुक जा, फिर चली जाना। पाँच दिन और रुक जा, चली जाना। करते-करते महीना हो गया। मैं यहाँ कैसे पड़ी रहूँ? आज गाड़ी चलने लगी तो कलमुँही मुकर गई है।"

"यह तेरे रिश्‍ते की है?" हवलदार ने पूछा।

"रिश्‍ते की क्‍यों होगी जी, यह काठियावाड़ की है, हम बनजारे हैं।"

"तू गाड़ी में कहाँ जा रही है?"

"‍फीरोजपुर, जी!"

"वहाँ क्‍या है?"

"हम बनजारे हैं, हवलदारजी, पहले हमारे लोगों ने यहाँ जमीन ली थी, पूरे दो साल हलवाही की है। अब हमें फीरोजपुर में जमीन मिली है। हमारे सभी लोग चले गए हैं, पर यह मुझे छोड़ती नहीं थी।"

हवलदार दुविधा में पड़ गया। एक ने जनकर फेंक दिया, दूसरी ने दूध पिलाकर बड़ा किया। बच्‍चा किसका हुआ?

"तेरा घर-घाट कोई नहीं है, जो अपना बच्‍चा इसे दे दिया? तू रहती कहाँ है?" हवलदार ने बच्‍चे की माँ से पूछा।

"यह कहाँ रहेगी जी, पुल के पास फूस के झोंपड़े हैं, यह वहीं पर रहती है। हम भी वहीं पर रहते थे। यह मेरी पड़ोसिन है जी, मजूरी करती है। इसकी तो नाल भी मैंने काटी थी।" बच्‍चे की माँ उद्भ्रांत-सी अपने बच्‍चे की ओर देखे जा रही थी। लगता जैसे वह कुछ भी सुन नहीं रही है।

"इसका घरवाला कहाँ है?..."

"इसका घरवाला कोई नहीं जी। यह तो मरदों के पीछे भागती फिरती है, कोई इसे बसाता नहीं। इसका घरबार होता तो यह बच्‍चे को जनकर फेंकने क्‍यों जाती?"

इतने में गार्ड ने सीटी दी।

भीड़ में से छँटकर लोग अपने-अपने डिब्‍बों की ओर जाने लगे। बनजारन भी डिब्‍बे की ओर घूमी। बच्‍चे की माँ ने आगे बढ़कर उसके पाँव पकड़ लिए।

"मत जा, मत ले जा मेरे बच्‍चे को, मत ले जा!"

कुछेक लोगों को तरस आया। हवलदार ने दृढ़ता से आगे बढ़कर बनजारन से कहा, "बच्‍चा वापस दे दे। अगर माँ बच्‍चा नहीं देना चाहती तो तू उसे नहीं ले जा सकती।"

हवलदार की आवाज में दृढ़ता थी। बनजारन को इस निर्णय की आशा नहीं थी। वह छटपटा गई, "मैं क्‍यों दे दूँ जी, अपने बच्‍चे को भी कोई देता है? किसको दे दूँ। इसका घर है, न घाट..."

"गाड़ी छूटनेवाली है, जल्‍दी करो, बच्‍चा माँ के हवाले करो वरना हवालात में दे दूँगा।" हवलदार ने अबकी बार कड़ककर कहा।

औरत घबरा गई और किंकर्तव्‍यविमूढ़-सी आसपास खड़े लोगों की ओर देखने लगी। फिर अपनी साथिन की ओर देखते हुए चिल्‍लाकर बोली, "हरामजादी! कुतिया! यहाँ आकर मुकर गई। ले बेगैरत, ले सँभाल, फिर कहना दूध पिलाने को, जहर पिलाऊँगी, इसे भी और तुझे भी। सात महीने तक अपने बच्‍चे का पेट काटकर इसे दूध पिलाया है...।" और झटककर बच्‍चा उसके हाथ में दे दिया और फूट-फूटकर रोने लगी।

माँ ने बच्‍चा छाती से लगा लिया। बच्‍चे के मिलते ही वह भी ममता की मारी रोने लगी।

अजीब तमाशा था। दोनों औरतें रोए जा रही थीं। दोनों एक-दूसरी की दुश्‍मन, दोनों एक ही बच्‍चे की माताएँ। बेघर लोगों को न हँसने की तमीज होती है, न रोने की। ओर कलह का कारण, दुबला-पतला, पित्त का मारा बच्‍चा, अब भी मुट्ठियाँ भींचे सो रहा था।

बनजारन गालियाँ बकती, रोती, बड़बड़ाती गाड़ी में चढ़ गई।

"तुम्‍हें तुम्‍हारा बच्‍चा मिल गया है। यहाँ से चली जाओ फौरन..."

हवलदार ने सोए बच्‍चे की पीठ पर छड़ी की नोंक रखते हुए, धमकाकर कहा, "फौरन चली जाओ यहाँ से!"

बच्‍चे को छाती से चिपकाए, माँ पीछे हट गई। भीड़ बिखर गई। डिब्‍बे के दरवाजे में खड़ी बनजारन अभी भी चिल्‍लाए जा रही थी, "कंजरी, हरामजादी, तूने इसे जनते ही क्‍यों नहीं मार डाला? जब भी मार डालेगी, तभी मेरे दिल को चैन मिलेगा, नासपिट्टी...!"

बच्‍चे ने गोद पहचान रखी थी या तो इस कारण रहा हो या हवलदार की बेंत की नोक लगने के कारण, बच्‍चा जाग गया और अपनी नन्‍हीं-नन्‍हीं मुट्ठियों से पहले तो अपनी नाक पीसने लगा, फिर आँखे, और थोड़ी देर के बाद अपनी मुट्ठी मुँह में ले जाकर चूसने लगा। औरत अभी भी उद्भ्रांत-सी पीछे हट गई और प्‍लेटफार्म की दीवार के साथ जा खड़ी हुई।

बच्‍चा दूध के धोखे में अपनी मुट्ठी चूसता रहा, पर दूध न मिलता देख बिल्‍कुल जग गया और दोनों टाँगें जोर-जोर से पटककर रोने लगा। माँ ने उसे दाएँ कंधे से हटाकर बाएँ कंधे के साथ सटा लिया। लेकिन बच्‍चा और भी जोर-जोर से रोने लगा।

माँ परेशान हो उठी। कभी बच्‍चे को एक करवट उठाती, कभी दूसरी; कभी दाएँ कंधे पर उसका सिर रखती, कभी बाएँ पर।

बच्‍चे का रोना सुनकर डिब्‍बे के दरवाजे में खड़ी बनजारन फिर चिल्‍लाने लगी, "मार डाल, तू इसे मार डाल! नासपिट्टी, इसे जहर क्‍यों नहीं दे देती! दोपहर से इसके मुँह में दूध की बूँद नहीं गई। बच्‍चा रोएगा नहीं?"

हवलदार छड़ी झुलाता वहाँ से जा चुका था। दो-एक कुलियों को छोड़कर डिब्‍बे के सामने कोई नहीं था। दूर, पीछे की ओर, नीली वर्दीवाला गार्ड हरी झंडी दिखा रहा था।

गाड़ी ने सीटी दी और चलने को हुई।

बच्‍चा रोए जा रहा था। माँ ने अपने फटे हुए कुरते की जेब में से मूँगफली के कुछेक दाने निकाले और बच्‍चे के मुँह में ठूँसने लगी।

"नासपिट्टी, यह क्‍या उसके मुँह में डाल रही है? मेरे बच्‍चे को मार डालेगी। कसाइन, कंजरी...!"

और घूमकर पहले एक छोटा-सा टीन का बक्‍सा और फिर छोटी-सी गठरी प्‍लेटफार्म पर फेंकी और बड़बड़ाती, गालियाँ बकती हुई गाड़ी पर से उतर आई, "हरामजादी, मेरी गाड़ी छुड़ा दी। मौत खाए तुझे! नासपिट्टी...!"

गाड़ी निकल गई। एक-एक करके कुली स्‍टेशन के बाहर चले गए। प्‍लेटफार्म पर मौन छा गया। हवलदार अपनी गश्‍त पर दूर प्‍लेटफार्म के दूसरे सिरे तक पहुँच चुका था। लेकिन जब छड़ी झुलाता हुआ वह वापस लौटा, तो प्‍लेटफार्म के एक कोने में दीवार के साथ सटकर वही दोनों औरतें बैठी थीं। बनजारन अपनी गोद में बच्‍चे को लिटाए, उसे अपने आँचल से ढके, दूध पिला रही थी और पास बैठी बच्‍चे की माँ धीरे-धीरे अपने लाड़ले के बाल सहला रही थी।

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रचनाएँ
भीष्म साहनी की रोचक कहानियाँ
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भीष्म साहनी की कहानियों में बच्चे मनोवैज्ञानिक तौर पर अपने परिवेश व समाज की वास्तविकता का बोध कराते हैं। वास्तविकता का संदर्भ धर्म की सामाजिक रूढ़ मान्यताओं से रहा है, धर्म को जिसने संकीर्ण परिभाषा में बांधा। पहला पाठ कहानी का पात्र देवव्रत है जिसके संदर्भ में भीष्म साहनी कथावाचक की शुरूआती भूमिका में बताते हैं। एक कहानीकार के रूप में भीष्म साहनी का जन्म उनकी परिस्थितियों और प्रतिभा दोनों का मिला-जुला रूप रहा है। अपने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत उन्होंने बहुत कुछ देखा और अनुभव किया इन कहानी संग्रहों में सम्मिलित अधिक से अधिक कहानियाँ भीष्म साहनी की लेखन क्षमता से परिचित कराती हैं।
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अमृतसर आ गया है

9 अगस्त 2022
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गाड़ी के डिब्बे में बहुत मुसाफिर नहीं थे। मेरे सामनेवाली सीट पर बैठे सरदार जी देर से मुझे लाम के किस्से सुनाते रहे थे। वह लाम के दिनों में बर्मा की लड़ाई में भाग ले चुके थे और बात-बात पर खी-खी करके हं

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ख़ून का रिश्ता

9 अगस्त 2022
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खाट की पाटी पर बैठा चाचा मंगलसेन हाथ में चिलम थामे सपने देख रहा था। उसने देखा कि वह समधियों के घर बैठा है और वीरजी की सगाई हो रही है। उसकी पगड़ी पर केसर के छींटे हैं और हाथ में दूध का गिलास है जिसे वह

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गुलेलबाज़ लड़का

9 अगस्त 2022
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छठी कक्षा में पढ़ते समय मेरे तरह-तरह के सहपाठी थे। एक हरबंस नाम का लड़का था, जिसके सब काम अनूठे हुआ करते थे। उसे जब सवाल समझ में नहीं आता तो स्याही की दवात उठाकर पी जाता। उसे किसी ना कह रखा था कि काली

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चीलें

9 अगस्त 2022
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चील ने फिर से झपट्टा मारा है। ऊपर, आकाश में मण्डरा रही थी जब सहसा, अर्धवृत्त बनाती हुई तेजी से नीचे उतरी और एक ही झपट्टे में, मांस के लोथड़े क़ो पंजों में दबोच कर फिर से वैसा ही अर्द्ववृत्त बनाती हुई

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त्रास

9 अगस्त 2022
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ऐक्सिडेंट पलक मारते हो गया। और ऐक्सिडेंट की जमीन भी पलक मारते तैयार हुई। पर मैं गलत कह रहा हूँ। उसकी जमीन मेरे मन में वर्षों से तैयार हो रही थी। हाँ, जो कुछ हुआ वह जरूर पलक मारते हो गया। दिल्‍ली में

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निमित्त

9 अगस्त 2022
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बैठक में चाय चल रही थी। घर-मालकिन ताजा मठरियों की प्लेट मेरी ओर बढ़ाकर मुझसे मठरी खाने का आग्रह कर रही थीं और मैं बार-बार, सिर हिला-हिलाकर, इनकार कर रहा था। "खाओ जी, ताजी मठरियां हैं, बिलकुल खालिस घी

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मरने से पहले

9 अगस्त 2022
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मरने से एक दिन पहले तक उसे अपनी मौत का कोई पूर्वाभास नहीं था। हाँ, थोड़ी खीझ और थकान थी, पर फिर भी वह अपनी जमीन के टुकड़े को लेकर तरह-तरह की योजनाएँ बना रहा था, बल्कि उसे इस बात का संतोष भी था कि उसने

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वाङ्चू

9 अगस्त 2022
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तभी दूर से वाङ्चू आता दिखाई दिया। नदी के किनारे, लालमंडी की सड़क पर धीरे-धीरे डोलता-सा चला आ रहा था। धूसर रंग का चोगा पहने था और दूर से लगता था कि बौद्ध भिक्षुओं की ही भाँति उसका सिर भी घुटा हुआ है।

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यादें

9 अगस्त 2022
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ऐनक के बावजूद लखमी को धुंधला-धुंधला नजर आया। कमर पर हाथ रखे, वह देर तक सड़क के किनारे खड़ी रही। यहां तक तो पहुंच गयी, अब आगे कहां जाय, किससे पूछे, क्या करे? सर्दी के मौसम को दोपहर ढलते देर नहीं लगती। अं

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सरदारनी

9 अगस्त 2022
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स्कूल सहसा बन्द कर दिया गया था और मास्टर करमदीन छाता उठाए घर की ओर जा रहा था। पिछले कुछ दिनों से शहर में तरह-तरह की अफवाहें फैलने लगी थीं। किसी ने मास्टर करमदीन से कहा था कि शहर के बाहर राजपूत रेजिमें

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आज़ादी का शताब्दी-समारोह

9 अगस्त 2022
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[सन् 2047. आज़ादी के शताब्दी-समारोह की तैयारियाँ. सत्तारूढ़ पार्टी इस अवसर पर उपलब्धियों का घोषणा-पत्र तैयार कर रही है. सदस्यों की बैठक में आधार-पत्र पर विचार किया जा रहा है.] [संयोजक हाथ में आधार-पत्

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भ्राता जी

9 अगस्त 2022
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एक दिन बलराज मुझसे बोले, जब हम गुरुकुल की ओर जा रहे थे, ''सुन!'' ''क्या है?'' ''मेरे पीछे पीछे चल। अब से हमेशा, मेरे पीछे-पीछे चला कर।'' ''क्यों?'' ''क्योंकि तू छोटा भाई है। छोटे भाई साथ-साथ नहीं

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हानूश'' का जन्म

9 अगस्त 2022
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''हानूश'' नाटक की प्रेरणा मुझे चेकोस्लोवेकिया की राजधानी प्राग से मिली। यूरोप की यात्रा करते हुए एक बार शीला और मैं प्राग पहुँचे। उन दिनों निर्मल वर्मा वहीं पर थे। होटल में सामान रखने के फौरन ही बाद म

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बोलता लिहाफ़

9 अगस्त 2022
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गहरी रात गए एक सौदागर, घोड़ा-गाड़ी पर बैठकर एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव पर जा रहा था। बला की सरदी पड़ रही थी और वह ठिठुर रहा था। कुछ समय बाद एक सराय के बाहर घोड़ा-गाड़ी रुकी। ठंड इतनी ज़्यादा थी कि मुसाफ़ि

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ओ हरामजादे !

9 अगस्त 2022
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घुमक्कड़ी के दिनों में मुझे खुद मालूम न होता कि कब किस घाट जा लगूंगा। कभी भूमध्य सागर के तट पर भूली बिसरी किसी सभ्यता के खण्डहर देख रहा होता, तो कभी युरोप के किसी नगर की जनाकीर्ण सड़कों पर घूम रह होता

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गंगो का जाया

9 अगस्त 2022
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गंगो की जब नौकरी छूटी तो बरसात का पहला छींटा पड़ रहा था। पिछले तीन दिन से गहरे नीले बादलों के पुँज आकाश में करवटें ले रहे थे, जिनकी छाया में गरमी से अलसाई हुई पृथ्‍वी अपने पहले ठण्‍डे उच्‍छ्‌वास छोड़

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चीफ़ की दावत

9 अगस्त 2022
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शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फुर्सत न थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने, उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाए मुँह पर फैली हुई सुर्खी और पाउडर को मले और मिस्टर शामनाथ सिगरेट पर सिगरेट फूँकते हुए चीज

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झूमर

9 अगस्त 2022
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खुले मैदान में अर्जुनदास कुर्सी पर बैठा सुस्ता रहा था। मैदान में धूल में उड़ रही थी, पाँवों को मच्छर काट रहे थे, उधर शाम के साए उतरने लगे थे और अर्जुनदास का मन खिन्न-सा होने लगा था। जिन बातों ने जिंदग

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दो गौरैया

9 अगस्त 2022
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घर में हम तीन ही व्यक्ति रहते हैं — माँ, पिताजी और मैं। पर पिताजी कहते हैं कि यह घर सराय बना हुआ है। हम तो जैसे यहाँ मेहमान हैं, घर के मालिक तो कोई दूसरे ही हैं। आँगन में आम का पेड़ है। तरह-तरह के पक

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फ़ैसला

9 अगस्त 2022
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उन दिनों हीरालाल और मैं अक्सर शाम को घूमने जाया करते थे । शहर की गलियाँ लाँघकर हम शहर के बाहर खेतों की ओर निकल जाते थे । हीरालाल को बातें करने का शौक था और मुझे उसकी बातें सुनने का । वह बातें करता तो

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माता-विमाता

9 अगस्त 2022
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पंद्रह डाउनलोड गाड़ी के छूटने में दो-एक मिनट की देर थी। हरी बत्ती दी जा चुकी थी और सिगनल डाउनलोड हो चुका था। मुसाफिर अपने-अपने डिब्‍बों में जाकर बैठ चुके थे, जब सहसा दो फटेहाल औरतों में हाथापाई होने ल

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साग-मीट

9 अगस्त 2022
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साग-मीट बनाना क्‍या मुश्किल काम है। आज शाम खाना यहीं खाकर जाओ, मैं तुम्‍हारे सामने बनवाऊँगी, सीख भी लेना और खा भी लेना। रुकोगी न? इन्‍हें साग-मीट बहुत पसंद है। जब कभी दोस्‍तों का खाना करते हैं, तो साग

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भाग्य-रेखा

9 अगस्त 2022
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कनाट सरकस के बाग में जहाँ नई दिल्ली की सब सड़कें मिलती हैं, जहाँ शाम को रसिक और दोपहर को बेरोजगार आ बैठते हैं, तीन आदमी, खड़ी धूप से बचने के लिए, छाँह में बैठे, बीडिय़ाँ सुलगाए बातें कर रहे हैं। और उनस

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आवाज़ें

9 अगस्त 2022
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अब मुहल्ला रच-बस गया है, इसका रूप निखरने लगा है, दो-तीन पीढ़ियों का समय निकल जाए, नई पौध सिर निकालने लगे, बच्चे-बूढ़े-जवान, सभी गलियों में घूमते-फिरते नज़र आने लगें, तो समझो मुहल्ला रच-बस गया है। शुरू

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समाधि भाई रामसिंह

9 अगस्त 2022
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यह घटना मेरे शहर में घटी । यह घटना और कहीं घट भी न सकती थी। शहरों में शहर है तो मेरा शहर और लोगों में लोग हैं तो मेरे शहर के लोग, जो अपने तुल्य किसी को समझते ही नहीं। हमारे शहर के बाहर एक गन्दा नाला ब

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आज के अतीत

9 अगस्त 2022
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ज़िन्दगी में तरह-तरह के नाटक होते रहते हैं, मेरा बड़ा भाई जो बचपन में बड़ा आज्ञाकारी और ‘भलामानस’ हुआ करता था, बाद में जुझारू स्वभाव का होने लगा था। मैं, जो बचपन में लापरवाह, बहुत कुछ आवारा, मस्तमौला हुआ

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मेरी कथायात्रा के निष्कर्ष

9 अगस्त 2022
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अपनी लम्बी-कथा यात्रा का लेखा-जोखा करना आसान काम नहीं है। पर यदि इस सर्वेक्षण में से कुछेक प्रश्न निकाल दें—कि मैं लिखने की ओर क्यों उन्मुख हुआ, और गद्य को ही अभिव्यक्ति का माध्यम क्यों चुना, और उसमें

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