नई दिल्लीः यूपी में आक्रामक चुनावी रणनीति से कमल खिलाने में सफल रहे भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव अब गुजरात में डेरा डालेंगे। 47 वर्षीय भूपेंद्र को उस गुजरात की कमान सौंपी गई है, जहां से खुद प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह आते हैं और साल के आखिर में चुनाव होना है। एक प्रकार से देखें तो यह नई जिम्मेदारी भूपेंद्र यादव की सांगठनिक क्षमता पर मोदी और शाह के अटूट भरोसे का सुबूत है। दिनेश शर्मा के यूपी में डिप्टी सीएम बनने के बाद गुजरात प्रभारी का पद खाली चल रहा था। काफी मंथन के बाद पार्टी ने भूपेंद्र यादव को ही गुजरात में जान फूंकने के लिए मुफीद पाया। भरोसे का ही आलम है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से अमित शाह भूपेंद्र यादव को कई राज्यों के चुनावी मोर्चे पर लगा चुके हैं। बिहार की हार को छोड़ दें तो बाकी राजस्थान, हरियाणा, झारखंड और उत्तर प्रदेश में उन्होंने अपना लोहा मनवाया। बिहार चुनाव में नुकसान का हिसाब उन्होंने पार्टी को उत्तर प्रदेश जितवाकर चुकता कर दिया। हालांकि यूपी की जीत में प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल सहित अन्य कई नेताओं ने अहम योगदान दिया, मगर मीडिया मैनेजमेंट सहित अन्य कई कार्यों को हाथ में लेकर भूपेंद्र ने अपनी पूरी क्षमता से पार्टी को लाभ में रखा।
पत्रकारिता और वकालत के पेशे से गुजरते हुए पहुंचे राजनीति में
भूपेंद्र यादव मूलतः राजस्थान के अजमेर के रहने वाले हैं। गवर्नमेंट कॉलेज से बीए और लॉ की शिक्षा हासिल किए। पढ़ाई के दौरान ही छात्रसंगठन एबीवीपी से जुड़े। कॉलेज लाइफ में डिबेट में खूब हिस्सा लेते रहे तो पहचान एक अच्छे वक्ता की बनी। इस दौरान कॉलेज के छात्रसंघ उपाध्यक्ष चुनाव में बाजी मारी। कॉलेज से निकलने के बाद भूपेंद्र का रुझान पत्रकारिता की तरफ हुआ। वकालत के पेशे से भी जुड़े। काफी समय तक सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। गुड़गांव में 1990 में हुए ट्रेड यूनियन के आंदोलन में भी भाग लिए। सामाजिक सरोकारों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना स्वभाव में शामिल रहा। वर्ष 2000 में भूपेंद्र यादव अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय महासचिव हुए। नौ साल लगातार इस दायित्व का निर्वहन किया। अरुण जेटली, नितिन गडकरी आदि भाजपा के शीर्ष नेताओं ने भूपेंद्र यादव की राजनीतिक प्रतिभा को पहचानने में देर नहीं की। नतीजा रहा कि जब नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए तो उन्होंने 2010 में पार्टी के संगठन में भूपेंद्र को राष्ट्रीय सचिव का ओहदा दिया। 2013 में जब राजनाथ सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो उन्होंने इसी पद पर बनाए रखा। वहीं जब अमित शाह 2014 में राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए तो उन्होंने प्रमोशन देते हुए राष्ट्रीय महासचिव का पद दिया। इसके बाद शाह ने भूपेंद्र यादव को हर राज्य के चुनावी मोर्चे पर लगाया। जहां भूपेंद्र ने अपनी ऊर्जा और सांगठिन क्षमता, चुनावी कौशल का लोहा मनवाया।
गुजरात यानी पूरब से पश्चिम तक काम का मौका
जिस गुजरात से खुद मोदी और शाह आते हैं, उस अहम सूबे का प्रभारी बनाया जाना बहुत मायने रखता है। एक प्रकार से देखें तो भाजपा ने अब भूपेंद्र यादव को पूरब से लेकर पश्चिम तक काम करने का मौका दिया है। पिछड़ा वर्ग आयोग पर विचार करने की उनके पास जिम्मेदारी है ही। पार्टी किस कदर भूपेंद्र यादव की योग्यता को समझती है, इसकी नजीर है कि उन्हें नौ प्रवर समितियों की कमान पहले से दी जा चुकी है। भूपेंद्र यादव राजनीतिक व्यस्तता के बीच भी अक्सर तमाम समसामयिक विषयों पर लेख लिखने के लिए फुर्सत निकाल लेते हैं। जो कि तमाम अखबारों व डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित भी होते हैं। न्यायिक व राजनीतिक आदि विषयों पर वे अब तक कई किताबें भी लिख चुके हैं।