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मेरे मानस पुत्रों

7 नवम्बर 2015

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यदि संवाद विवाद के लिए करना है, बेहतर है हम दोनों ही चुपचाप रहें |

मलिन मनों की पीड़ा और गुबारों को दबा जतन से , अपने भीतर कहें, सहें |

भीतर की गहराई, सागर से भी अधिक निराली है |

निविण अंधेरे में भी, भीतर जगमग जग दीवाली है |

अगर अँधेरा भीतर छाया, समझो बंटाधार हुआ |

दक-दक हँसता अंगारा, पल भर में बुझकर क्षार हुआ |

अपनी कुण्ठायें, अपने मुँह से अपनों से नहीं कहें ||1||   यदि संवाद विवाद के............

मन प्रसन्न है तो सारा संसार बिहँसता लगता है |

अगर उदासी हुई कि मन अपनेपन से ही भगता है |

भीतर छिपा उजास बड़ी कोशिश करने से खुलता है |

यह सूरज की प्रथम किरण से ही कुछ मिलता जुलता है |

मानस सागर में निमग्न हो, लहर-छहर कर साथ बहें ||2||    यदि संवाद विवाद के............

यह संसारी इन्द्रजाल सारा कुछ मन के साथ जुड़ा |

मन प्रसन्न तो सीधा दिखता, मन कुण्ठित तो तुड़ा मुड़ा |

इसीलिए ऋषियों ने मन पर गहन - मनन, सन्धान किये |

मन का नियमन करने वाले हमको विविध विधान दिये |

हम उनके हर एक सूत्र को मजबूती के साथ गहें ||3||   यदि संवाद विवाद के............

 

 

शिकवा और शिकायत तो हर संसारी का धन्धा है |

सबको लगता आँखों वाला मैं, सारा जग अन्धा है |

इसीलिए उपदेश दूसरों को देने की बान पड़ी |

खुली आँख जब अटक भटक कर , अपनी गाड़ी हुए खड़ी

अपनी आँखों से अपने अन्तर्दर्शन के लिए कहें ||4||     यदि संवाद विवाद के............

जो मैं हूँ, वह ही सारा जग, यदि ऐसा अभ्यास हुआ |

कोई नहीं पराया, पूरा अग- जग , अपना खास हुआ |

तो फिर कभी नहीं कोई भी पीड़ा मन को होती है |

दुनिया की वेदना, मौन होकर अंतर में सोती है |

आओ मिल अभ्यास करें, छल-दम्भ छोड़ कर, साथ रहे ||5||  

यदि संवाद विवाद के लिए करना है, बेहतर है हम दोनों ही चुपचाप रहें |

मलिन मनों की पीड़ा और गुबारों को दबा जतन से , अपने भीतर कहें, सहें |

- ओमशंकर

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ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अति सुन्दर रचना ! प्रकाशन हेतु बधाई !

7 नवम्बर 2015

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