दिन रविवार
1/5/2022
मेरी डायरी ज्ञान मंजूषा और इतिहास के कुछ पन्ने महाराजा पुरू या पोरस का व्यक्तित्व भाग 1
भारतीय इतिहास के पन्ने हमें ऐसे अनेकों महान राजा महाराजाओं की गाथाओं का ज्ञान कराते हैं जिन्हें पढ़कर,सुन कर हमें अपने देश पर गर्व होता है परंतु कुछ विदेशी इतिहासकारों एवं वामपंथी लेखकों के झूठ ने हमारे महान राजाओं,महाजाओं और सम्राटों की वीरता,उनका देश प्रेम, उनके महान व्यक्तित्व को धमिल करके हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया गया है मैं इतिहास की शोधार्थी रही हू इसलिए मैंने सोचा कुछ ऐतिहासिक व्यक्तित्व, एतिहासिक तथ्यों को अपनी डायरी के पन्नों में उल्लिखित करो आज मैं महाराज पुरु जिसे इतिहास में पोरस भी कहा जाता है जिसने यूनानी शासक सिकंदर को युद्ध में दिन में तारे दिखा दिए थे उसके विषय में बताऊंगी।
पोरस या पुरु पंजाब का शासक था उसकी वीरता की चर्चा सिर्फ़ भारतीय इतिहासकारों ने ही नहीं की है बल्कि यूनानी, ईरानी और चीनी लेखकों ने भी किया है पोरस ने 340 ईसापूर्व से लेकर 315 ईसापूर्व तक शासन किया था पुरु का राज्य झेलम और चिनाब नदी के आसपास फैला हुआ था।
पुरु वीरता और देशप्रेम का जीता जागता उदाहरण है जिसकी वीरता और साहस की तुलना शेर से की जाती थी पुरु वीरता के साथ साथ उदारता और मानवता का भी परियाय समझता जाता था उसकी प्रजा उसके सुशासन में बहुत ही खुशहाल और संपन्न थी कृषि, व्यापार, और पशुपालन अपनी उन्नति की पराकाष्ठा पर थे।
भारतभूमि जहां एक ओर वीरों और देशभक्तों से सुशोभित थीं वहीं दूसरी ओर यहां देशद्रोही भी विद्यमान थे उस समय तक्षशिला का शासक आम्भी था जो पोरस का सबसे बड़ा शत्रु था क्योंकि पुरू के हाथों वह कई बार पराजित हो चुका था इसलिए वह पुरू से नफ़रत करता था कुछ इतिहासकारों का मानना है की आम्भी पुरु का रिश्तेदार था पर ऐसा कोई प्रमाणिक तथ्य प्राप्त नहीं होता। जब आम्भी और पुरू भारत पर शासन कर रहे थे उसी समय यूनानी शासक सिकंदर भारत पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था पर वह भारत पर आक्रमण करने से डर रहा था क्योंकि उसने भारतीय शासकों की वीरता के बहुत चर्चे सुने थे।
जब आम्भी को इसकी जानकारी मिली की सिकंदर भारत को जीतने का सपना देख रहा है तो उसने सिकंदर को भारत आने का निमंत्रण दिया और उसे आश्वासन दिया की वह सिकंदर की हर संभव सहायता करेगा ऐसे देशद्रोहियों के कारण भारत को परतंत्र होना पड़ा था जो देश से ज्यादा अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्व देते हैं।
सिकंदर ने आम्भी के आमंत्रण पर भारत पर आक्रमण किया सिकंदर ने भारत पर आक्रमण कर तो दिया वह समझता था कि,भारत को जीतना हंसी खेल है परंतु जब उसने भारत पर आक्रमण किया तो उसे पता चला की भारतीय वीरों को हराना इतना आसान नहीं जितना उसने सोचा था। पहाड़ियों पर रहने वाली जनजातियों ने सिकंदर के दांत खट्टे कर दिया था ईरानी और चीनी लेखकों के अनुसार सिकंदर को भारत के छोटे छोटे राज्यों ने कड़ी टक्कर दी थी उसमें अश्वकायन, कुनात,स्वात बुनेर प्रमुख थे मस्सागा मत्स्य राज के पुरूषों के साथ स्त्रियों और बच्चों ने भी युद्ध किया था उनका युद्ध कौशल देखकर सिकंदर घबरा गया उसने उनसे सन्धि की और संधि की रात धोखे से उन लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
इन छोटे छोटे राज्यों के बाद सिकंदर का युद्ध पोरस से हुआ यह युद्ध झेलम नदी के किनारे हुआ था इसलिए इसे झेलम का युद्ध कहा जाता है यूनानी इतिहासकारों ने इसे हाइडस्पेश का युद्ध कहा गया है हाइडस्पेश यूनानी भाषा में झेलम को कहा गया है सिकंदर पोरस से युद्ध करना नहीं चाहता है क्योंकि उसने पोरस की वीरता के किस्से सुने थे उसने पोरस के पास पहले संधि प्रस्ताव रखा जिसे पोरस ने ठुकरा दिया उसके बाद धमकी दी पर इन बातों का पोरस पर कोई भी असर नहीं हुआ उल्टा पोरस ने एक संदेश भेजा सिकंदर तुम एक योद्धा हो विश्व विजय अभियान के लिए निकले हो परन्तु तुम्हारा यह स्वप्न एक स्वप्न बनकर रह जाएगा इसलिए उचित यही होगा की तुम जहां से आए हो वहीं लौट जाओ शायद तुम्हें पता नहीं है हम अपनी मातृभूमि को माता का सम्मान देते हैं और हमारी मां पर कोई कुदृष्टि डाले तो हम उसके यमराज के पास पहुंचा देते हैं तुमने आम्भी जैसे विश्वासघात देखें हैं पर तुम्हारा सामना पोरस से नहीं हुआ है जिस दिन तुम्हारा सामना मुझसे होगा तुम अपने ही निर्णय पर पश्चाताप करोगे अब हमारी भेंट युद्ध के मैदान में ही होगी पोरस का संदेश सुनकर सिकंदर बौखला गया और उसने पोरस से युद्ध करने का बिगुल बजा दिया जो उसको बहुत भारी पड़ा उसका सामना पहली बार किसी ऐसे योद्धा से हुआ था जिसको हराना सिकन्दर के लिए भी कठिन हो रहा था उसका विश्वविजेता बनने का स्वप्न मिट्टी में मिलता हुआ दिखाई दिया और फिर इस युद्ध में भी सिकंदर ने छल का सहारा लिया जो विदेशियों की फितरत रही है भारत पर आक्रमण करने वाला हर विदेशी आक्रांता यह जानता था की भारतीय वीरों को धर्म युद्ध में पराजित करना असंभव है तो हमेशा उन्होंने छल का सहारा लिया क्योंकि भारतीय वीरों का अपना एक सिद्धांत था की वह निशस्त्र व्यक्ति पर शस्त्र नहीं उठाएंगे उनकी इसी कमजोरी के कारण विदेशी आक्रमणकारी भारत को परतंत्र बनाने में सफल हुए थे अन्यथा ऐसा कोई कारण नहीं था जो भारतीय योद्धाओं को परास्त करने में सफल हो पाते।
झेलम का युद्ध पोरस और सिकंदर के मध्य 326 ईसापूर्व में हुआ था इस युद्ध में पोरस के 20 हजार सैनिकों ने सिकंदर के 50 हजार सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए इस युद्ध में पोरस की वीरता देखकर सिकंदर अचंभित था वह समझ गया था की पोरस को हराना नामुमकिन है इस युद्ध में पोरस के पुत्र ने भी अपना रणकौशल दिया था।झेलम नदी के किनारे लड़ा गया यह युद्ध इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है।
कुछ यूनानी इतिहासकारों का कहना है कि,इस युद्ध में सिकंदर की विजय हुई थी पर यह तथ्य किसी अन्य साक्ष्यों में उल्लिखित नहीं हैं पोरस को सिकंदर ने हराया नहीं था बल्कि पोरस की वीरता और रणकौशल के आगे सिकंदर स्वयं नतमस्तक होकर पोरस से सन्धि कर बैठा था इस युद्ध में सिकंदर की विजय का दावा सिर्फ़ यूनानी इतिहासकारों द्वारा किया गया है ईरानी, चीनी और भारतीय लेखकों ने इसका उल्लेख नहीं किया है अगर सिकंदर विजयी हुआ था तो वह वापस क्यों लौट गया सिकंदर विजयी नहीं हुआ था उसके साथ आए इतिहासकारों ने सिकंदर की हार का उल्लेख न करके पोरस की हार और उसके साथ संधि का उल्लेख किया है। यूनानी इतिहासकारों का यह भी कहना है कि,पोरस की वीरता से प्रभावित होकर सिकंदर ने पोरस से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था यह काल्पनिक बातें हैं या इसमें सच्चाई है स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता पर सन्धि की बात के आधार पर इतना आभास होता है की जब सिकंदर हारने की कगार पर आ गया तो उसने संधि और दोस्ती का पांसा फेंका उस प्रस्ताव को पोरस ने स्वीकार कर लिया क्योंकि पोरस जानता था की सिकंदर भारत में शासन करने नहीं विश्वविजेता बनने आया है इसलिए यह वापस चला जाएगा तो उससे संधि और दोस्ती करने में कोई हर्ज नहीं है यह संधि और दोस्ती एक औपचारिकता ही है और कुछ नहीं।
ईरानी और चीनी लेखकों ने पोरस की वीरता का जो चित्र उकेरा है उसे पढ़कर इतना तो पता चलता है की पोरस एक वीर, शक्तिशाली और देशभक्त शासक था उसको हराना और झुकाना असंभव था इसलिए सिकंदर ने धोखे से पोरस को हारने की योजना बनाईं विदेशी इतिहासकारों का कहना है कि, उस योजना में सिकंदर सफल रहा और उसने पोरस को बंदी बना लिया और तब पोरस से पूछा तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए तब पोरस ने गर्व से सीना तानकर कहा जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है पोरस की आंखों में न मौत का भय था न दहशत लेकिन इस बात का उल्लेख सिर्फ यूनानी इतिहासकारों द्वारा किया गया है ईरानी लेखक कहते हैं की पोरस ने सिकंदर को युद्ध के मैदान से भागने पर विवश कर दिया था अब सच्चाई क्या है इसका कोई प्रमाणिक तथ्य हमें प्राप्त नहीं है यह जो तथ्य यूनानी, ईरानी और चीनी लेखकों ने प्रस्तुत किए हैं उसकी विवेचना करने से हमें इतना ज्ञात होता है की पोरस और सिकंदर के बीच जो युद्ध झेलम नदी के किनारे हुआ था उसमें पोरस की हार नहीं हुई थी युद्ध का निर्णय अभी हुआ ही नहीं था उससे पहले ही सिकंदर ने हार के डर से संधि प्रस्ताव भेजकर एक समझौता किया।
इस युद्ध के बाद सिकंदर अपने देश वापस लौट गया परन्तु रास्ते में ही उसकी मौत हो गई कुछ इतिहासकारों का कहना है कि, सिकंदर की हार का बदला लेने के लिए सिकंदर के एक सेनापति ने सिकंदर की मौत के बाद धोखे से पोरस की हत्या कर दी कुछ विदेशी इतिहासकारों का मानना है की चाणक्य ने पोरस की हत्या की थी पर इस तथ्य में कितनी सच्चाई है इसका कोई भी प्रमाण आज तक प्राप्त नहीं हुआ है जिन लेखकों ने चाणक्य का तथ्य दिया है उनका मानना है की चंद्रगुप्त मौर्य की विजय में पोरस बाधा न उत्पन्न करे इसलिए चाणक्य ने पोरस की हत्या करवाई थी जब की किसी भारतीय इतिहासकार ने इस बात का उल्लेख नहीं किया है विदेशी इतिहासकारों ने चाणक्य की छवि धूमिल करने के लिए ऐसी बातें लिखी जो पूर्णतया तथ्यहीन हैं पर इतना तो सत्य है की पोरस की मौत स्वाभाविक नहीं थी उसकी हत्या की गई थी वह हत्या किसने और क्यों की यह आज तक एक राज ही बना हुआ है आगे चलकर हो सकता है की कोई ऐसा प्रमाण हमें मिले जिससे हमें पोरस जैसे वीर शक्तिशाली और देशभक्त शासक की मौत का रहस्योद्घाटन हो तब तक हमें इन्हीं तथ्यों के आधार पर अपनी विवेचना करनी होगी।
अंत में हम इतना ही कह सकते हैं की पोरस जैसे देशभक्त और वीर शासक सदियों बाद पैदा होते हैं जिनके पैदा होने पर आसमान भी नतमस्तक हो जाता है क्योंकि देश पर मर मिटने का जज्बा हर किसी में नहीं होता आज भी पोरस का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ मिलता है पोरस जैसे वीरों को शत् शत् नमन है।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
1/5/2022