दिन बुधवार
11/5/2022
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बाद और सातवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल के राजनीतिक इतिहास का संक्षिप्त परिचय भाग 11
मैंने पूर्व में इस बात की चर्चा की है की जब 16 महाजनपद चार राज्यों में परिवर्तित हो गए तो उस समय मगध और कौशल दो राज्य ही अधिक शक्तिशाली थे वत्स और अवन्ती आपसी वैमनस्य के कारण कमजोर होते जा रहे थे मगध के सिंहासन पर हर्यंक वंशी राजा बिम्बिसार था जिसके विषय में बौद्ध साहित्य से हमें जानकारी प्राप्त होती है बिम्बिसार बहुत ही शक्तिशाली और कूटनीतिज्ञ शासक था बौद्ध साहित्य के अनुसार बिम्बिसार ने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए अनेकों विवाह किया था बौद्ध साहित्य तो यहां तक कहते हैं कि, बिम्बिसार की 500 रानियां थीं लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है इसका कोई दूसरा उल्लेख हमें प्राप्त नहीं होता फिर भी यह तो सत्य है की बिम्बिसार की कई रानियां थीं कोशल की राजकुमारी कोशल देवी से उसने विवाह किया था उससे उसका पुत्र अजातशत्रु था और लिच्छवी राज्य की राजकुमारी चेल्न्ना या छलना से भी बिम्बिसार ने विवाह किया था चेल्न्ना से बिम्बिसार के दो पुत्र थे हल्ल बेहल्ल बिम्बिसार की राजधानी राजगृह थी तब तक मगध की राजधानी राजगृह ही थी। बिम्बिसार ने अपनी कूटनीति और वैवाहिक संबंध के माध्यम से एक विशाल राज्य की स्थापना की बौद्ध साहित्य से ही हमें ज्ञात होता है कि, बिम्बिसार की मौत स्वाभाविक नहीं थी उसके पुत्र अजातशत्रु ने सिंहासन की लालच में अपने पिता की हत्या कर दी थी पहले उसने अपने पिता को बंदी बनाया जब उसकी माता ने इसका विरोध किया तो उसने अपनी मां को भी बंदी गृह में डाल दिया कुछ दिनों पश्चात् उसने बंदी गृह में ही अपने पिता की हत्या कर दी उसकी माता अपने पति की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं और उनकी भी मौत हो गई जब इस बात की सूचना कोशल नरेश प्रेसेनजित को चली कोशल देवी प्रेसेनजित की बहन थीं तो कोशल नरेश ने मगध पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध में पहले अजातशत्रु की पराजय हुई बाद में उसकी विजय हुई बौद्ध साहित्य से यह भी ज्ञात होता है कि बाद में प्रेसेनजित ने अपनी पुत्री का विवाह अजातशत्रु से कर दिया अजातशत्रु के दोनों सौतेले भाई हल्ल बेहल्ल अपने पिता की मौत के बाद अपने नाना के घर लिच्छवी राज्य में चले गए थे बौद्ध साहित्य में एक कहानी मिलती है ह की वह दोनों राजकुमार अपने साथ एक मुक्ताहार और चेतक नामक का हाथी अपने साथ ले गए थे जिसे बिम्बिसार ने उन दोनों को उपहार में दिया था उसी हाथी और मुक्ताहार को वापस लेने के लिए अजातशत्रु ने लिच्छवी राज्य पर दो बार आक्रमण किया और दोनों बार उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा तब अजातशत्रु ने अपने महामंत्री बस्सकार को गुप्त रूप से लिच्छवी राज्य में भेजा जिसने तीन सालों तक वहां रहकर लिच्छवी गणराज्य में फूट और वैमनस्य के बीज बोए उसके बाद जब अजातशत्रु ने लिच्छवी राज्य पर आक्रमण किया तो वह लिच्छिवियों को हराने में कामयाब हुआ अजातशत्रु को बाद में अपने कुकृत्यो पर पश्चाताप हुआ और उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया प्रथम बौद्ध संगीति अजातशत्रु के शासनकाल में ही हुई थी के बाद उसके उत्तराधिकारी उतने योग्य नहीं थे और विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे थे इस प्रकार धीरे धीरे हर्यंक वंशी शासकों की शक्ति क्षीण होने लगी और उसके बाद मगध राज्य पर हर्यंक वंशी राज्य समाप्त हो गया और मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना हुई जिसका शासक शिशुनाग था शिशुनाग बहुत ही शक्तिशाली और महात्वाकांक्षी शासक था उसन 18 वर्षों तक शासन किया उसके बाद उसका पुत्र कालाशोक सिंहासनासीन हुआ वह भी बहुत वीर और शक्तिशाली शासक था कालाशोक के शासनकाल में द्वितीय बौद्ध संगीति हुई थी कालाशोक के शासनकाल में ही मगध की राजधानी राजगृह से बदल कर पाटलिपुत्र हो गई उसके बाद मगध पर शासन करने वाले सभी राजवंशों की राजधानी पाटलिपुत्र ही बनी रही कालाशोक की मृत्यु के पश्चात शिशुनाग वंश की शक्तियां क्षीण होने लगी और फिर मगध पर शिशुनाग वंश को समाप्त कर नंद राजवंश की नींव महापद्म नंद ने डाली नंद वंश के इतिहास का परिचय आगे के भाग में करूंगी आज इतना ही कल फिर मिलेंगे।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
11/5/2022