दिन रविवार
8/5/2022
महाकाव्य कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आर्थिक, और धार्मिक जीवन का संक्षिप्त परिचय भाग 8
कल मैंने रामायण और महाभारत के विषय में संक्षिप्त चर्चा की थी आज मैं महाकाव्य कालीन समाज का संक्षिप्त इतिहास यहां प्रस्तुत करने जा रही हूं यहां विस्तार से विवेचना करना सम्भव नहीं है कोई भी ग्रंथ जिस काल में रचा जाता है उस ग्रंथ में तत्कालीन समाज का कुछ परिचय हमें प्राप्त होता है परंतु रामायण और महाभारत तो ऐसे ग्रंथ हैं जिसमें तत्कालीन समाज की विस्तार से विवेचना की गई है दोनों ही महाकाव्यों में सामाजिक सांस्कृतिक राजनीतिक आर्थिक और धार्मिक जीवन लगभग एक जैसा ही है सिर्फ नैतिक मूल्यों में कुछ अन्तर दिखाई देता है जैसे रामायण कालीन समाज नैतिक मूल्यों को ज्यादा महत्व देता था लेकिन आगे चलकर महाभारत कालीन समाज में हमें नैतिक मूल्यों का ह्रास दिखाई देता है।
सबसे पहले हम महाकाव्य कालीन सामाजिक जीवन की चर्चा करेंगे महाकाव्य कालीन समाज में भी संयुक्त परिवार को महत्व दिया जाता था परिवार का जेष्ठ व्यक्ति घर का मुखिया होता था उसकी आज्ञा का पालन सभी को करना पड़ता था परंतु परिवार के अन्य सदस्यों को भी अपनी राय रखने की स्वतंत्रता थी और यदि उनकी राय उचित होती थी तो वह मान भी ली जाती थी महाकाव्य काल में वर्ण व्यवस्था जन्म पर आधारित हो गई थी समाज चार वर्णों में विभक्त था उनके अनुसार ही उनके कर्म निर्धारित थे ब्राह्मण को समाज में ऊंच पद प्राप्त था ब्राह्मण विशेष परिस्थितियों में क्षत्रिय कर्म कर सकता था और क्षत्रिय ब्राह्मण का इसका सबसे बड़ा उदाहरण ऋषि विश्वामित्र जी हैं जो जन्म से क्षत्रिय थे पर कर्म से बाह्मण और दूसरी ओर आचार्य द्रोणाचार्य जो जन्म से बाह्मण थे पर कर्म से क्षत्रिय परंतु ऐसे उदाहरण अत्यल्प ही हैं इस समय लोगों का जीवन वैभवशाली था राजपरिवारों की जीवनशैली तो वैभवशाली और विलासितापूर्ण दोनों प्रकार की थी । समाज के लोगों के रहनसहन में अन्तर भी परिलक्षित था जहां राजपरिवार के सदस्यों को सम्पूर्ण सुख सुविधाएं उपलब्ध थीं। वहीं मध्यवर्गीय लोगों का जीवन स्तर उतना संपन्न नहीं था और थोड़ा कष्टकर भी था फिर भी हर व्यक्ति सुखी और खुशहाल था इस समय के लोग ज्यादातर साधारण वेशभूषा ही धारण करते थे सूती और ऊनी वस्त्रों का समाज में ज्यादा प्रचलन था पर राजपरिवारों के सदस्य, बड़े बड़े व्यापारी, पदाधिकारी रेशमी वस्त्र धारण करते थे महाकाव्य काल में रेशमी वस्त्र धारण करने का उल्लेख प्राप्त होता है इस समय के लोग आभूषण प्रेमी थे सोने चांदी हीरे मोती माणिक्य के आभूषणों को अमीर व्यक्ति धारण करते थे पर मध्यवर्गीय परिवार के लोग चांदी के आभूषण ही पहनते थे इस समय भी दो वस्त्र ही धारण किया जाता था पगड़ी पहनने की प्रथा थी स्त्रियां आधुनिक समाज की तरह साड़ी पहनती थी और सिर पर दुपट्टा जैसा वस्त्र धारण करतीं थीं पर्दा प्रथा का उल्लेख इस काल में नहीं था बालविवाह का भी प्रचलन नहीं हुआ था लड़कियां अपना वर चुनने के लिए स्वतंत्र थीं स्वयंवर प्रथा प्रचलित थी सीता स्वयंवर और द्रौपदी का स्वयंवर विशेष उदाहरण हैं आश्रम व्यवस्था का हर व्यक्ति पालन करता था ब्रह्मचर्य आश्रम और गृहस्थ आश्रम को विशेष महत्व प्राप्त था वानप्रस्थाश्रम का भी उल्लेख मिलता है राजमाता सत्यवती ने वानप्रस्थाश्रम ग्रहण किया था राजा दशरथ भी वानप्रस्थाश्रम ग्रहण करना चाहते थे।
संस्कारों का समाज में प्रचलन था उसमें जन्मोत्सव, उपनयन, विवाह, अंत्येष्टि संस्कार अपना विशेष महत्व रखते थे वैसे तो सभी सोलह संस्कारों का पालन किया जाता था।
समाज की आर्थिक स्थिति बहुत ही सुदृढ़ थी कृषि, व्यापार और पशुपालन अपने चरमोत्कर्ष पर थे समाज का प्रत्येक वर्ग सुखी, संपन्न और संतुष्ट था समाज में ब्राह्मणों का विरोध कोई नहीं करता था लोग उनके क्रोधाग्नि से डरते थे दुर्वासा ऋषि इसके सबसे ज्वलंत उदाहरण थे।
महाकाव्य कालीन समाज में राजतंत्रात्मक सत्ता का वर्चस्व था राजा की शक्तियां बढ़ने लगी थी अब राजा सम्राट की उपाधियां धारण करने लगे थे गणतंत्र शासन पद्धति भी समाज में विद्यमान थी कुछ छोटे छोटे गण राज्यों ने मिलकर अपना एक संघ बनाया था जिसे संघ राज्य कहा जाता था।
परंतु राजतंत्रात्मक सत्ता अधिक शक्तिशाली थी राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था पर राजा निरंकुश नहीं था कुछ अपवादों को छोड़कर पर जो राजा निरंकुश हो जाते थे उन्हें प्रजा सिंहासन से उतार देती थी राजा का निर्णय अंतिम होता था पर राजा कोई भी निर्णय बिना मंत्रिमंडल की सलाह के नहीं लेता था फिर भी समाज में धृतराष्ट्र जैसे उदारहरण मिल ही जाते हैं पर ऐसे राजाओं का राज्य अंत में पतन की गर्त में समाहित हो जाता था।
इसीलिए महाकाव्य कालीन राजा निरंकुश नहीं थे उन्हें ईश्वरीय शक्ति और प्रजा का भय रहता था वह कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय अपने पुरोहित और मंत्रियों की सलाह के बिना नहीं लेते थे राम का राज्याभिषेक करने का निर्णय और पाण्डु को राजा बनाने का निर्णय इसके उदाहरण हैं।
महाकाव्य काल में राज्यों का विस्तार बहुत बड़ा होने लगा था राज की न्यूनतम ईकाई ग्राम थी ग्राम का मुखिया ग्रामीण कहलाता था न्यायालय का न्यायाधीश राजा ही होता था दंड देने का अधिकार राजा को ही था राजा स्वयं दंड निर्धारित नहीं कर सकता था शास्त्रों में वर्णित दंड विधान के आधार पर ही राजा अपना फ़ैसला सुनाता था।
महाकाव्य काल में शिक्षा व्यवस्था बहुत उच्च कोटि की थी शिक्षा ग्रहण करने के तीन प्रकार थे गुरू कुल में जाकर ,घर में शिक्षक को बुलाकर, या स्वयं अध्यन करके स्त्रियों को भी शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार था पर स्त्रियों की स्थिति शोचनीय होती जा रही थी वह गृह की प्रमुख ज़रूर थीं पर अंतिम निर्णय घर के पुरुषों का ही होता था।
महाकाव्य काल में सबसे ज्यादा परिवर्तन धर्म के क्षेत्र में हुआ उपनिषदों के समय जो ब्राम्हणों का वर्चस्व कम हो गया था वह पुनः स्थापित हो गया और यज्ञ हवन के स्थान पर अब पूजा का रूप बदलने लगा था लोग अब प्रकृति पूजा से विमुख हो चले थे उनका स्थान अब मूर्ति पूजा ने ले लिया था ऋग्वैदिक कालीन देवताओं ने भी अपना वर्चस्व खो दिया था अब महान व्यक्तित्व को ईश्वरीय दर्जा दिया जाने लगा था। अब राम, कृष्ण, गणेश, लक्ष्मी, दुर्गा,काली, सरस्वती की पूजा होने लगी थी यज्ञों का प्रचलन कम हो गया था लोग कर्म और पुनर्जन्म पर विश्वास करने लगे थे अब समाज में आशावादी दृष्टिकोण पनपने लगा था।
कर्म प्रधान समाज बनने लगा था परंतु लोगों को सिर्फ़ कर्म करने का अधिकार था उसके फल की इच्छा करना अनुचित था गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही उपदेश दिया था की हमारे अधिकार क्षेत्र में सिर्फ कर्म करना है उसका फल हमें ईश्वर देगा वह भी हमारे कर्म के अनुरूप हम जैसा कर्म करेंगे वैसा फल पाएंगे दूसरे शब्दों में यह डर मन में था की यदि हमने बुरा कर्म किया तो फल भी बुरा ही मिलेगा इसलिए बुरा कर्म करो ही नहीं इस सोच ने समाज को एक नई दिशा दी और वह पाप कर्म से बचने लगा यदि हम ग़लत मार्ग अपनाएंगे तो एक न एक दिन उसका भयानक परिणाम हमें मिलेगा ही संस्कारों को विशेष महत्व दिया गया नैतिकता पर भी जोर दिया जाने लगा था इसका उदाहरण भी हमारे सामने है जैसे राम आज भी समाज में आदर्श के रूप में प्रचलित हैं कृष्ण की अपनी महिमा है युधिष्ठिर सत्य के पालक हैं वहीं धृतराष्ट्र, दुर्योधन, दुशासन को हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनके बुरे कर्मों का दंड भी ईश्वर ने उन्हें दिया।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं की महाकाव्य काल ने आधुनिकता की ओर अपने क़दम बढ़ाने शुरू कर दिए थे समाज में आदर्श स्थापित होने शुरू हो गए थे पाप पुण्य, धर्म कर्म, अच्छाई बुलाई की तस्वीरें भी साफ़ हो चलीं थीं कहने का तात्पर्य यह है कि,समाज में नैतिकता और धर्म को मान्यता प्राप्त थी यदि कोई नैतिकता का त्याग करता था तो उसे समाज और ईश्वर दोनों ही मिलकर दंडित करते थे।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
8/5/2022