दिन शुक्रवार
6/5/2022
उत्तर वैदिक के अंत तक भारतीय समाज, सभ्यता, संस्कृति और साहित्य का अत्यन्त विस्तार हो चुका था।अब बढ़ता हुआ वाड्.मय एवं ज्ञान संरक्षण एक समस्या बन गया था सभी साहित्य को पूरे विस्तार से याद करना संभव न था। अतः अब आवश्यकता यह थी कि, उसका संक्षेपण किया जाय उसके बाद जिस शैली में साहित्य संक्षेपण का कार्य सम्पन्न हुआ उसे सूत्र_ शैली कहा गया इस प्रकार गद्य रूप में लिखे गये ग्रंथों को सूत्र कहा गया इसका उल्लेख इतिहासकार राजबली पाण्डे जी ने अपने ग्रंथ प्राचीन भारत के पृष्ठ 82 पर किया है।
अधिक से अधिक साहित्यिक सामग्री कम से कम शब्दों में सूत्रों के द्वारा लिखी जाती है सूत्रों ने विशाल साहित्य के सार को याद करने के लिए सरल रूप में प्रस्तुत किया तथा उसे सुरक्षित रखने में सहायता प्रदान की अतः जिस काल में सूत्रों की रचना हुई उसे सूत्र_ युग कहा जाता है।
प्रारंभिक सूत्र_ ग्रंथ वेदांत से सम्बंधित थे जिसमें कल्प, शिक्षा, व्याकरण,निरूक्त, छंद तथा ज्योतिष नामक छः विषय थे इनका उद्देश्य धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या करना और उन्हें व्यावहारिक प्रयोग के योग्य बनाना था।ऐसे ग्रंथों में यास्क का निरूक्त और पाणिनी की अष्टाध्यायी है। इसके अतिरिक्त कल्प नामक वेदांत के तीन सूत्र_ ग्रंथ लिखे गए।
पहला _ श्रौतसूत्र जिसमें महायज्ञों का वर्णन है
दूसरा_ गृह्मसूत्र जिसमें गृह यज्ञों एवं कर्मकाण्ड का वर्णन है
तीसरा_ धर्मसूत्र जिसमें राजनीति एवं सामाजिक परम्पराओं का उल्लेख है
सूत्रों से तत्कालीन सामाजिक स्थिति पर व्यापक प्रकाश पड़ता है सूत्र काल में भी संयुक्त परिवार का ही बोलबाला था परंतु अब परिवार के हर सदस्य का अपना अधिकार क्षेत्र निर्धारित होने लगा था अब वंश का नाम वास्तविक या कल्पित मूल पुरुष के नाम पर आधारित होने लगा था।
वस्त्रों और आभूषणों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ था मनोरंजन के साधनों में गायन वादन और नृत्य का उल्लेख मिलता है आखेट और सामूहिक उत्सवों का उल्लेख भी मिलता है।
वर्ण व्यवस्था अब स्थिर हो गई थी सबके कर्म निर्धारित थे चारों वर्णों का उल्लेख प्राप्त होता है ब्राह्मणों का समाज में विशेष सम्मान था
आश्रम व्यवस्था का भी दृढ़ता से पालन किया जाता था उपनयन संस्कार के बाद ही बालक गुरु कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाता था।
सूत्र काल में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख मिलता है ज्यादातर विवाह सजातीय ही होते हैं पर अंतरजातीय विवाह भी होते थे बहुविवाह भी प्रचलित था पर यह ज्यादातर राजपरिवारों में ही होते थे।
स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार तो था परंतु अब उनकी दशा शोचनीय होती जा रही थी ऋग्वैदिक काल की तरह अब औरतों को सम्मान नहीं मिलता था लड़की का जन्म शोक का विषय माना जाने लगा था अब धीरे धीरे स्त्रियों के अधिकार सीमित होते जा रहे थे।
सूत्र काल में भी कृषि प्रधान व्यवसाय था पशुपालन और लघु उद्योग भी प्रचलित था दूसरे राज्यों से व्यापार भी होता था उस समय आर्थिक स्थिति उन्नतिशील थी।
अब राज्य दो प्रकार के थे राजतंत्रात्मक और गणतंत्रातम पर राजतंत्र अधिक प्रचलित था अब विशाल राज्यों का निर्माण होने लगा था राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता है न्यायालय पालिका राजा के अधीन ही थी दंड का अंतिम निर्णय राजा ही करता था राज्य की विशालता के कारण उसे कई भागों में विभक्त कर दिया था राज्य जनपदों में जनपद नगरों में और नगर ग्रामों में विभाजित हो गए थे इस विभाजन के कारण राज्य के संचालन में सुविधा होती थी परन्तु अंतिम निर्णय राजा का ही होता था पुरोहितों का पद अत्यधिक महत्वपूर्ण और सम्मानित माना जाता था पुरोहित सिर्फ़ धार्मिक मामलों में ही नहीं राजनीति में भी उनका हस्तक्षेप था। राज्य की आय का प्रमुख स्रोत कर था कृषि का 1/6 या 1/10 कर के रूप में देना पड़ता था व्यापारियों को 1/10 कर देने का प्रावधान था कभी कभी 1/20 कर भी व्यापारियों को देना पड़ता था आपातकाल में कर को बढ़ाया जाता था और आपदाओं में कर को माफ़ करने का उल्लेख भी प्राप्त होता है
सूत्र काल में बहुदेव वाद प्रचलित था यज्ञीक कर्म काण्ड जटिल होने लगे थे मूर्ति पूजा का उल्लेख भी प्राप्त होता है देवताओं की पूजा के साथ साथ अंधविश्वास और जादू टोना भी समाज में प्रचलित था।
उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं की अब समाज उन्नतशील हो रहा था और राज्य का सर्वांगीण विकास होने लगा था सूत्र काल में यदि किसी क्षेत्र में अवनति हो रही थी तो वह थी स्त्रियों के अधिकार और उनके सम्मान में अन्य सभी क्षेत्रों में समाज अपना सर्वांगीण विकास कर रहा था राजतंत्रात्मक सत्ता की शक्तियां बढ़ने लगी थी गणतंत्र भी अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हो रहा था अतः हम कह सकते हैं की सूत्र काल विकास और उन्नति की ओर अग्रसर था।आज इतना ही कल आगे की चर्चा करेंगे
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
6/5/2022