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मेरी डायरी ज्ञान मंजूषा और इतिहास के कुछ पन्ने मई 2022 भाग 14

26 मई 2022

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दिन शनिवार
14/5/2022

  चाणक्य का संकल्प और नदंवश का उन्मूलन कैसे संभव हुआ इसका संक्षिप्त परिचय  भाग 14

मगध सम्राट धननंद बहुत ही शक्तिशाली और कूटनीतिज्ञ शासक था उसके पास एक विशाल सेना थी फिर भी चाणक्य जैसे आचार्य ने अकेले चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर नंदवश का विनाश कैसे किया यह प्रश्न तो विचारणीय है ही मैं यहां चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन का संक्षिप्त परिचय देने की कोशिश कर रही हूं।

  चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्राचार्य थे उनके मन में देशप्रेम की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी उस समय भारत असंख्य छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था राजाओं का आपसी वैमनस्य भारत की एकता अखंडता को प्रभावित करने लगा इसी बीच विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण भी प्रारंभ कर दिया सबसे पहले ईरानियों का आक्रमण भारत पर हुआ हखमनी राजवंश के ईरानी शासक डेमेट्रियस प्रथम ने भारत पर आक्रमण किया और यहां भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों पर अपना अधिकार भी किया डेमेट्रियस प्रथम के बाद उसके पुत्र ने भी अपने पिता के द्वारा स्थापित भारतीय राज्य पर शासन किया उसके बाद यूनानी शासक सिकंदर ने भारत को विजित करने का स्वप्न देखा कुछ हद तक वह कामयाब भी हुआ भारत के कुछ छोटे छोटे राज्यों को सिकंदर ने जीता राजा पोरस के साथ सिकंदर का युद्ध इतिहास के पन्नों में दर्ज़ है।
भारत में राजा पोरस जैसे वीरों की कमी नहीं थी पर उनका आपसी वैमनस्य भारत की अखंडता को प्रभावित कर रहा था सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत विदेशियों के लिए आकर्षक का केंद्र बन गया।
चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्राचार्य थे उनके मन में एक द्वंद्व चल रहा था जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया और उसकी सेना ने व्यास नदी के आगे बढ़ने से इंकार कर दिया तो चाणक्य के मन में एक विचार कौंधा कि, क्यों न वह नदंवश के राजा धननंद के पास जाकर उनसे कहे की वह अपनी सैन्य शक्तियों का प्रयोग विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने के लिए करे इसी बीच उन्हें मगध नरेश का आमंत्रण प्राप्त हुआ की धननंद कुछ ब्राह्मणों को वादविवाद के लिए आमंत्रित कर रहा है चाणक्य भी वहां गए धननंद बहुत ही अहंकारी राजा था और वह सौन्दर्य का पुजारी भी था उसे सुन्दर चींज ही पसंद थीं चाणक्य देखने में सुन्दर नहीं थे उनका रंग काला था उनके काले रंग को  लेकर धननंद ने चाणक्य का भरी सभा में अपमान किया तब चाणक्य ने अपनी शिखा खोलकर धननंद की भरी सभा में प्रण लिया की जब तक मैं नंदवश का उन्मूलन नहीं कर दूंगा तब तक अपनी शिखा नहीं बांधूगा इतना कहकर चाणक्य धननंद की राजसभा से निकल गए उसके बाद वह चंद्रगुप्त मौर्य से कैसे मिले और नंदवश का विनाश किस प्रकार संभव हुआ इसका उल्लेख कल के भाग में करूंगी आज इतना ही कल फिर मिलेंगे शुभरात्रि

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
14/5/2022


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रचनाएँ
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मैं अपनी डायरी में इतिहास के कुछ पन्नों को उकेरने की कोशिश कर रही हूं मैं इसमें कितना सफल हुई हूं यह निर्णय शब्द इन के पाठक गण ही करेंगे।
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