दिन रविवार
15/5/2022
चाणक्य , चंद्रगुप्त मौर्य का मिलन भाग 15
धननंद की राजसभा से अपमानित होकर जब चाणक्य बाहर आए तो उनके मन में अपमान की ज्वाला धधक रही थी यह अपमान की ज्वाला इसलिए भी तीव्र हो उठी थी कि, धननंद जैसा शक्तिशाली शासक सिर्फ़ अपने सुख ऐश्वर्य में लिप्त था उसे देश,समाज, अपनी प्रजा के बारे में सोचने का समय नहीं था वह दिन रात अपनी अय्याशी और अपनी धनलोलुपता को बढ़ावा दे रहा था धननंद की धन पिपासा शांत होने का नाम नहीं ले रही थी मगध राज्य में न्याय व्यवस्था ध्वस्त हो गई थी राज्य के पदाधिकारियों का अत्याचार प्रजा पर बढ़ता जा रहा था चारों ओर अशांति फैली हुई थी पर कोई भी व्यक्ति विद्रोह करने की हिम्मत नहीं कर रहा था इसका कारण था कि, धननंद के पास विशाल सेना थी जिसका सामना छोटे राज्य नहीं कर सकते थे दूसरी तरफ विदेशियों की नज़रें भी भारत पर पड़ चुकी थीं भारत की यह स्थिति चाणक्य के लिए असहनीय हो गई थी उसने सोचा था की वह अपने पांडित्य पूर्ण व्यवहार से धननंद को प्रभावित कर लेगा और उसे देश हित और प्रजा हित के लिए कार्य करने की सलाह देगा पर वहां उल्टे धननंद ने चाणक्य को ही अपमानित कर दिया तब चाणक्य ने एक रणनीति बनाई उसने भारत भ्रमण करने का निर्णय लिया इसके पीछे उनका उद्देश्य यह था की वह उन राज्यों के शासकों से मिलेंगे जिन्हें धननंद ने अपने अधीन कर लिया है और उन्हें एकत्रित करने की कोशिश करेंगे क्योंकि धननंद ने उन राज्यों पर अधिक कर लगाकर उन शासकों और उनकी प्रजा का शोषण कर रहा था चाणक्य उन लोगों को एकजुट करके धननंद के विरोध में खड़ा करना चाह रहे थे पर उसके लिए चाणक्य को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उन शासकों का नेतृत्व कर सके क्योंकि चाणक्य जानते थे कि,जो शासक बिना युद्ध किए ही धननंद की अधीनता स्वीकार कर चुके हैं वह उसके विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाएंगे इसलिए उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जिसके मन में देशप्रेम की भावना हो लोगों के कल्याण की भावना हो लोगों के दुःख दर्द को दूर करने की चाहत हो जो निडर, साहसी,वीर, शक्तिशाली हो और देश के लिए मर मिटने को तत्पर रहे ऐसे व्यक्ति की तलाश का जज़्बा चाणक्य को भारत भ्रमण के लिए प्रोत्साहित कर रहा था चाणक्य की यह तलाश भी पूरी हो गई एक दिन जब चाणक्य एक गांव से गुजर रहे थे तो वह थकान के कारण एक वृक्ष के नीचे बैठ गए वहीं कुछ बालक चोर सिपाही का खेल खेल रहे थे तभी उसमें एक एक बालक ने कहा की हम चोर सिपाही का खेल खेल रहे हैं पर जब सिपाही चोर को पकड़ेगा तो उस चोर को दंड कौन देगा तब उसमें से एक बालक ने कहा की हमारे बीच एक राजा होना चाहिए तब एक दूसरे बालक ने कहा मैं राजा बनूंगा तुम लोग चोर को पड़कर लाओ जब चोर को पकड़कर लाया गया तो उस बालक ने उस चोर को ऐसी दंड दिया जिसे सुनकर चाणक्य चौंक गए उस बालक ने उस चोर को चोरी की हुई वस्तु का तीस गुना जुर्माना अदा करने के लिए कहा और अगर वह जुर्माना नहीं दे सकता तो उसके हाथ काट दिए जाएं यह घटना किसी प्रमाणिक तथ्य पर आधारित नहीं है किवीदंति के आधार पर ही है पर कौटिल्य अर्थशास्त्र में दंड विधान का यह नियम वर्णित है की मौर्य युग में लोग अपने घरों में ताला नहीं लगाते थे क्योंकि मौर्य युग में दंड विधान बहुत ही कठोर था उस समय चोरी करने वाले के हाथ काट दिए जाते थे इस आधार पर हम कह सकते हैं की यह कथानक सत्य ही होगा।
तब चाणक्य ने उस बालक को अपने पास बुलाया उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम चंद्रगुप्त बताया तब चाणक्य ने उसके माता पिता के विषय में पूछा तो उसने कहा की उसके माता पिता नहीं हैं वह अनाथ है जिस व्यक्ति के पास चंद्रगुप्त रहता था चाणक्य ने उसे धन देकर चंद्रगुप्त को खरीद लिया ऐसी कई अगल अलग कहानियां हमें मिलती हैं चाणक्य और चंद्रगुप्त के मिलन की चाणक्य और चंद्रगुप्त का मिलन कैसे हुआ यह बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं है यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि, चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने मिलकर एक नया इतिहास रचा यह हम सभी को ज्ञात है आगे का कथानक क्या था इसका उल्लेख अगले भाग में करूंगी आज इतना ही कल फिर मिलेंगे
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
15/5/2022