दिन सोमवार
16/5/2022
चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य का मिलन और नदंवश के विनाश की आधारशिला भाग 16
चाणक्य चंद्रगुप्त को लेकर तक्षशिला चले गए वहां उन्होंने चंद्रगुप्त को राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, नैतिक मूल्यों की शिक्षा, व्यवहारिक शिक्षा, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने की शिक्षाएं प्रदान की साथ ही साथ चंद्रगुप्त को शास्त्रों और शस्त्रों की संपूर्ण शिक्षा दी चंद्रगुप्त भी बहुत ही बुद्धिमान और प्रतिभाशाली लड़का था उसने चाणक्य से हर उस विषय की शिक्षा को ग्रहण किया और उसे आत्मसात भी किया जो चाणक्य ने चंद्रगुप्त को दी यूनानी इतिहासकारों के कथन से यह भी जानकारी मिलती है की चाणक्य ने चंद्रगुप्त का वेश बदलकर उसे यूनानियों के शिविर में भेजा जिससे वह यूनानियों की शस्त्र विद्या को भी सीख ले चंद्रगुप्त लगभग तीन साल तक सिकंदर के सैनिकों के शिविर में वेश बदलकर रहा लेकिन एक दिन वह वहां पहचान लिया गया यूनानी सैनिकों ने उसे पकड़ने की कोशिश की पर चंद्रगुप्त उनके बीच से उन्हें मारता हुआ उनकी आंखों के सामने से चला गया वह लोग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके चंद्रगुप्त की शस्त्र विद्या, बुद्धि और उसकी फुर्ती ने दुश्मनों को मात दे दी उसके बाद चंद्रगुप्त और चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को समय समय पर संबोधित करना प्रारम्भ किया चाणक्य उन विद्यार्थियों को यह समझाते की हमारे देश में जो अराजकता नदंवश के शासक धननंद के कारण फैली हुई है इसका विरोध हमें करना होगा नहीं तो कुछ समय बाद ही हम विदेशियों के गुलाम बन जाएंगे हमें धननंद जैसे अत्याचारी शासक और विदेशी आक्रमणकारियों से अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी ही होगी चाणक्य का भाषण वहां के विद्यार्थियों की समझ में आने लगा यह इतिहास का पहला उदाहरण है जब चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में छात्र संघ का बीजारोपण एक अच्छे कार्य अर्थात विद्यार्थियों के मन में देशप्रेम और जनकल्याण की भावना को जगाने और गलत बात का विरोध करने के लिए किया किया था अब कुछ विद्यार्थी चंद्रगुप्त से शस्त्र विद्या सीखने लगे कुछ उन राज्यों में जाकर लोगों को जागरूक करने की कोशिश करने लगे जिन राज्यों पर धननंद अधिक कर लगाकर उनका शोषण कर रहा था।
इस प्रकार धीरे धीरे लोगों को यह विश्वास होने लगा की चंद्रगुप्त के नेतृत्व में उन्हें धननंद के अत्याचारों से मुक्ति मिल सकती है चाणक्य कुछ व्यापारियों और जमींदारों से धन का दान भी एकत्रित करने लगे जिससे वह अस्त्र शस्त्र खरीद सकें और जिन लोगों को शस्त्रों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है उन्हें कुछ धन राशि वेतन के रूप में दी जा सके जिससे उनके मन में सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो की वह अपने परिवार की आर्थिक मदद कर सकते हैं।
यह काम इतना आसान भी नहीं था इसके लिए चाणक्य और चंद्रगुप्त को बहुत ही परिश्रम करना पड़ा लोगों के द्वारा अपमानित भी होना पड़ा पर चाणक्य और चंद्रगुप्त आने वाली परेशानियों से विचलित नहीं हुए बल्कि और दृढ़ संकल्पित होकर आगे बढ़ने लगे हर कठिनाई के बाद उन्होंने एक नया सबक सिखा जो उनके संकल्प के लिए रामबाण साबित हुआ इस प्रकार चाणक्य और चंद्रगुप्त ने 12 वर्षों तक अथक परिश्रम करके अपनी एक सेना तैयार की उन छोटे छोटे राज्यों की सेनाएं भी चाणक्य और चंद्रगुप्त के साथ मिल गई जो धननंद के अत्याचारों से मुक्ति पाना चाहते थे जब चाणक्य ने सब कुछ व्यवस्थित कर लिया तो उन्होंने एक गुप्त सभा बुलाई और यह निर्णय हुआ की अब हम सभी एक साथ मिलकर मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण करेंगे लेकिन यहां चाणक्य जैसे कूटनीतिज्ञ से भी एक बहुत बड़ी ग़लती हो गई जिससे फलस्वरूप प्रथम आक्रमण में उन्हें धननंद से पराजित होना पड़ा और वह लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर छिपते फिर रहे थे। आज इतना ही कल मैं आगे के कथानक की चर्चा करूंगी की चाणक्य और चंद्रगुप्त पहली बार मगध शासक धननंद से क्यों पराजित हुए।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
21/5/2022