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मेरी डायरी ज्ञान मंजूषा और इतिहास के कुछ पन्ने मई 2022 भाग 13

26 मई 2022

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दिन शुक्रवार
13/5/2022

नंद वंश के अंतिम सम्राट धननंद के जीवन का संक्षिप्त परिचय भाग 13

  पिछले भाग में मैंने तुम्हें बताया था सखी कि नंद वंश के सम्राट महापद्मनंद ने अपने शौर्य से पहली बार भारत को एकता के सूत्र में बांधने की पहल की इससे पहले भारत अनेकों छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था जिसके कारण भारत की अखंडता पर इसका प्रभाव पड़ रहा था अनेक राज्यों के होने के कारण राजाओं का आपसी वैमनस्य भी बढ़ता जा रहा था महापद्मनंद ने उत्तर भारत सभी छोटे राज्यों पर विजय प्राप्त कर उसे मगध में मिला लिया।

पुराणों के अनुसार  महापद्मनंद के आठ पुत्र थे वे एक साथ मिलकर मगध के सिंहासन पर विराजमान हुए पर साक्ष्यों के अनुसार महापद्मनंद और धननंद के शासनकाल का ही विवरण प्राप्त होता है धननंद के अन्य भाईयों का सिर्फ़ नाम मिलता है उनके द्वारा शासन गए जाने का कोई भी  उल्लेख प्राप्त नहीं है।

महापद्मनंद की मृत्यु के बाद धननंद मगध के सिंहासन पर विराजमान हुआ वह बहुत वीर शक्तिशाली और महात्वाकांक्षी शासक था परंतु इसके साथ ही साथ वह एक क्रुर और धनलोलुप शासक था कहते हैं की उसने अपने शासनकाल में जनता पर अत्यधिक कर लगाया गया था धननंद की धनलोलुपता इतनी बढ़ गई थी की उसने नमक और पत्थर पर भी कर लगा दिया था। धननंद के शासनकाल में मगध की जनता बहुत दुःखी थी ब्राह्मणों, और क्षत्रियों को अपमानित किया जाता था धननंद के शासनकाल में ही भारत पर सिकंदर का आक्रमण हुआ था धननंद की वीरता और उसकी विशाल सेना के कारण ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी को पार करने से इंकार कर दिया साक्ष्यों और इतिहासकार कर्टियस के अनुसार धननंद के पास दो लाख पदाति सैनिक,तीन हजार हाथी,बीस हजार घुड़सवार,दो हजार रथ सैनिकों की सेना थी जिससे धननंद की शक्ति बहुत बढ़ गई थी क्योंकि किसी भी राजा की शक्तियां उसकी सेना और राजकोष पर निहीत होती है धननंद की सेना और राजकोष दोनों ही समृद्धशाली थे इसलिए भी कोई बाह्य शक्तियां मगध राज्य पर आक्रमण करने की चेष्टा नहीं करती थी,।

धननंद के शासनकाल में मगध की जनता उससे त्रस्त थी पर उसका विरोध करने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी पर उसी समय चाणक्य का धननंद ने अपमान किया चाणक्य अपने अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने धननंद की राजसभा में अपनी शिखा खोलकर यह प्रण किया की वह जब तक नंद वंश का उन्मूलन नहीं कर देंगे वह अपनी शिखा नहीं बांधेंगे अपने प्रण को चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर पूरा किया धननंद को सामने से हराना सम्भव नहीं था इसलिए चाणक्य ने कूटनीति का प्रयोग करते हुए छापामारी युद्ध नीति का प्रयोग किया और धननंद की हत्या करके मगध के सिंहासन पर चंद्रगुप्त मौर्य को बैठाया और मगध की जनता को धननंद के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने किस प्रकार धननंद जैसे शक्तिशाली शासक की हत्या की और मगध साम्राज्य को अपने अधिकार में लिया इसका उल्लेख आगे के भाग में करूंगी आज इतना ही कल फिर मिलेंगे शुभरात्रि

  डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
13/5/2022


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मैं अपनी डायरी में इतिहास के कुछ पन्नों को उकेरने की कोशिश कर रही हूं मैं इसमें कितना सफल हुई हूं यह निर्णय शब्द इन के पाठक गण ही करेंगे।
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