दिन बृहस्पतिवार
5/5/2022
मेरी डायरी ज्ञान मंजूषा और इतिहास के कुछ पन्ने उत्तर वैदिक कालीन समाज का संक्षिप्त परिचय भाग 5
ऋग्वैदिक काल में सिर्फ़ ऋग्वेद की रचना हुई जबकि उत्तर वैदिक काल में अन्य तीनों वेदों ( यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) की रचना हुई और इसके अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषद और आरण्यक की रचनाएं भी हुई पाणिनी ने अपना व्याकरण ग्रन्थ अष्टाध्यायी भी इसी काल में लिखा था।
उत्तर वैदिक काल में भी संयुक्त परिवार का उल्लेख मिलता है पिता घर का मुखिया होता था उसकी आज्ञा का पालन परिवार का हर सदस्य करता था परिवार का कोई भी व्यक्ति यदि ग़लत आचरण करता था तो उसे दंडित किया जाता था उत्तर वैदिक काल में भी वस्त्रों और आभूषणों में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ था जैसा ऋग्वैदिक में पहनवा और साज सिंगार था वैसा ही उत्तर वैदिक में भी था इस समय पगड़ी का उल्लेख प्राप्त होता है वर्ण व्यवस्था अभी भी जटिल नहीं थी लोग अपनी स्वेच्छा से व्यवसाय का चयन करते थे कर्म के आधार पर वर्ण का विभाजन होता था विवाह भी अन्य वर्णों के साथ हो सकता था वैसे ज्यादातर सजातीय विवाह ही होता था इस युग में भी वर्ण और जाति प्रथाएं जटिल नहीं थीं।
उपनयन संस्कार का उल्लेख उत्तर वैदिक काल में प्राप्त होता है उपनयन संस्कार के बाद ही बालक गुरु कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाता था आश्रम व्यवस्था का उल्लेख भी उत्तर वैदिक काल में मिलता है आश्रम चार प्रकार के थे इसका विस्तृत वर्णन मैं आगे चलकर करूंगी।
स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन होने लगा था अब उन्हें उतना सम्मान प्राप्त नहीं था जितना ऋग्वैदिक काल था फिर भी उनकी शिक्षा पर रोक नहीं थी स्त्रियां अपनी पसंद से विवाह कर सकतीं थीं बालविवाह इस युग में भी नहीं होते थे विधवा विवाह पर रोक नहीं था फिर भी औरतों की स्थिति शोचनीय होती जा रही थी पुत्र के जन्म पर उत्सव होता था कन्या का जन्म शोक का कारण बनने लगा था बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन बढ़ने लगा था राजपरिवारों में तो यह बहुतायत मात्रा में प्रचलित था इस युग में भी पर्दा प्रथा नहीं थी लेकिन स्त्रियों पर कुछ प्रतिबंध लगने लगे थे
राजसत्ता अब धीरे धीरे पैतृक होने लगी थी राजा भी निरंकुशता की ओर अग्रसर होने लगे थे क्योंकि अब राज्य की सीमाओं का विस्तार होने लगा था सभा और समिति इस समय भी थीं पर उनके अधिकार सीमित होने लगे थे राज्य की विशालता के कारण सभा और समिति के सदस्य हर मंत्रिमंडल के सम्मेलनों में शामिल नहीं हो पाते थे राजा का ही निर्णय अब सर्वमान्य होने लगा था इस समय मंत्रिमण्डल होता था जिसे रत्नी कहा जाता था प्रजा कर भी देती थी जिसे बलि,शुल्क और भाग कहते थे दंड देने का अधिकार राजा के पास था दंड में कठोरता के साथ साथ अब पक्षपात पूर्ण निर्णय होने का उल्लेख भी प्राप्त होता है इसका कारण था राजा और पदाधिकारियों में निरंकुशता का बढ़ावा राजा को ईश्वरीय शक्ति से प्रभावित माना जाने लगा था राज सत्ता भी अब योग्यता के आधार पर नहीं वंशानुगत हो चली थी ज्यादातर ज्येष्ठ पुत्र ही गद्दी का उत्तराधिकारी होता था।
उत्तर वैदिक काल में ईश्वर की पूजा में कर्मकाण्ड प्रचलित होने लगा था ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए बड़े बड़े यज्ञों का अनुष्ठान होता था इस समय यज्ञों का प्रचलन बहुत बढ़ गया था अश्वमेध यज्ञ, राजसूय यज्ञ, बाजपेय यज्ञों का अनुष्ठान होता था जिसमें धन का अपव्यय होने लगा था ईश्वरीय आराधना जटिल होने लगी थी अब उसमें ऋग्वैदिक काल की तरह सरलता नहीं रह गई थी धीरे धीरे समाज में परिवर्तन हो रहा था कुछ क्षेत्रों में तो परिवर्तन सकारात्मक थे पर कुछ क्षेत्रों में उनमें जटिलताओं का समावेश होने लगा था फिर भी सामाजिक सांस्कृतिक स्वरूपों में ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ था धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्रों में परिवर्तन होने लगे थे जिसने आगे चलकर सामाजिक ढांचे को ही परिवर्तित करने का कार्य किया आज इतना ही कल सूत्रकाल पर कुछ चर्चा करूंगी।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
5/5/2022