लखनऊ: सत्ता की मादकता बड़ी भयावह होती है। यह ओछी मानसिकता वाले असहिष्णु राजनेताओं और नौकरशाहों को बडा निर्मम बना देती है। उत्तर प्रदेश के पूर्व माध्यमिक शिक्षा निदेशक संजय मोहन ने अपनी पुस्तक ‘मेरी जेल यात्रा ःएक कहानी ‘ के माध्यम से कुछ ऐसा ही एहसास कराने का प्रयास किया है। देश के जाने माने शायर मुनव्वर राना ने कल राजधानी लखनऊ के प्रेस क्लब में इसी पुस्तक का लोकार्पण किया है। मुख्य वक्ता थे प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त वीरेंद्र सक्सेना।
संजय मोहन प्रदेश की मायावती और मुलायम सिंह यादव की सरकारों में माध्यमिक शिक्षा निदेशक रहे हैं। इनकी माने, तो इनका कसूर सिर्फ इतना ही रहा है कि इन्होंने तत्कालीन मायावती सरकार में बेहद ताकतवर नौकरशाह रहे कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर सिंह के शिक्षा विभाग से संबंधित एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसले पर सवाल उठाने की जोखिम उठाई थी। कुछ ऐसा ही दुस्साहस इन्होंने मुलायम सिंह यादव के तीसरे मुख्य मंत्रित्व के कालखंड में किया था। नतीजतन, अपने पद से हाथ धो बैठने के अलावा, इन्हें दो साल से अधिक समय तक विचाराधीन कैदी के रूप में जेल की यंत्रणा झेलनी पडी थी। इस दौरान, ‘ऊपर‘ के कथित इशारे पर इनके परिवार को पुलिसिया जुल्म का शिकार होना पडा था। इसी के चलते भयाक्रांत इनकी पुत्रवधू को कोख में पल रहे अपने सात माह के शिशु से हाथ धोना पड गया था।
इस पुस्तक में कहा गया है कि अपने 36 वर्षों की सरकारी सेवा में संजय मोहन 11 वर्षों तक माध्यमिक सेवा विभाग के सर्वोच्च पद पर रहे हैं। इंगलैंड के लीड्स विश्वविद्यालय में ‘प्रोजेेक्ट मैनेजमेंट‘ कोर्स के लिये इन्हें नामित किया गया था। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ एजूकेशनल प्लानिंग के उद्देश्य से इन्हें पेरिस, फ्रांस और जेनेवा भी भेजा गया था। पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ने इन्हें स्काउटिंग के लिये देश का सर्वोच्च सम्मान ‘सिल्वर एलीफैंट‘ प्रदान किया था। प्रदेश में पहली बार किसी व्यक्ति को यह यह गौरव दिया गया था। लेकिन, सरकार की नजर टेढी होते ही ये सारी उपलब्धिया एक ही झटके में अर्थहीन हो गयीं। इनका आरोप है कि आसानी से जमानत न मिलने पर यह अर्से तक यह जेल में ही पडे सडते रहें, इसलिये साजिशन जेल में ही इन पर गैंगेस्टर एक्ट तक लगा दिया गया। इन्हें एक दर्जन अपराधियों के गिरोह का सरगना तक साबित करने की कोशिश की गयी।
जेल की यंत्रणा का उल् लेख करते हुए संजय मोहन ने कहा है कि उन्हें जेल के जिस बैरक में रखा गया था, उसमें दीवार की बजाय लोहे के जंगले लगे थे। इसलिये दो सालों तक इन्हें भयंकर लू के थपेडों और हाड कपां देने वाली शीतलहरी झेलनी पडी थी। इससे भी ज्यादा त्रासद स्थिति प्रत्येक लगभग 15 दिन में पुलिस की गाडी से अन्य वंदियों के साथ जिला न्यायालय जाना-आना रहा है।
इस पुस्तक में रमाशंकर मिश्र की दास्तान रूह कपां देने वाली है। आरोप है कि इस व्यक्ति को संजय मोहन के खिलाफ अदालत में झूठी गवाही देने के लिये पुलिस की अमानवीय यंत्रणा का शिकार होना पडा था। पीडित रमाशंकर ने कानपुर के जिला जज की अदालत में दिये गये अपने अपने हस्तलिखित पत्र में आरोप लगाया था कि पुलिस इंसपेक्टर दिनेश त्रिपाठी तथा दूसरे पुलिस कर्मियों ने अकबरपुर कोतवाली में उसके हिप और कमर में इतने पट्टे मारे थे कि उनसे खून बहने लगा था। नाक के जरिये एक बाल्टी पानी पिलाने वह अचेत हो गया था। होश आने के बाद उसके दोनों पैरों को बांधकर उसे जमीन में चित्त लिटाकर उसके दोनों पैरों के तलुओं पर लाठियों से निर्मम प्रहार किया गया था। उसके दोनों पैरों को बांधकर उसे जमीन से तीन फीट ऊपर उल्टा टांगकर नीचे धुआं सुलगा दिया जाता था। इसके बाद उसके हिप और कमर पर बेल्ट की बेरहम मार। उसे बिजली के जलते हुए हीटर पर पेशाब करने के लिये मजबूर किया गया। अंततः जमानत पर छूटने के कुछ ही दिनों के बाद उसने लखनऊ के एक अस्पताल में अपना दम तोड दिया। इति।
संजय मोहन से साक्षात्कार
आपको इस पुस्तक को लिखने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
आप इसे मेरी विवशता कह सकते हैं। राजनीति क विद्वेष और मेरे विरुद्ध कूटरचित षड्यंत्रों ने मुझे तथा मेरे परिवार को नेस्तनाबूत करने में कोई कसर नहीं छोडी थी। मेरी जेल यात्रा बडी त्रासद गाथा बन चुकी है।
प्रदेश की किस सरकार में ऐसा किया गया है?
पहले मायावती की सरकार में, फिर मुलायम सिंह यादव की सरकार में। मैं इन दोनों ही सरकारों में प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विभाग का निदेशक रहा हूं।
तत्कालीन मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव आपसे क्यों खफा थे?
पहले वह मेरे कार्यों से बहुत संतुष्ट थे। उनकी सरकार में लगभग 42 हजार अभ्यर्थियों को बिना किसी विवाद के प्राथमिक विद्यालयों में निष्पक्ष ढंग से चयन किया जाना मेरे विभाग की बडी महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है। इसकी उन्होंने सार्वजनिक रूप से सराहना कर मेरी पीठ भी ठोंकी थी।
फिर ऐसा क्यों हुआ
इसके कई कारण रहे हैं। एक खास वजह तो मुलायम सिंह यादव का अपनी बिरादरी के लोगों से प्रबल मोह रहा है। इसी के चलते उन्होंने मेरे स्थान पर मेरे अधीनस्थ अधिकारी रहे वासुदेव यादव को विभाग का निदेशक बना दिया। इन पर करोडों रु के घोटालों का आरोप रहा है। इलाहाबाद हाइकोर्ट इसकी सी.बी.आई.जांच का आदेश दिया था। लेकिन, मुलायम सिंह यादव के इस चहेते को बचाने के लिये सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक दौड लगायी थी। बाद में ऊपर की अनुकंपा से सरकार ने उन्हें पूरी तरह पाकसाफ बना दिया । इति।