मेरी पहली पढी पुस्तक
वैसे तो मैंने बहुत सी पुस्तके पढी, लेकिन सभी पुस्तके कभी भी पुरी तरह से नही पढी. जब मैं स्कूल में था तो बहुत पुस्तकें पढता था, लेकिन वो मैंने दिल से कभी नहीं पढी,
मैंने उन्हें सिर्फ मार्क्स पाने के लिए या होमवर्क करने के लिए पढा.मुझे पाठशाला के पुस्तक पढने में कोई दिलचस्पी नहीं थी.
लेकिन मुझे याद एक किताब जो मैंने पूरे दिल से और पूरी पढी थी और मैंने उस किताब को लगभग छब्बीस दिनों में पढकर पूरा किया था और वो किताब थी 'छत्रपती शिवाजी' इसी किताब को मै मेरी पहली पढी पुस्तक मानता हूँ,ये वो पहली किताब थी जिसे मैंने पूरे दिल और एकमिनान से पढ़ा था. उसमें बताए गए छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम, उनके जीवन की घटनाएं, उनके सैनिकों, सहकारीयों की स्वराज के प्रति आस्था, मै उनके शौर्य को भलीभाँति महसूस करता था.
जब भी ये किताब मै पढता था, तो पूरी तरह उसमें खो जाता था. और उसमें घटी घटनाओं को पढते वक्त मै इतना खो जाता था जैसे वो घटनाएं मेरे सामने घटी हो. और हर एक पंक्ति पढते वक्त मैं इस किताब को जीता था. मुझे इस पुस्तक से इतना लगाव था की मेरे मन को हर पल ये अफसोस होता था की शायद मै भी छत्रपति शिवाजी महाराज का कोई सेवक होता.
भले कम से कम मुझे दो दिन की जिंदगी मिलती, पर मै छत्रपति को देख पाता और मुझे मौत भी आ जाती तो मुझे जरा भी अफसोस न होता.
ये 'छत्रपति शिवाजी महाराज' की किताब आज भी मेरे पास है, और मैंने उसे आज भी वैसे ही संभाल के रखा है. क्योंकि मैं किताब को एक पुस्तक नहीं बल्कि छत्रपति का दर्शन कराने वाली उनकी जिती जागती आत्मा मानता हूँ.
और सही मायने में देखा जाए तो यही मेरे जीवन की पढी पहली किताब है. क्योंकि जो मन लगाकर और दिल से पढा जाए उसे पढना कहते,
नही तो पढने को हम हम कचरे में पडे कागज पर लिखा लेख भी पढते है.