
नई दिल्ली: कश्मीर में भले ही पिछले कुछ दिनों से हालात खराब हों और कर्फ्यू से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हो. लेकिन सच तो ये है कि करीब दस साल पहले तक जिस खौफ के साए में घाटी के लोगों ने वक्त गुजारा है उस हिसाब से हालात बहुत बेहतर हैं. एक वक्त था जब पूरी घाटी में आतंकवादियों की फौज भर चुकी थी. 1989 में पैदा हुआ हिजबुल मुजाहिद्दीन साल 2005 तक कश्मीर में पूरी तरह हाबी हो चुका था. उस वक्त एक जांबाज पुलिस अफ्सर अल्ताफ डार ने हिजबुल के नेटवर्क को तोड़ा था. साल 2006-07 में उस पुलिस अफ्सर ने अपने खुफिया जानकारियों के बल पर हिजबुल मुजाहिद्दीन के पूरे नेटवर्क को लगभग पूरी तरह खत्म कर दिया था. हम बात कर रहे हैं भारत के सबसे उम्दा आतंकवाद विरोधी पुलिस अधिकारियों मे से एक, साइबर ब्वॉय और 24 घंटे ड्यूटी काप कहलाने वाले मोहम्मद अल्ताफ डार की.
जिसके नाम से कांपते थे आतंकी
आपको शायद ही पता होगा की अल्ताफ डार को जम्मू-कश्मीर में उनके खुफिया कामों के लिए जाना जाता था. उनकी खुफिया जानकारी इतनी सटीक होती थी की आतंकियों के भीतर उनका खौंफ चलता था. आतंकी संगठन उस वक्त अल्ताफ से बचने के लिए खास तौर पर सतर्कता बरतते थे. घाटी में वर्ष 1989 से पनपे हिजबुल मुजाहिदीन के नेटवर्क को अल्ताफ़ लैपटॉप ने 2006-2007 के बीच में लगभग ध्वस्त कर दिया था. यही नहीं, उनके विशिष्ट काउंटर-इंटेलिजेंस की मदद से सेना 200 आतंकवादियों को मारने में सफल रही थी.
अल्ताफ़ लैपटॉप के नाम से जाने जाते थे
बताया जाता है कि 2005 में अल्ताफ जब श्रीनगर में एक थाने के मुंशी थे, तब उन्होने एक लैपटॉप ऋण लेकर खरीदा था. इसी उधार के लैपटॉप के द्वारा उन्होने आतंकवादियों के फोन कॉल की रिकॉर्डिंग और उनके लोकेशन तलाशना शुरू किया था. बाद में इनकी काबीलियत देखते हुए वरिष्ठ अधिकारियों ने इन्हे आतंकवाद विरोधी इकाई की स्पेशल सेल में शामिल कर लिया. इसी दौरान एक हाई प्रोफाइल मर्डर मिस्ट्री सुलझा कर अपनी टीम के बीच अल्ताफ़ लैपटॉप के नाम से मशहूर हो गए थे.
शहीद हो गए थे अल्ताफ
7 अक्टूबर 2015 को अल्ताफ को जानकारी मिली की एक आतंकी अपने साथियों के साथ सफर कर रहा है. कार्रवाई के लिए अल्ताफ अपने एक साथी के साथ निकल पड़े. लेकिन वो दिन उनकी जिंदगी का आखरी दिन निकला. आतंकियों की फायरिंग में वो शहीद हो गए. लेकिन अपने पीछे अपनी जांबाजी के किस्से छोड़ गए.