नई दिल्ली : यूपी की राजधानी लखनऊ में एक अनोखी माँ का पालना कभी खाली नहीं होता. या यूँ कह लें की सरोजनी की ममता बच्चों के प्रति कम ही नहीं होती. जिसके चलते 800 बच्चों को अपने आंचल का प्यार बाँट चुंकी एक माँ के दिल में अपने बच्चों के प्रति कूट-कूट कर प्यार भरा है, जो 80 साल की उम्र में भी कम होने का नाम नहीं ले रहा है.
सड़क दुर्घटना में हुई थी बेटी की मौत
इस प्यार की वजह जानकर आप हैरान हो जायेंगे. दरअसल सरोजनी की एक बेटी थी, जो एक सड़क दुर्घटना में मारी गयी. इस बड़े सदमें को जब वह भुला नहीं सकीं तो उन्होंने अनाथ बच्चों को गोद लेकर उन्हें पालना शुरू कर दिया. यही नहीं अब तक 800 से अधिक बच्चे उनके आंगन में पड़े पालने में झूल चुके हैं. तीस साल से इस पालने में जाने कितनी ही अनाथ बच्चियां झूल चुकी हैं. जाने कितने ही लोग अपनी बच्चियों को बोझ समझ इस पालने में डाल गए और इस मां ने हर बच्ची को पाला. सरोजिनी की ज़िन्दगी का यही मकसद है कि कोई अनाथ बच्ची ठोकरे न खाए.
बेसहारा बच्चियों को पालने दे दिया जीवन
80 वर्षीय सरोजिनी एक आश्रम में अनाथ बच्चियों को पालती हैं. ये सब उनकी गोद ली हुई बच्चियां हैं. लगभग तीस साल पहले सरोजिनी के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने अपना जीवन इन बेसहारा बच्चियों के नाम करने का फैसला ले लिया.1978 में उनकी आठ साल की बेटी एक सड़क दुर्घटना में उन्हें हमेशा के लिए छोड़ कर चली गयी. जब ये हादसा हुआ, तब वो ही दुपहिया वाहन चला रही थीं और उनकी बेटी मनीषा पीछे बैठी थी.
एक हादसे ने बनाया सरोजिनी को सैकड़ों बच्चों की माँ
सरोजिनी अपने बेटी के जाने के दुःख से उबर नहीं पा रही थीं, तभी उन्हें एहसास हुआ कि ऐसी तो कई बेटियां हैं, जो बेघर हैं, बेसहारा हैं, जिन्हें मां की ज़रुरत है. उस दिन उन्होंने फ़ैसला किया कि वो इन बच्चियों का सहारा बनेंगी. सरोजिनी एक लेख िका के तौर पर काम करती रहीं और बाकी समय अपने परिवार को देती रहीं. उनके तीन बेटे हैं. जब उनका बड़ा बेटा इंजीनियर बना तो सबसे पहले उन्होंने उससे लड़कियों के लिए अनाथालय बनाने का विचार शेयर किया. इसके बाद उन्होंने अपने पति वी.सी. अग्रवाल के साथ मिल कर ये काम शुरू किया.
हर बच्चे को मिला माँ का प्यार
'मनीषा मंदिर' नाम का ये अनाथालय 1985 में शुरू हुआ. उस वक़्त इसमें केवल तीन कमरे थे. इस अनाथालय में अनाथ बच्चियां पली. इसके अलावा ऐसी बच्चियां भी रहीं, जिनके मां-बाप होते हुए भी वो अनाथ थीं. यही नहीं ऐसी लड़कियां भी इस आश्रम में पलीं जो वेश्यालयों से लायी गयीं थीं.
जन्म देने से अधिक सुखद होता है बेसहारा बच्चों की माँ बनने का
सरोजिनी मानती हैं कि मां बनने के लिए आपको बच्चे को जन्म देना ज़रूरी नहीं. वह कहती हैं कि सबसे सुखद होता है इन बेसहारा बच्चियों को 'मां' कहते सुनना. आज मनीषा मंदिर में लाइब्रेरी से लेकर कम्प्यूटर लैब तक है. सभी सुविधाएं देने के साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करती हैं कि इन बच्चियों को अच्छी शिक्षा मिल पाए. उनका मानना है कि बच्चियों को अच्छा जीवन देने के लिए उन्हें शिक्षित करना बेहद ज़रूरी है. इस अनाथालय की कई लड़कियां आज पढ़-लिख कर अच्छी नौकरियां कर रही हैं.
पढ़ लिखकर बच्चे बने नवाब
मनीषा मंदिर में लड़कियों को 17-18 साल तक की उम्र तक रखा जाता है और सभी सुविधाएं दी जाती हैं. इसके बाद वो आत्मनिर्भर होकर नौकरी करने योग्य हो जाती हैं. अब तक आठ सौ लड़कियां यहां रहा चुकी हैं. आज यहां से निकली कोई लड़की प्रिंसिपल बन चुकी है, तो कोई बैंक मैनेजर, कुछ की शादी हो गयी और कुछ को लीगल एडॉप्शन के ज़रिये अच्छे परिवारों को दे दिया गया. इस नेक काम के लिए सरोजिनी को कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं. आज भी वो बिना थके बेसहारा बच्चियों को अच्छी परवरिश देने के लिए लगातार काम कर रही हैं. सरोजिनी कहती हैं कि वो नहीं जानती कि ढलती उम्र में वह कब तक इस नेक काम को जारी रख पाएंगी.