सृष्टि को देने मूर्त रुप ईश्वर ने
किया अपनी प्रतिमूर्ति का निर्माण,
ममतामयी एक मूरत का कर सृजन
किया इस सृष्टि का उत्थान।
मां सरस्वती के आशीष से सिंचित
ज्ञान की जिसे दी निर्मल धारा,
स्कंदमाता के वात्सल्य भाव समान
दिया फूलों-सा कोमल हृदय प्यारा,
लोरी की मीठी धुन जिसकी लगे
सात सुरों की सरगम का उपहार,
अपनों की रक्षा के लिए रहे तत्पर
जो धारण करे मां दुर्गा का अवतार,
मां अन्नपूर्णा का देकर स्वरूप
दिया उसे पोषण का अधिकार,
परम पूज्य है मां का प्रत्येक रुप
जिसमें समाया है ब्रह्मांड का सार।
देवी के नव रूपों के नव रस के
मेल से सृजित हुई एक मूरत
जो बनी सृष्टि का आधार,
नाम दिया जिसे ममता की मूरत-मां
जिसके आगे नतमस्तक है सकल संसार।
- सोनल पंवार ✍️
उदयपुर (राजस्थान)
स्वरचित एवं मौलिक