वो गुलाब की पंखुड़ियां
नाज़ुक और कोमल
प्रभु के श्री चरणों में हो समर्पित
भक्ति की पावनता दर्शाती है,
केशों में सुशोभित होकर
नारी का श्रृंगार बन जाती है,
बागों में कलियों संग झूमे
रंग बिरंगी तितलियों-सी
उपवन की शोभा बढ़ाती है,
जवानों के पथ पर बिखर कर
देश के गौरव का पाठ सुनाती है,
मात-पिता को देकर उपहार
सम्मान को अभिव्यक्त करती है,
हाथों में अपनों के सिमट कर
रिश्तों को अपरिमित प्रेम
की खुशबू से महकाती है,
वो गुलाब की पंखुड़ियां
फूलों की कोमलता और
कांटों का संघर्ष साथ लिए
जीवन को यथार्थ के साथ
मुस्कुराकर जीना सिखाती है।
- सोनल पंवार✍️
उदयपुर (राजस्थान)
स्वरचित एवं मौलिक