मन है एक ऐसा पंछी ,
जिसके ख्वाहिशों के पर है होते ,
जो भरना चाहता है उन्मुक्त उड़ान ,
और छूना चाहता है आसमान !
लेकिन वक्त की अग्नि-सी प्रखर तपती किरणें ,
जला देती है वो पर ख्वाहिशों के ,
और मन अनमना-सा रह जाता है यहीं ,
एक उड़ान को पाने की आस में !
– सोनल पंवार