Sonal Panwar
" मेरा भारत महान "
सोने की चिड़िया था कभी , उन्मुक्त हवाओं का था बसेरा , नारी की जहाँ होती थी पूजा , ऐसी पावन भूमि का देश था मेरा ! हम तन से तो आज़ाद हुए है , पर मन और विचारों से अब भी है गुलाम ! जब यहाँ मानवता , भाईचारा और सौहार्द्र होगा , जब नारी का यहाँ सम्मान ह
" मेरा भारत महान "
सोने की चिड़िया था कभी , उन्मुक्त हवाओं का था बसेरा , नारी की जहाँ होती थी पूजा , ऐसी पावन भूमि का देश था मेरा ! हम तन से तो आज़ाद हुए है , पर मन और विचारों से अब भी है गुलाम ! जब यहाँ मानवता , भाईचारा और सौहार्द्र होगा , जब नारी का यहाँ सम्मान ह
काव्यधारा
शब्दों के खेल से बनती है एक कविता, कवि के अंतर्मन से निकल कर शब्दों के मोती को माला में पिरोती है एक कविता, ज़ेहन से कागज़ के पन्नों पर उभरती है एक कविता, कवि के ख्यालों की अधबुनी कहानी है एक कविता। ' काव्यधारा ' मेरी स्वरचित एवं मौलिक कविताओं का संग्
काव्यधारा
शब्दों के खेल से बनती है एक कविता, कवि के अंतर्मन से निकल कर शब्दों के मोती को माला में पिरोती है एक कविता, ज़ेहन से कागज़ के पन्नों पर उभरती है एक कविता, कवि के ख्यालों की अधबुनी कहानी है एक कविता। ' काव्यधारा ' मेरी स्वरचित एवं मौलिक कविताओं का संग्
क्षणिकाएं मेरी कलम से✍️
” उड़ान ” मन है एक ऐसा पंछी , जिसके ख्वाहिशों के पर है होते , जो भरना चाहता है उन्मुक्त उड़ान , और छूना चाहता है आसमान ! लेकिन वक्त की अग्नि-सी प्रखर तपती किरणें , जला देती है वो पर ख्वाहिशों के , और मन अनमना-सा रह जाता है यहीं , एक उड़ान क
क्षणिकाएं मेरी कलम से✍️
” उड़ान ” मन है एक ऐसा पंछी , जिसके ख्वाहिशों के पर है होते , जो भरना चाहता है उन्मुक्त उड़ान , और छूना चाहता है आसमान ! लेकिन वक्त की अग्नि-सी प्रखर तपती किरणें , जला देती है वो पर ख्वाहिशों के , और मन अनमना-सा रह जाता है यहीं , एक उड़ान क
" ईश्वर की अनमोल सौगात - हमारे माता-पिता "
ईश्वर की बनाई ममता की मूरत है ‘माँ’ , ईश्वर ने गढ़ी वो अनमोल कृति है ‘पिता’ ! जीवन की तपती धूप में शीतल छाँव है ‘माँ’ , जीवन के अंधेरों में प्रदीप्त लौ है ‘पिता’ ! ज़िन्दगी के आशियाने का स्तंभ है ‘माँ’ , उस स्तंभ का आधार-‘नींव’ है ‘पिता’ ! मेरे ज
" ईश्वर की अनमोल सौगात - हमारे माता-पिता "
ईश्वर की बनाई ममता की मूरत है ‘माँ’ , ईश्वर ने गढ़ी वो अनमोल कृति है ‘पिता’ ! जीवन की तपती धूप में शीतल छाँव है ‘माँ’ , जीवन के अंधेरों में प्रदीप्त लौ है ‘पिता’ ! ज़िन्दगी के आशियाने का स्तंभ है ‘माँ’ , उस स्तंभ का आधार-‘नींव’ है ‘पिता’ ! मेरे ज