नई दिल्ली: 1991 में आर्थिक सुधार के बाद भारत पहली बार चालू वित्तीय घाटे की भरपाई FDI के जरिए करता नज़र आ रहा है। भारत का निर्यात आयात के मुकाबले बढ़ रहा है। यह देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काबिलियत में निवेशकों के बढ़ते विश्वास का संकेत है। जिस वित्तीय घाटे की भरपाई अब तक तक विदेशी मुद्रा बाजार में कंपनियों द्वारा उधार लेने, एनआरआई की फंडिग और पोर्टफोलियो इन्फ्लो के जरिए होती थी, उसमें अब बदलाव दिखने लगा है।
अप्रैल-जनवरी की अवधि के दौरान नेट आउटफ्लो की बात आरबीआई के आंकड़े बता रहे हैं । इसमें विशेष रूप से डॉलर की जमा राशि के मुआवजे के एवज में 2013 में एनआरआई से भारत द्वारा उठाए गए रकम के मुकाबले करीब 26 अरब डॉलर का आउटफ्लो शामिल है। 2016 के पूरे वित्त वर्ष में FDI 55.6 बिलियन डॉलर रहा। वित्त वर्ष के खत्म हुए पहले 10 महीनों में (अप्रैल 2010 से जनवरी 2017) के दौरान कुल FDI 53.3 बिलियन डॉलर रहा, जो पहले इसी अवधि के दौरान 47.2 बिलियन डॉलर था।
भारत एक ऐसी अर्थव्यवस्था बनता जा रहा हैं जहां स्थिर विकास मिलता है। जबकि दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया जैसे उभरते बाजार राजनीति क और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। भारत की ईज आफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग भी 2017 में बढ़कर 130 हो गई है, जो 2015 में 142 थी।
दरअसल, वैश्विक बाजार की अस्थिर स्थिति के बावजूद एेसे फ्लो बाहरी सेक्टर के अकाउंट को संरक्षित रखते हैं। वह कहते हैं कि उदार नीति के ढांचे का परिणाम के अलावा देश में कारोबारी माहौल और तेजी से सुधार लाने के समर्थन ने हालिया समय में एफडीआई फ्लो ने पोर्टफोलियो फ्लो को पीछे छोड़ दिया है। एफडीआई, टिकाऊ होने के अलावा बेहतर तकनीक के ट्रांसफर की भी सुविधा मुहैया करता है जो अच्छे फायदे दिलाती है।